क्यों चल रही है हिजाब, बुर्का उतार फेंकने की मुहिम? कौन हैं ये स्त्रियाँ?

22 जनवरी, 2022 By: पुलकित त्यागी
हिजाब के विरुद्ध एकजुट होकर खड़ी हुईं मिडिल ईस्ट की महिलाएँ

गत वर्ष विश्व ने देखा कि किस प्रकार एक कट्टर इस्लामी विचारधारा ने न केवल अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया है अपितु इसके बाद से ही उस देश में न केवल महिलाओं के, बल्कि आम नागरिकों के भी अधिकारों का कोई मूल्य नहीं रह गया है। तालिबान अफ़गानिस्तान में शरिया स्थापित करने को आतुर है और इसके नतीजे धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं।

जहाँ एक ओर अफगानिस्तान, सीरिया समेत खाड़ी देशों कि कई महिलाएँ शरिआ कानूनों से लड़ने और अपनी पहचान और अस्तित्व को बचाने का प्रयास कर रही हैं, वहीं पश्चिम में एक वोक लिबरलों का धड़ा ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ के नाम पर अपना एजेंडा चलाने में लगा है।

नज़मा खान नाम की एक अमेरिकी नागरिक ने ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ नामक एक संस्था की स्थापना की है। यह डेढ़ सौ से अधिक देशों में अपने विचारों के फैलने का दावा करते हैैं। आने वाली 1 फरवरी, 2022 को मुख्यतः अमेरिका, कनाडा में बसा यह वोक और लिबरल धड़ा दुनिया भर में ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ मनाने की बात कह रहा है।


न केवल पश्चिमी देशों में बल्कि भारत में भी इस विचारधारा के कई समर्थक हैं जो मुस्लिम महिलाओं के बुर्के और हिजाब में ढके रहने को सशक्तिकरण मानते और बताते हैं।

अब इन तालिबानी मानसिकता से ग्रस्त लोगों के विरुद्ध कई ईरान, अफगानिस्तान और मिडिल ईस्ट की महिलाएँ उठ खड़ी हुई हैं और उन्होंने हिजाब और बुर्के जैसी गुलामी की निशानियों को त्यागते हुए स्वतंत्रता माँगना प्रारंभ कर दिया है।

‘हिजाब नहीं है मेरी पहचान’ 

ईरान की एक पत्रकार और आंदोलनकारी मसीह अलीनजद (Masih Alinejad) ने मुखर होकर न केवल इस पूरे प्रकरण का खंडन किया है बल्कि वे लगातार अमेरिका और पश्चिम में रहने वाली इन वोक महिलाओं को खाड़ी देशों और शरिया कानूनों की वास्तविकता से अवगत करा रही हैं। वे इस्लामी कानूनों से चलने वाले देशों में रहने वाली महिलाओं की पीड़ा दुनिया भर को बता रही हैं।

मसीह ने एक #LetUsTalk नामक अभियान चलाया है, जिसमें वे अफ़ग़ानिस्तान, ईरान जैसे कई शरिया कानूनों से चलने वाले देशों में मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न और शोषण के विषय में बताती हैं। इस विषय में उन्होंने ट्विटर पर भी कई पोस्ट और वीडियो साझा किए हैं। ऐसी ही एक वीडियो में मसीह अपनी स्थिति बताते हुए कहती हैं:

“इस्लामिक रिपब्लिक मुझसे इस तरह (हिजाब के साथ) रहने की माँग करता है। आईएस(IS) और तालिबान भी मुझसे ऐसी ही माँग करता है, परंतु मेरी असली पहचान इस तरह (हिजाब के बिना) है।”

वे आगे ईरान में महिलाओं की स्थिति बताते हुए कहती हैं:

“ईरान में मुझसे कहा गया कि अगर मैं अपना हिजाब हटाती हूँ, तो गॉड द्वारा मुझे मेरे बालों से लटकाया जाएगा। मुझे मेरे स्कूल से निकाल दिया जाएगा, जेल में डाला जाएगा, मुझ पर जुर्माना लगेगा और बीच सड़क पर मुझे हर रोज़ कथित नैतिकता के रखवालों द्वारा पीटा जाएगा। अगर मेरा बलात्कार भी होता है तो वह भी मेरी ही गलती होगी। अगर मैं हिजाब नहीं पहनती हूँ तो मैं अपने ही देश में एक महिला के तौर पर नहीं रह सकती।”


आगे मसीह ने बताया कि पश्चिमी देशों में उनसे यह कहा गया कि अगर वे अपने इस अनुभव को साझा करती हैं और अपनी कहानी बताती हैं तो वे इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दे रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे शरिया कानूनों और उन सब यातनाओं से घबराई हुई हैं जो उन्होंने अनुभव किए हैं। 

विरोध करने पर 24 वर्ष जेल में 

फोबिया एक बिना किसी तर्क के भय को कहा जाता है परंतु मसीह जैसी लाखों महिलाएँ जो खाड़ी देशों में शरिया कानूनों के बीच रहकर यातनाएँ झेल रही हैं, उनकी पीड़ा कुतर्की नहीं बल्कि सत्य है।

इसके साथ ही सोशल मीडिया पर कई ऐसी महिलाओं की निजी कहानियाँ और अनुभव सामने आए जिनमें उन्हें केवल हिजाब न पहनने के कारण यातनाएँ सहनी पड़ी हैं।

बता दें कि ईरान की ही रहने वाली 22 वर्ष की सबा अफशरी महिला अधिकारों की रक्षक थीं। उन्होंने ईरान में हिजाब को अनिवार्य करने के विरुद्ध खूब अभियान चलाया, जिसके कारण सबा को 3 जून, 2020 को 24 वर्षों की सज़ा सुनाई गई। भारी विरोध के बाद इस दंड को घटाकर 7.5  वर्ष का कर दिया गया।

इसी तरह 24 वर्ष की यास्मन अरियानी ने जब बिना हिजाब के लोगों के बीच आने का कृत्य किया और हिजाब का विरोध किया तो उन्हें भी इस अपराध के लिए 16 वर्षों की सज़ा सुना दी गई। यास्मन और सबा की तरह ईरान समेत अफगानिस्तान और कई शरिया कानूनों से चलने वाले मुल्कों में महिलाओं को हिजाब के विरुद्ध बोलने पर मौत की सज़ा तक हुई हैं।

मसीह के परिवार का उत्पीड़न 

मसीह अपने इस #LetUsTalk अभियान में दुनियाभर की नारीवादी महिलाओं से मदद की आशा करती हैं और कहती हैं कि 21वीं सदी में वे अपनी असली पहचान के साथ रहना चाहती हैं न कि उत्पीड़न सहते हुए। उन्होंने यह भी कहा कि सभी सम्प्रदायों की भाँति इस्लाम की भी आलोचना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

सोशल मीडिया पर दुनिया भर के कई समूह इस ईरानी महिला के समर्थन में भी सामने आए हैं परंतु पश्चिमी वोक और कथित लिबरल समाज मसीह पर निरंतर दबाव डालने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने बताया कि उनके साथ-साथ उनके परिवार को भी निशाना बनाया जा रहा है।


उनके भाई को 2 वर्षों के लिए जेल में डाला गया, उनकी 70 वर्षीय माँ की पूछताछ हुई, उनकी बहन को भी टीवी पर सबके सामने लाकर मसीह के विरुद्ध करने का प्रयास किया गया। मसीह ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में अपने अपहरण किए जाने के प्रयास का भी आरोप लगाया है।

जहाँ दुनिया के बड़े-बड़े मीडिया समूह मसीह और उनके जैसी कई इस्लामी कानूनों से पीड़ित महिलाओं का पक्ष रखना तो दूर बल्कि उनके विरुद्ध एजेंडा चला रहे हैं, वही DW यानी Deutsche Welle ने मसीह समेत उनके जैसी कई महिलाओं को मंच देकर अपनी बात रखने का अवसर दिया है।

मसीह इसके लिए DW का धन्यवाद करते हुए लिखती हैं:

“Deutsche Welle का बहुत धन्यवाद कि उन्होंने हमारे हिजाब के विरुद्ध #LetUsTalk अभियान को आवाज़ दी।  मिडिल ईस्ट के महिलाएँ एकजुट होकर उठ खड़ी हुई हैं और अब #NoHijabDay के लिए तैयार हैं। अब मेनस्ट्रीम मीडिया हम पर और हमारी मुहिम पर ध्यान दे रहा है। हमारा साथ दें।”




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