गान्ही बाबा ने जब अपने पर्सनल हाथों से यह हिन्दुस्तान बनाया था, और छेनी-हथौड़ी से काट कर पाकिस्तान अलग किया था, तब लेहरू जी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि पटेल की मूर्ति अपने जेब में ले कर घूमने वाले नरेन्द्र मोदी जी के टाइम में एक अल्पसंख्यक लड़का फेक न्यूज भी नहीं फैला पाएगा। आप ही बताइए कि क्या इस देश में विक्टिम कार्ड स्वाइप करने को सीमित कर दिया जा चुका समुदाय, और उसके नाम पर बुक्का फाड़ कर डिजिटल रूदन करने वाली बुर्कानशीं ‘माय च्वाइस’ कन्याएँ क्या किसी अब्दुल की आरिफ, मुशाहिद, आदिल द्वारा की जाने वाली पिटाई को हिन्दुओं के नाम भी नहीं लिख सकती? क्या यही हैं अच्छे दिन?
आप सोचिए कि एक अब्दुल है, कुछ करना चाहता है, शीघ्रपतन, ल्यूकोरिया, अपने जमात की मर्दाना कमजोरी और बचपन की नादानियों से होने वाली बीमारियों को दूर करने की बातें खेत में खड़ी लाल दीवारों पर सफेद चूने से लिख कर अलीगढ़ के लाल कुआँ के पास बुलाने की जगह, ताबीज बेच कर चमत्कार करवाने के दावे करता है, तो लोग उसे सही राह पर चलने से रोकते हैं। सर्किट और मुन्ना के साथ भी यही हुआ था जब वो गाँव में खेती करना चाहते थे। जय और वीरू को भी इस बेदर्द जमाने ने इज्जत की जिंदगी जीने से रोका था।
सतरंगी पाद छोड़ने वाले सींग-सुशोभित अश्वों के उड़ने से ले कर टोमेटो सूप को कटोरे में बीच से अलग करने की के चमत्कारों की बात सुन कर पला-बढ़ा अब्दुल, आखिर ताबीज बेच कर कुछ चमत्कार नहीं बाँटेगा, तो फिर पुरखों की कलाओं को लुप्त होने पर ऊपर वाले को क्या स्थान विशेष दिखाएगा? ऐसे स्थान विशेष का क्या फायदा जो दिखाने लायक न बची हो! तो बेचारा ताबीज और चमत्कार बेच रहा था।
ऐसे में आरिफ, आदिल और मुशाहिद को एक चमत्कार बेचा, वो चमत्कार वैसे ही गिर गया जैसे हकीम उस्मानी के पास आने वाले किसी सलमान का अंगविशेष! अब आप ही बताइए आरिफ, आदिल और मुशाहिद को मर्दाना कमजोरी थी, या उसी टाइप की समस्या तो वो हमारी डॉक्टर अजयिता जी की आइ रेड पिल का इस्तेमाल कर सकते थे। फिर याद आया कि रेगिस्तानी सभ्यताओं में ऊँटों से काम चलाने वाले इंटरनेट पर कहाँ पहुँच पाते हैं। आप कहेंगे कि प्रातःसमरणीय श्री अजीत भारती जी ब्रो, आप बीच-बीच में रेगिस्तान और घोड़ों पर चले जाते हैं, तो ऐसा है ब्रो कि जब हमारे ‘जय श्री राम’ पर नौटंकी होगी, गौमूत्र के नाम पर चिढ़ाया जाएगा, तो ऊँटमूत्र और मर्दाना कमजोरी पर हम भी तो लात रखेंगे ही।
ख़ैर, आरिफ, आदिल और मुशाहिद की मर्दाना कमजोरी को अब्दुल का ताबीज दूर नहीं कर पाया। अब अब्दुल का कहना था कि ताबीज गले में पहनना था, इन लोगों ने कहीं और पहन लिया कि तुरंत असर करे। पर्सनल लॉ वाली अदालत ने कहा कि अब्दुल को इन्सट्रक्शन्स सही से बताना चाहिए था। यह कह कर इस अदालत ने तीनों से ताबीज यह कह कर जब्त कर ली कि अंतिम निर्णय आने तक वो अदालत की संपत्ति है जिसे पर्सनल लॉ वाले स्वयं इस्तेमाल करेंगे और तब तय करेंगे कि ताबीज में समस्या है या इन तीनों के अंग विशेष में। अब आप फिर कहेंगे कि प्रातःस्मरणीय श्री अजीत भारती जी ब्रो, आप आजकल अश्लील होते जा रहे हैं, तो मैं कहूँगा कि इससे ज्यादा अश्लील बात क्या होगी कि कोई आपके राम को ऐसे इस्तेमाल करता है, आपको गाय के नाम पर ललकार देता है और आप नपुंसकों की तरह सुन कर रह जाते हैं।
ख़ैर, अब्दुल को तीनों ने मिल कर कूट दिया। कोई कहेगा कि पीटने वाले में एक हिन्दू भी तो था। तो ऐसा है कि आजीवन ऐसी ही मूर्खता करते रहोगे तुम सब। फोकस में अब्दुल, आदिल, आरिफ और मुशाहिद है तो इसमें गुर्जर को काहे खींच रहे हो। यही मूर्खता तुम हर दंगे के बाद करते हो जब तुम्हारे 59 कारसेवक जलाए जाते हैं, और तुम उनके बारे में प्रश्न पूछने की जगह यह कह कर भावुक होते रहते हो कि यार उस आदमी की तस्वीर देखी जिसमें वो तलवार वाले के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहा था?
अबे घोंचू! हमारे 59 भाइयों को जब ट्रेन के डिब्बे में आग लगा कर मारा गया था, तो उन्हें गिड़गिड़ाने का भी मौका नहीं मिला होगा, उनकी तस्वीरों के नाम पर जलते डब्बों से उतरते रंग और भूलाए जा चुके कुछ नाम हैं, जो हमें याद नहीं। तुम्हारे 59 लोगों पर उनकी एक तस्वीर भारी पड़ती है, तुम्हारे अंकित शर्मा के हाथ और दिलबर नेगी के हाथ-पाँव-गर्दनविहीन धड़ पर उनका ठहरा हुआ एक गर्भ भारी पड़ जाता है… इस तरह के निवीर्य होने से, इस पुंसत्वहीनता से बेहतर है मर जाओं डूब कर शर्म से! आग की उठती लपटों में उनकी चीखें खो गईं, तस्वीरों से तब तक आवाज नहीं आती जब तक समाज उसे नैरेटिव का हिस्सा बना कर हर दिन याद न करे। हमने अपनों को भुला दिया है और तुम्हें इस बात की पड़ी रहती है कि सात साल के बच्चे को पीटना नहीं चाहिए था, पानी ही तो पीने आया था!
…क्षमा चाहता हूँ कि विषयांतर हो गया पर स्वयं को कैसे रोक लूँ जब आप मुझे मर्यादाओं की और शब्दों के चुनाव और तथाकथित तथ्यों की संपूर्णता पर ध्यान देने कहते हैं। मैं यह तय करूँगा कि मेरे तथ्य क्या होंगे, और मैं यह तय करूँगा कि कैसे एक हमले में कौन से नाम होंगे और उन नामों की बारम्बारता का पैटर्न क्या होगा। क्योंकि अगर वह नहीं हुआ तो फिर से कोई गोधरा का विशुद्ध हिन्दू विरोधी दंगा हिन्दुओं के ही सर पर फेंक दिया जाएगा। इसलिए ज्ञान मत दो क्योंकि मुझे किसी रिंकू शर्मा की पीठ में घुसा आठ इंच का डैगर याद आता है ज मुसलमानों की एक भीड़ उसकी पीठ में घुसा कर घुमा देती है।
शर्म आनी चाहिए कि कोई अब्दुल अपने चमत्कारों के फुस्स हो जाने पर आरिफ, आदिल और मुशाहिद से लात खाता है, दाढ़ी कटवाता है और हम यह तय करने में लगे हुए हैं कि ‘यार एक हिन्दू भी तो था उसमें’। इस 72 साल के बुड्ढे की धूर्तता देखो कि वो अपनी ही कौम के ही लोगों से लात खाने के बाद भी, कौम के अंतिम लक्ष्य की तरफ अपना योगदान दे रहा है कि उसे तो ‘जय श्री राम’ बोलने कहा गया और उसकी दाढ़ी हिन्दुओं ने काट ली। अब्दुल अपने मार्ग से डिगा नहीं है, अब्दुल अपने मार्ग से कभी नहीं डिगता। अब्दुल कमर पर बम बाँध कर बहत्तर हूरों की चाह में लिंग-नितम्ब गँवा कर भी जन्नत में सेक्स करने की चाह रखता है और काफिरों के बाजार में फट जाता है, और तुम्हें इस बात की पड़ी है कि एक बार जाँच हो जाती!
जाँच हो जाती? कितनी बार जाँचोगे? हर बार ये सारी बातें झूठी निकलती हैं। चाहे गुड़गाँव में ‘मेरी टोपी फेंक दी और पीटा’ वाला कांड हो या फिर क्रिकेट के मैच में दो बच्चों के झुंड में आपस की लड़ाई, हर बार ‘जय श्री राम’ का नाम डाल कर हिन्दुओं में हीन भाव और अपराधबोध डालने की कोशिशें की गईं। हम भावुक होते रहे इनके चोरों पर, और ये फायदा उठाते रहे।
देखो तो सही कि कैसे जुबैर, आरफा, सबा नकवी, राणा अय्यूब, शमा, उस्मानी, निजामी एक साथ संगीत के किसी कन्सर्ट में कन्डक्टर की और देखे बिना, आरोह-अवरोह के साथ भावुक हो रहे थे कि ‘हाय दैया, भारत में मुस्लिम होना तो बड़ा गुनाह हो गया है… हाय री मोरी मैया मुझे तो शर्म आ रही है कि मैं इस देश में हूँ… क्या मुझे अपना क्रोध दिखाने का हक है कि इस देश में अब्दुल को जय श्री राम कहने के लिए कूटा गया… चुनाव वाले प्रदेश में हिन्दू राष्ट्र ने एक मुसलमान को पीट दिया…’
शीघ्रपतन की परिभाषा यही है, इन पतितों और पतिताओं के ट्वीट पढ़ो जो एक-एक ट्वीट से हिन्दुओं को खिलाफ किस तरह की घृणा फैला रहे हैं। जुबैर तो फैक्ट चेकर है, भले ही प्रेम दिवस का फैक्ट चेकर है, लेकिन अब जो भी है, है तो सही। ‘दाढ़ी काटी’ और ‘जय श्री राम’ पढ़ कर ही इसके स्थान विशेष में ‘पुक-पुक’ होने लगी जैसे हलाल करते वक्त मुर्गे का होता है। जुब्बू से रहा नहीं गया, यह वैचारिक स्खलन रोक नहीं पाया जुब्बू और ट्विटर पर बह गया। जबकि, उस वीडियो का एक हिस्सा म्यूट था, जुब्बू ने नासाप्रदत्त आसमानी सॉफ्टवेयर से भी चेक नहीं किया क्योंकि शायद अब्दुल अहमद सैफी के दिए ताबीज ने जुब्बू को यह अलौकिक शक्ति दे दी थी कि वो बिना आवाज की वीडियो में भी ‘जय श्री राम’ सुन सकेगा।
वो पंचरपुत्र है, वो पानी में हवा के बुलबुले देख सकता है, पानी न हो तो उँगली रख कर ध्यान लगा कर आपके टायर का पंचर ढूँढ देगा, वो कुछ भी कर सकता है क्योंकि ऐसे लोग बचपन से पहाड़ों पर चमत्कार देखने जाते रहे हैं। कुछ पंचरपुत्र और कुछ खबरों का धंधा करने वालियाँ, ये खबरों के कोठों पर बैठ कर फेकन्यूज के तबले पर थिरकती खालाजानें… इनका पूरा जीवन इसी जहरीले नैरेटिव को बनाने में, इसी खबरों की वेश्यावृत्ति में, समाज में बिगट्री और साम्प्रदायिकता फैलाने में बीता है। कौमी वर्चस्व की चाह में कौमी विक्टिम कार्ड का दोहरा खेल खेलते ये लोग समाज के कोढ़ हैं, इनसे बच कर रहें। जनहित में जारी।
तो, जुबैर और उसके गैंग ने तुरंत ही, टूलकिट वाले अंदाज में, लगभग एक-सी मार्मिक भाषा का प्रयोग करते हुए, एक म्यूट वीडियो में ‘जय श्री राम’ सुनते हुए, हिन्दुओं पर सारा बोझ डाल दिया कि देखो, मुसलमानों का तो जीना दूभर हो गया है, अब हम कहाँ जाएँ, हमें तो जीने का भी आजादी नहीं है। स्वरा भास्कर तक को अपना मेन काम छोड़ कर ट्वीट करना पड़ गया कि बताइए दाढ़ी काट ली अब्दुल की! यह भी कमाल की ही बात है कि संघ वाले घरवापसी करवाने के मंत्र और नियम लिखते रह गए, इधर आदिल, आरिफ और मुशाहिद अब्दुल की दाढ़ी काट कर उससे जय श्री राम बुलवा रहा है।
ऐसे कई अदृश्य जय श्री राम जून, 2019 से सुने गए। लगता है कि ऊर्जा के उत्पादन के नियमों के अनुसार अयोध्या के किसी मंदिर में बोले हुए ‘जय श्री राम’ की ध्वनि ब्रह्मांड में अनंत काल से विचर रही थी, और कालांतर में वो अब्दुलों और अहमदों को बिना बात के भी सुनाई दे जाती थी। क्योंकि अल्लाह का पाक बंदा झूठ थोड़े ही बोलेगा। उसने सुना, और पाँच वक्त का नमाजी है, जालीदार टोपी पहनता है तो वो क्या झूठ बोलेगा कि उसे जबरन बुलवाया गया। मुझे ताबीज से चमत्कार पर पूरा विश्वास है। आप ही सोचिए कि मुसल्लम ईमान वाले लोग कभी झूठ बोल सकते हैं? अल तकिया, अल चद्दर, अल रजाई, अल कुर्सी, अल टेबुल, अल स्कोडा, अल लहसुन!
कहते हैं कि ऊपर वाले के डंडे में आवाज नहीं होती। इस कथन में समस्या यह है कि डिपेंड करता है कि किस धर्म या मजहब का ऊपर वाला है। इस पर भी डिपेंड करता है कि डंडे से पीटा जा रहा है, या और ही कोई विशेष कार्य हो रहा है। खैर, पुलिस वालों के पास जो डंडा होता है, वो कानूनी रूप से चले तो आवाज करती है, लेकिन कई बार वह डंडा तेल पिला कर कुछ विशेष कार्यों में भी प्रयोग में लाया जाता है।
अब देखिए कि ग़ाज़ियाबाद की पुलिस ने इस फर्जी खबर का खंडन किया और लोगों को सचेत किया कि भैया फेक न्यूज मत फैलाओ। लोकिन फेक न्यूज फैलाने वाले लोग, जैसे कि जुबैर, आरफा, राणा, सबा, शमाँ, सलमान आदि फेक न्यूज का यह विज्ञान समझते हैं कि फैलाने में जो मजा है, और जितनी जल्दी ये फैलाते हैं, जितने लोगों के सामने, उससे ट्वीट-रीट्वीट की ऐसी बाढ़ आती है कि समाज में हिन्दू-मुस्लिम काम भर हो जाता है। जब यूपी पुलिस ने ध्यान दिलाया और ट्विटर पर इनके फैलाए रायते पर तब्लीगी टाइप थू-थू हुई, तब 21 घंटे बाद माफियों का दौर चला। उसमें भी कंडीशन्स अप्लाय टाइप की बातें कि अभी तक की जानकारी के हिसाब से… ब्ला, ब्ला, ब्ला…
यूपी पुलिस जब डंडा ले कर निकली तो ट्विटर में भी डाल दिया। अभी तक क्या होता था कि पंचरपुत्रों की ब्रीड और खबरों के धंधे वाली खालाजानें, इस उम्मीद से साम्प्रदायिक जहर उगला करती थीं कि किसी को क्या पता चलेगा, चल भी गया तो उनका क्या बिगड़ जाएगा। वो अपने जहर को टखने तक की लम्बाई का वैचारिक स्वतंत्रता वाले पैजामे में छुपा लिया करते थे। अब क्या है कि पाजामे का पीलापन अब दिखने लगा है, लोग-बाग पकड़ कर पूछने लगते हैं कि ‘ये सुबहो-सुबहो चेहरे की रंगत उड़ी हुई, कल रात तुम कहाँ थे बताना सही-सही’!
जब ईमान की सफेदी पर झूठ का पीलापन सुबह दिखने लगा और पुलिस ने पकड़ लिया तो एक लाइन से माफीनामा आने लगा कि मेरा ट्वीट तो फलाने रिपोर्ट के आधार पर था, मेरा वाला तो डिंग-डॉन्ग डिंग डॉन्ग डिंग-डॉन्ग डिंग डॉन्ग डिंग डॉन्ग करता है, मैं तो कहती हूँ जी कि ट्रूथ प्रीवेल करे जल्दी से जल्दी! मतलब आप सोचिए कि ईश्वर क्या-क्या दिन दिखाता है कि राणा अय्यूब जैसे लोग जो गोधरा के दंगों पर काल्पनिक कहानियों की किताब लिख चुकी है, वो ट्रूथ के प्रीवेल करने की बातें कर रही है!
वहीं, दूसरी मजेदार बात यह हुई कि ट्विटर अपने अलग लाइन पर चल रहा है। उसके एमडी ने कहा है कि वो तो सेल्स हेड है और वो ट्विटर के लिए काम करता है कि नहीं, वो भी उसे नहीं मालूम। उसने कहा कि उसे तो अपनी टीम के भी लोगों के नाम नहीं मालूम। सरकार अलग टेंशन में है कि ट्विटर को सात-आठ बार अंतिम चेतावनी देने और एक से तीन गिनने में बीस दिन गँवाने के बाद भी, ट्विटर ने अभी तक कोई अफसर नियुक्त नहीं किया है जो नियम कहते हैं। सरकार ट्वीट पर ट्वीट किए जा रही है कि ये गलत हो रहा है और आपके साथ तो अब ये होगा, वहीं ट्विटर ने सरकार से पूछ दिया है कि अगर ‘उँगली में अंगूठी, अंगूठी में नगीना’ है तो फिर ‘इट्स बीन लॉन्ग तेरी बीन सुने परदेसी, नागिन दिन गिन गिन गिन गिन गिन गिन गिन गिन गिन गिन मर गई’ में ‘गिन’ कितने बार आता है।
रवि शंकर प्रसाद तब से हाय फिडैलिटी ऑडियो सिस्टम लगवा कर ये गाना रिपीट मोड पर सुन रहे हैं ताकि ट्विटर को ट्वीट कर के करारा जवाब दिया जा सके कि भारत सरकार इतनी भी कमजोर नहीं है कि एक गाने में ‘गिन’ कितने बार आया है वो न बता सके। वहीं ट्विटर की चल यह है कि वो किसी भी स्थिति में जीत जाएगा क्योंकि अगर हमारी आईटी मिनिस्ट्री के मंत्री जी ने ‘गिन’ की संख्या 11 बताई तो कहेंगे कि ‘नागिन’ में भी तो ‘गिन’ है, और अगर बारह कहा तो कहेंगे कि हमने तो सिर्फ इंडिपेंडेट ‘गिन’ गिनने कहा था। फिर रवि शंकर प्रसाद जी ट्विटर पर लिखेंगे कि विदेशियों ने थॉमस रो के ही समय से हमें धोखा दिया है, जैक कोई नया नहीं है लेकिन इसका मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा।
सरकारी सूत्र बताते हैं कि रवि शंकर प्रसाद के मंत्रालय की तरफ से ट्विटर कार्यालय में एक नया नोटिस भेजा जा रहा है जिसमें यह पूछा जाएगा कि ‘दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन का तो दिल दिवाना लगता है’ में कितनी बार ‘दड़कन’ का प्रयोग हुआ है! सही उत्तर जानने के लिए रवि शंकर जी की ट्वीट पढ़ते रहिए।
नमस्कार