बिना सहमति महिला के पैर छूना उसकी शील भंग करने जैसा: बॉम्बे हाईकोर्ट

29 दिसम्बर, 2021 By: DoPolitics स्टाफ़

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक बयान में कहा है कि किसी महिला की सहमति के बिना उसके शरीर के किसी भी हिस्से को छूना, विशेष रूप से रात में किसी अजनबी द्वारा छूना, भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दंडनीय अपराध है और यह महिला का शील भंग करने के बराबर है।

‘परमेश्वर धागे बनाम महाराष्ट्र राज्य’ मामले में सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने रात में सोते समय एक महिला के पैर छूने के लिए आरोपित को दी गई एक साल की सजा को बरकरार रखा है।

हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमजी सेवलीकर ने परमेश्वर धागे द्वारा दायर अपील याचिका खारिज कर दी, जो उसने एक निचली अदालत द्वारा एक महिला के पैर छूने के लिए सुनाई गई एक साल की जेल की सजा के खिलाफ दायर की थी। कोर्ट ने सजा बरकरार रखते हुए कहा, 

“किसी महिला की सहमति के बिना उसके शरीर के किसी हिस्से को छूना, वह भी रात के समय और किसी अजनबी द्वारा, एक महिला की मर्यादा का उल्लंघन है।”

अदालत ने कहा, “आरोपित पीड़िता के चरणों में उसकी खाट पर बैठा था और उसके पैर छू रहा था जबकि वह सो रही थी। इस व्यवहार से यौन मंशा की बू आती है। वरना रात के इतने विषम समय में आरोपित के पीड़िता के घर में रहने का कोई कारण नहीं था। आरोपित द्वारा यह महिला की शालीनता को भंग करने का प्रयास था।”

घटना 4 जुलाई की जब शिकायतकर्ता महिला और उसकी सास-ससुर घर पर थे, जबकि उसका पति शहर से बाहर था। आरोपित परमेश्वर धागे, जो उसका पड़ोसी है, रात करीब 8 बजे उसके घर आया था और उसके पति के बारे में पूछताछ की थी। इस दौरान महिल ने बताया कि उसके पति बाहर हैं और रात में घर नहीं लौटेंगे।

शिकायतकर्ता बाद में घर का मुख्य दरवाजा बंद करके सो गई, लेकिन उसने अपने कमरे का दरवाजा बंद नहीं किया। रात करीब 11 बजे जब शिकायतकर्ता महिला गहरी नींद में थी, तो उसे लगा कि कोई उसके पैर छू रहा है। जब वह ठीक से नींद से जागी तो उसने देखा कि आरोपित उसके पैरों के पास बैठा है और उसके पैरों को छू रहा है।

इस पर महिला चौंक कर चिल्लाने लगी। उसकी चीख से उसके सास-ससुर की नींद खुल गई, जिसके बाद आरोपित हंगामा करते हुए भाग गया। अगली सुबह पति के लौटने के बाद महिला ने आरोपित के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

मामले में निचली अदालत ने आरोपित आईपीसी की धारा 451 (घर में अतिचार) और 354ए (यौन उत्पीड़न) के तहत दोषी ठहराया और उन्हें एक साल कैद की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आरोपित ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

मुकदमे के दौरान, बचाव पक्ष पूरी तरह से इस बात से इनकार करता रहा कि आरोपित घटना वाली रात, घटनास्थल पर ही मौजूद नहीं था। अंत में बचाव पक्ष द्वारा तर्क दिया गया कि सामान्य परिस्थितियों में महिलाएँ अंदर से दरवाजा बंद कर लेती हैं, चूँकि शिकायतकर्ता महिला ने ऐसा नहीं किया, यह संकेत देता है कि आरोपित महिला की सहमति से अंदर आया था।

सारी दलीलें खारिज होने के बाद अंत में बचाव पक्ष द्वारा यह तर्क दिया गया कि आरोपित ने केवल महिला के पैर छूने की कोशिश की थी और उसका कोई यौन इरादा नहीं था।

कोर्ट द्वारा पूछताछ करने पर बचाव पक्ष इस बात का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया कि आरोपित आधी रात को महिला के घर में क्यों मौजूद था, जबकि आरोपित को शाम को ही पीड़िता से पता चल गया था कि रात में उसका पति घर में मौजूद नहीं रहेगा।

कहीं कपड़ो के ऊपर से छूना अपराध नहीं तो कहीं पैर छूने पर जेल: बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसलों में विरोधाभास

दिलचस्प बात ये हैं कि इसी बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले में आरोपित को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि कपड़ो के ऊपर से छूना यौन अपराध नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पॉक्सो के एक आरोपित को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को उसके कपड़ों से ऊपर से टटोलना यौन उत्पीड़न के अंतर्गत नहीं आता।

जज ने फैसले में कहा था कि 12 वर्ष की आयु के बच्ची के स्तन को दबाने का कृत्य ‘यौन हमले’ की परिभाषा में नहीं आएगा क्योंकि आरोपित ने कपड़े हटाकर स्तन को नहीं दबाया और न उसने अपना हाथ ऊपर से डाल उसके स्तन को दबाया। हालाँकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि धारा 8 पॉक्सो के तहत अपराध सूचीबद्ध करने के लिए ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क होना चाहिए, इसलिए यह अपराध POCSO की धारा 8 के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ का अपराध नहीं है। अतः आरोपित पर धारा 354 आईपीसी के तहत सिर्फ ‘छेड़छाड़’ के अपराध के तहत मामला चलेगा।

एक अन्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि एक नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की ज़िप खोलने का कृत्य यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत ‘यौन हमले’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता। दोनों फैसले बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने पारित किए थे जिन्हें बाद सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया था।



सहयोग करें
वामपंथी मीडिया तगड़ी फ़ंडिंग के बल पर झूठी खबरें और नैरेटिव फैलाता रहता है। इस प्रपंच और सतत चल रहे प्रॉपगैंडा का जवाब उसी भाषा और शैली में देने के लिए हमें आपके आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। आप निम्नलिखित लिंक्स के माध्यम से हमें समर्थन दे सकते हैं: