दस्ताने पहन शोषण करने वाले बच जाएँगे: रेप पर बॉम्बे HC के 'स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट' फैसले से SC नाराज

24 अगस्त, 2021
अटॉर्नी जनरल ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को अपमानजनक बताया है

बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादित ‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’ (Skin To Skin contact) फैसले पर आपत्ति जताते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को निरस्त करने की अपील की। उन्होनें बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को शर्मनाक और अपमानित करने वाला बताया।

दरअसल, इसी साल जनवरी माह में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा था अगर आरोपित और पीड़ित बच्ची या बच्चे के बीच ‘स्कीन टू स्कीन कॉन्टैक्ट’ नहीं हुआ है तो फिर आरोपित पर POCSO एक्ट नहीं लगाया जा सकता। अपने इस विवादित टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने आरोपितों को बरी करने का फैसला दिया था।

हालाँकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपितों को बरी करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत यौन हमले की परिभाषा पर दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा:

“अगर कल को कोई व्यक्ति सर्जिकल ग्लव्स पहनकर किसी महिला के पूरे शरीर को छूता है तो इस अपराध के लिए उसे हाईकोर्ट के विवादित फैसले के अनुसार यौन उत्पीड़न के लिए सजा नहीं दी जा सकेगी।”

उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में पॉक्सो के तहत 43,000 मामले दर्ज हुए हैं और इस परिभाषा के तहत कोई भी व्यक्ति ग्लव्स पहनकर किसी भी बच्चे पर यौन हमला कर सकता है और सजा से बच सकता है। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को ‘अपमानजनक मिसाल’ बताया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले में शमिल दोनों मामलों के आरोपितों की तरफ के केस लड़ने के लिए अदालत में कोई पेश नहीं हुआ, इसलिए जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने कहा कि आरोपितों की पैरवी सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी करे। इस मामले में अगली सुनवाई 14 सितंबर को होगी।

क्या था बॉम्बे हाईकोर्ट का विवादित फैसला

इसी साल जनवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक फैसले में कहा था कि किसी गतिविधि को यौन हमले की श्रेणी में तभी माना जाएगा, जब ‘यौन इरादे से स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट‘ हुआ हो। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि ‘सिर्फ जबरदस्ती छूना’ यौन हमले की श्रेणी में नहीं आएगा।

दरअसल हाईकोर्ट में एक यौन हमले के आरोपित की याचिका पर सुनवाई हो रही थी। 39 साल के आरोपित पर 12 वर्षीय नाबालिग लड़की से यौन शोषण का आरोप था। आरोपित को सेशन कोर्ट द्वारा लड़की के स्तन छूने और छेड़खानी के लिए यौन हमले का दोषी ठहराते हुए पोक्सो के तहत सजा सुनाई गई थी।

बाद में हाईकोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की सिंगल बेंच ने फैसला पलटते हुए आरोपित को POCSO अधिनियम की धारा-8 के तहत मामले से बरी कर दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि बिना कपड़े निकले केवल नाबालिग का सीना छूना या सलवार उतारना पॉक्सो के तहत यौन हमला नहीं कहलाएगा।

जज का कहना था कि यौन हमला तब कहलाएगा, जब आरोपित पीड़िता/पीड़ित के कपड़े हटाकर या कपड़ों में हाथ डालकरशारीरिक संपर्क करे। जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला का कहना था कि जानकारी के आभाव में इस घटना को यौन हमले की श्रेणी में नहीं रख सकते। जज ने कहा था कि ये मामला पॉक्सो के बजाय आईपीसी की धारा-354 के तहत महिला की लज्जा भंग करने का है।

आपको बता दें कि यह केस 2016 का था, जब आरोपित अमरूद देने के बहाने नाबालिग को अपने घर ले गया था। यहाँ उसने पीड़िता के साथ छेड़खानी की। जब वहाँ नाबालिग की माँ पहुँची तो उसने बेटी को रोते पाया। इसके बाद आरोपित के खिलाफ तुरंत एक एफआईआर दर्ज कराई गई थी।

इस मामले में सेशन कोर्ट अदालत ने आरोपित को नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ करने और उसकी सलवार निकालने के लिए यौन उत्पीड़न का दोषी पाया था और पॉक्सो के तहत सजा सुनाई थी।

बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने सेशन कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपित को बरी कर दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि इस तरह के कृत्य से आईपीसी की धारा 354 के तहत ‘छेड़छाड़’ का अपराध तो होगा, लेकिन ये पॉक्सो एक्ट की धारा 8 के तहत यौन शोषण नहीं होगा।

27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के तहत आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी थी। इस दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय अभूतपूर्व है और इससे ‘एक खतरनाक मिसाल कायम होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को हाईकोर्ट निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया था।



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