भारतीयों ने अंग्रेजों की गुलामी का समय कई ऐसे कई बलिदान दिए जिनका न तो अंग्रेजी इतिहास और न ही भारतीय इतिहास में कोई उल्लेख है। गुलामी के समय न केवल भारतीयों ने अंग्रेजों के लिए लड़ाइयाँ लड़ीं बल्कि ऐसी भी लड़ाइयों में हिस्सा लिया जिनका उनसे और उनके देशवासियों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। इन युद्धों में लाखों भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त भी हुए।
ऐसे ही पंजाब के 3,20,000 सैनिकों से जुड़े दस्तावेज़ पाकिस्तान के लाहौर संग्रहालय के एक तहखाने में मिले हैं। इन्हें अब डिजिटल शक्ल देकर 11 अक्टूबर, 2021 को एक वेबसाइट द्वारा प्रकाशित किया गया।
इनमें इन 3,20,000 सैनिकों के प्रथम विश्वयुद्ध (World War I: July 28, 1914 -November 11, 1918) में अपनी वीरता का परचम लहराने के साक्ष्य मौजूद है।
प्रथम विश्वयुद्ध के समय सैनिकों की भर्ती का प्रमुख क्षेत्र पंजाब ही था और भारतीय सेना में लगभग एक तिहाई पंजाब से आने वाले ही लोग हुआ करते थे, परंतु इनमें से कई लोगों को न तो अंग्रेजी इतिहास न ही भारत के इतिहास की किताबों में कोई खास जगह मिली है। यह रिकॉर्ड पिछले 97 सालों से तहखानों में पड़ा धूल फाँक रहा था और ये सभी वीर सैनिक भी गुमनाम थे।
ब्रिटेन और आयरलैंड के सैनिकों की कई पीढ़ियों और वहाँ के इतिहासकारों के पास उनके पूर्वज रहे सैनिकों का डेटाबेस तो था, परंतु भारत के सैनिकों के परिवारों के पास ऐसा कुछ नहीं था। इसी कारण पंजाबी मूल के कई ब्रिटिश नागरिकों ने अपने पूर्वजों के विषय में यह जानकारी निकालने के लिए दस्तावेज़ खंगालने का आग्रह किया।
इनमें यह पाया गया कि प्रथम विश्वयुद्ध में फ्रांस, मध्य पूर्व, पूर्वी अफ्रीका के साथ-साथ भारत के भी लाखों लोगों ने अपना योगदान दिया था।
ब्रिटेन की लेबर पार्टी के मंत्री एवं सिख सांसद तनमनजीत ढेसी ने ऐसी कई फाइलों को ढूँढ कर सामने रखा जिन से यह तथ्यात्मक तौर पर साफ हुआ कि उनके परदादा ने इराक में अपना योगदान दिया था। वहाँ वे युद्ध में घायल हो गए थे और अपना एक पैर भी गँवा दिया था।
बताया जा रहा है कि यह 26,000 पृष्ठों में ‘रजिस्टर’ में वर्णित सैनिकों का विवरण आश्चर्यजनक रूप से इन परिवारों के पास मौजूद छोटे विवरणों से मेल खाता है। इस रिकॉर्ड में अविभाजित पंजाब के 28 ब्रिटिश प्रशासित जिलों के 40 खंडों (हस्तलिखित और टाइपराइटर, दोनों में) के आँकड़े हैं।
इसके साथ ही ब्रिटेन के पंजाब हेरिटेज एसोसिएशन के प्रमुख अमनदीप मदरा ने भी बताया कि पंजाब जिसे ‘भर्ती मैदान’ भी कहा जाता था, वहाँ के लाखों सैनिकों ने कई युद्धों में अपनी सेवाएँ दीं परंतु उनका योगदान आज तक कहीं छापा नहीं गया।
शैडो रेल मंत्री ढेसी ने बताया कि कैसे उनकी दादी अपने पिता मिहान सिंह के बारे में उन्हें कहानी सुनाया करती थीं और लाहौर म्यूजियम से निकाले गए रिकॉर्ड में यह साफ हुआ कि मिहान सिंह पंजाब के होशियारपुर ज़िले से भर्ती किए गए 16,000 सैनिकों में से एक थे और वे मेसोपोटामिया क्षेत्र में अपनी सेवाएँ देते हुए घायल भी हुए थे।
ढेसी ने इस मामले में कहा:
“मैं अक्सर इस विषय में सोचता था कि क्या हुआ होगा, परंतु कोई सही तौर पर बता नहीं पाता था। वे घायल होकर अपने घर वापस आए और खेती बाड़ी में लग गए। निकाला गया यह रिकॉर्ड इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों के लिए लड़ाइयाँ लड़ी थीं। इससे केवल मेरे परिवार का ही नहीं बल्कि सभी राष्ट्रमंडल देशों के लोगों का इन युद्धों में दिया गया योगदान और बलिदान साबित होता है।”