सत्ता सुंदरी के शौकीन, MY समीकरण के खिलाड़ी औरंगजेब से सीखना भूले तो नहीं?

19 अक्टूबर, 2021 By: आनंद कुमार
औरंगज़ेब - दारा शिकोह ही आज के तेजस्वी-तेजप्रताप हैं

मुझे औरंगजेब याद आता है।

अपने भाई दारा शिकोह की तुलना में वो राजधानी की राजनीति के बीच कम रहा था। उसने जंगों में मुगलिया फौजों को बर्बरता के आदेश दिए थे। जिस दौर में तलवार का जोर सत्ता की लगाम थमाता था, कुशल राजनैतिक-प्रशासनिक क्षमता नहीं, उस दौर में उसकी अच्छी पहचान अपने दौर के सभी क्रूरतम सिपहसालारों से अच्छी थी।

फिर मुझे तेजप्रताप यादव और उसके भाई तेजस्वी दिखते हैं जिसमें से एक – तेजप्रताप, अधिकांश पटना और वहाँ से कुल जमा डेढ़ सौ किलोमीटर दूर अपने चुनावी क्षेत्र तक आता-जाता है और दूसरा तेजस्वी, पूरे बिहार के चुनावी अभियानों में राजद का संचालन करता नजर आता है।

मुझे औरंगजेब याद आता है।

वो कट्टरपंथी था। अपने मत के अलावा सभी मतों को क्रूरतापूर्वक कुचल देने का आदेश उसके लिए आम बात थी। शत्रु बचे ही न, तो उससे मुकाबला भी नहीं करना पड़ेगा। ये सोचकर वो पूरी तरह दुश्मन को ख़त्म कर देने के पीछे पड़ा रहता था। इसकी तुलना में दारा शिकोह को सहिष्णु कहा जा सकता है। वो दूसरे मजहब-रिलिजन के विद्वानों को भी जगह देता था। दूसरी किताबों को अपनी भाषा में अनुवाद करवाने में भी रूचि लेता था।

फिर मुझे एक तेजस्वी दिखाई देता है जो अपने संगठनों के जरिए लगातार हमलावर रहता है। फिर मुझे दूसरा – तेजप्रताप नजर आता है जो विरोधी दल का होने के कारण बग्गा से मदद माँगने से चूकता नहीं। बिहार के निवासी जो दिल्ली में हैं, उन्हें कोरोना काल में खाना पहुँच जाए, इसके लिए वो इसके लिए वो भाजपा के तेजिंदर सिंह बग्गा से भी मदद माँग लेता है।

मुझे औरंगजेब याद आता है।

स्त्रियों के प्रति औरंगज़ेब के नियम कठोर थे। उस दौर में मुग़ल शहजादियों को तो शादी करने तक की इज़ाजत नहीं होती थी। कहते हैं उसके बाप शाहजहाँ ने तो अपनी बेटी जहाँआरा के प्रेमी को जिन्दा ही पानी में उबलवा दिया था। इसकी तुलना में दारा शिकोह को देखें तो मुग़ल शहजादियों ने औरंगज़ेब के खिलाफ उसकी मदद की ही इसीलिए थी, क्योंकि दारा शिकोह ने बादशाह बनने पर उन्हें शादी करने की छूट देने का वादा किया था।

फिर मुझे राँची के पास दशम वाटरफाल्स पर हुई अभिषेक की मौत की वारदात याद आती है। हाल की रक्षाबंधन की तस्वीरों में बहन के साथ तेज प्रताप भी याद आ जाते हैं।

मुझे औरंगज़ेब याद आता है।

युद्ध जीतने के लिए संधियाँ करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। असम पर हमला करने के लिए उसने जिनसे संधियाँ की, वो तो अकबर के दौर से ही मुग़ल सल्तनत का हुक्म मानने को तैयार नहीं थे। ऐसे ही जिससे जीवन भर शत्रुता निभाई हो, उस छत्रपति शिवाजी से भी संधियाँ करते रहने से उसे परहेज नहीं था। नाक की लड़ाई के बदले युद्धों में स्थाई जीत पर उसे अधिक भरोसा था। इसकी तुलना में मुगलों के पुराने शत्रु रहे राजाओं से संधि करके दारा शिकोह अपनी शक्ति बढ़ा नहीं रहा था।

फिर मुझे तेजस्वी दिखते हैं जो उन कम्युनिस्टों को परदे के पीछे से मदद देकर अपनी जीत सुनिश्चित करते हैं, जिनका बिहार में खात्मा खुद उनके पिता लालू ने ही अपने काल में किया था। दूसरी तरफ तेजप्रताप होते हैं, जो राजद के पुराने विरोधी माने जाने वाले संघ से नजदीकी नहीं बढ़ाते बल्कि उनको सार्वजनिक रूप से कोसने से कभी नहीं चूकते।

मुझे औरंगजेब याद आता है।

असल में दारा शिकोह उससे लड़ने की कोई कोशिश भी नहीं कर रहा था जब सत्ता पर कब्ज़ा जमाकर औरंगज़ेब तैयार हो गया। कहीं दूर धीमे चलने वाले हाथी पर सवार होकर दारा शिकोह उससे लड़ने उतरा भी था तो आधे मन से। उसे क्या पता था कि एक बार हार हुई तो सिर्फ सत्ता नहीं, जान भी जाएगी। कोई दूसरा भी अगर औरंगजेब को चुनौती देने उठेगा तो शुज़ा वाला हाल किया जाएगा।

फिर मुझे बेरहमी से तेजप्रताप को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर पार्टी की सत्ता पर कब्ज़ा जमाता हुए तेजस्वी दिखता है। शायद वो तेजप्रताप सोच रहा हो कि सिर्फ सत्ता गई है। जैसा कभी साधू यादव और सुभाष यादव के साथ हुआ था, वैसे ही उसे भी सिर्फ बाहर का रास्ता दिखाकर छोड़ दिया जाएगा।

बाकि सवाल ये है कि जैसे मुझे औरंगज़ेब याद आता है, वैसे ही औरों को भी याद आएगा या नहीं? सत्ता सुंदरी का साथ पाने के शौक़ीन, माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण के खिलाड़ी, पुराने मुस्लिम बादशाह से सीखना भूले तो नहीं होंगे न?



सहयोग करें
वामपंथी मीडिया तगड़ी फ़ंडिंग के बल पर झूठी खबरें और नैरेटिव फैलाता रहता है। इस प्रपंच और सतत चल रहे प्रॉपगैंडा का जवाब उसी भाषा और शैली में देने के लिए हमें आपके आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। आप निम्नलिखित लिंक्स के माध्यम से हमें समर्थन दे सकते हैं: