केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार (1 दिसम्बर, 2021) को कुख्यात कोट्टियूर बलात्कार मामले में पूर्व पादरी रॉबिन मैथ्यू वडक्कुमचेरी को दी गई सजा को कम कर दिया है। न्यायालय के इस निर्णय से जनता में भारी रोष है।
पादरी रॉबिन पर वर्ष 2016 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और उसे गर्भवती कर देने का आरोप लगा था। थालास्सेरी के पॉक्सो न्यायालय ने इस मामले में पादरी को दोषी मानते हुए, उसे आईपीसी की धारा 376 (2) (F) और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत 20 वर्षों के कठोर कारावास का दंड दिया था।
अब इस मामले में जस्टिस नारायण पिशारदी ने पादरी पर लगे आरोपों को धारा 376 (2) से धारा 376 (1) में बदल दिया। इसके साथ ही बलात्कारी पादरी रॉबिन को मिलने वाली सज़ा को भी कम कर दिया गया। अब दोषी रॉबिन को 20 से कम कर 10 वर्षों के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई है, साथ ही दोषी द्वारा दायर एक अपील का निपटारा करते हुए भी जुर्माना लगाया गया।
न्यायालय ने पॉक्सो के तहत सजा पर सहमति जताई थी। बता दें कि इस मामले ने उस समय खासा तूल पकड़ लिया था, जब पीड़िता ने आरोपित पादरी से विवाह करने की इच्छा प्रस्तुत की थी। इस विचित्र इच्छा को देखते हुए जनता के बीच खासा वाद-विवाद प्रारंभ हो गया था। इस विषय में पीड़िता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसके कारण आम जनता में भी खासा रोष उमड़ आया था।
रॉबिन वडक्कुमचेरी ने भी न्यायालय में एक याचिका दायर कर पीड़िता से शादी करने के लिए सज़ा से छूट की माँग की थी। हालाँकि, न्यायालय ने दोनों याचिकाओं को ही खारिज कर दिया था।
मामले ने तब लोगों का ध्यान खींचा था जब एक नाबालिग लड़की ने पुलिस के सामने कबूल किया था कि उसके अपने पिता द्वारा उसके साथ बलात्कार करने के बाद उसे गर्भवती किया गया था। हालाँकि, जाँच के दौरान उसने कहा कि आरोपित और उसके बीच सहमति से यौन संबंध बने थे।
आरोपित ने पीड़िता से पैदा हुए बच्चे के पिता बनने को स्वीकार किया और यह तर्क दिया कि यह कार्य सहमति से किया गया था। इस मामले में वकील ने पुराणों और भारतीय पौराणिक कथाओं के संदर्भ देते हुए यह तर्क दिया कि यह तो प्राकृतिक (Human Conduct) यानी मानव आचरण था।
न्यायालय ने इस विषय मे कहा:
“यह केवल एक नैतिक मुद्दा नहीं जिस पर न्यायालय द्वारा विचार किया जाए, सवाल यह है कि क्या पीड़िता के साथ संभोग करना आरोपित के लिए कानूनी रूप से उचित था। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरोपित द्वारा किया गया कार्य कानूनी रूप से गलत था और यह IPC की धारा 376 और धारा 3 r/w सेक्शन 4 और सेक्शन 5R और POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों की श्रेणी में आता है।”
बता दें कि आरोपित को 20 वर्षों की सज़ा सुनाते समय न्यायालय ने इसे एक जघन्य अपराध बताया था और यह भी कहा था कि आरोपित को इतना ही भीषण दंड भी दिया जाना चाहिए परंतु क्योंकि पीड़िता और आरोपित द्वारा पैदा हुआ बच्चा बढ़ रहा था और उसने आज तक अपने पिता को देखा तक नहीं था, इस कारण न्यायालय ने आरोपित को उम्र कैद की सजा नहीं सुनाई थी।