अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन (Antony Blinken) ने बुधवार (28 जुलाई, 2021) को राजधानी दिल्ली में तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा (Dalai Lama) के एक प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात की। इसकी जानकारी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने दी है।
अमेरिका के इस कदम से तिब्बत को चीन का अभिन्न हिस्सा मानने वाला चीन अब बौखला सकता है। इस अवसर पर ब्लिंकन ने कहा कि भारत और अमेरिका हमेशा से लोकतंत्र समर्थक रहे हैं और यह दोनों देशों के संबंधों का आधार भी है।
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने कहा, “सचिव ब्लिंकन को आज सुबह नई दिल्ली में दलाई लामा के एक प्रतिनिधि के साथ संक्षिप्त रूप से मिलने का अवसर मिला।”
अधिकारी ने बताया कि दलाई लामा के जिस प्रतिनिधि से अमेरिकी विदेश मंत्री ने मुलाकात की है उनका नाम Ngodup Dongchung है। ब्लिंकन ने दिल्ली में सिविल सोसायटी अन्य नेताओं के साथ Ngodup Dongchung से मुलाकात की।
Ngodup Dongchung केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं, जिसे कि निर्वासित तिब्बती सरकार के रूप में भी जाना जाता है। तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत से ही चल रही है।
अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन का भारत दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है, जब भारत-चीन और अमेरिका-चीन के बीच संबंध खराब चल रहे हैं।
ब्लिंकन ने अफ़ग़ानिस्तान के विषय पर भारत के साथ मिलकर काम करने की भी इच्छा जताई है। उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस बुलाने के बाद भी अमेरिका वहाँ के लोगों के हित के लिए काम करता रहेगा क्योंकि वो इलाके में शांति स्थापित करना चाहते हैं।
तिब्बत को चीन का हिस्सा बताने वाले वहीं ने धर्म गुरु दलाई लामा को ‘खतरनाक अलगाववादी’ करार दिया है। ब्लिंकन की डोंगचुंग के साथ मुलाकात तिब्बती नेतृत्व के साथ बेहद अहम माना जा रहा है। इससे पूर्व दलाई लामा ने वर्ष 2016 में चीन के भारी विरोध के बीच वाशिंगटन में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की थी।
चीन में मानवाधिकारों के हनन की बढ़ती बहस के बीच, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से हाल ही में सीटीए और तिब्बती समूहों को अंतरराष्ट्रीय समर्थन में बढ़ावा मिला है।
नवंबर माह में ही निर्वासित तिब्बती सरकार के पूर्व एवं तिब्बतियों के निर्वासित राजनीतिक नेता डॉक्टर लोबसांग सांगेय ने व्हाइट हाउस का दौरा किया, जो गत 6 दशकों में इस तरह की पहली यात्रा थी।
वर्ष 1950 में चीनी सैनिकों ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, जिसे बीजिंग ‘शांतिपूर्ण मुक्ति’ कहता है। 1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफ़ल विद्रोह के बाद दलाई लामा भारत आ गए थे।
17 मार्च को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल निकलने के बाद हिमालय पार करते हुए दलाई लामा ने 31 मार्च, 1959 को भारत में कदम रखा था। उन्हें भारत पहुँचने में 15 दिन लगे थे। दलाई लामा के भारत आने से कम्युनिस्ट शासन बेहद आक्रोशित था।