उत्तराखंड राज्य में स्थित केदारनाथ में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर चौंकाने वाली खबर सामने आई है। सोमवार (1 नवंबर, 2021) को त्रिवेंद्र सिंह रावत केदारनाथ पहुँचे तो वहाँ के तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय लोगों ने उनका जमकर विरोध किया।
त्रिवेंद्र सिंह रावत को मंदिर के अंदर तक नहीं जाने दिया गया। विरोध और नारेबाजी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री बाबा केदार के दर्शन किए बिना जीएमवीएन के गेस्ट हाउस में लौट गए।
उत्तराखंड राज्य में देवस्थानम बोर्ड भंग न होने के कारण बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री यमुनोत्री धामों के लगभग सभी तीर्थ पुरोहितों में भारी आक्रोश और विरोध के स्वर दिखाई देते हैं। भाजपा द्वारा त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से हटा देने का भी यह एक कारण बताया जा रहा था और इसी का एक उदाहरण सोमवार को केदारनाथ में देखने को मिला।
सोमवार (1 नवंबर, 2021) को रावत जब केदारनाथ पहुँचे तो वहाँ के स्थानीय लोगों ने तीर्थ पुरोहितों के साथ मिलकर उनका भारी विरोध किया और पूर्व सीएम रावत को संगम पुल से आगे तक नहीं बढ़ने दिया गया। इस दौरान स्थानीय लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री के विरुद्ध खूब नारेबाजी भी की।
बता दें कि सरकार द्वारा बार-बार वादा किए जाने के बाद भी देवस्थानम बोर्ड एवं एक्ट वापस न लेने की बात पर तीर्थ पुरोहितों में भारी गुस्सा है और उन्होंने इस बात की पहली भी चेतावनी दी थी कि वे नेताओं का केदारनाथ और बद्रीनाथ में प्रवेश नहीं होने देंगे।
इसके साथ ही पुरोहितों ने विरोध प्रदर्शन में सोमवार को गंगोत्री बंद रखने का भी निर्णय लिया था। इसके बावजूद रावत केदारनाथ पहुँचे और उन्हें जनता के रोष का सामना करना पड़ा।
पूरे विवाद से संबंधित केदारनाथ के संगम पुल का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर खासा वायरल हो रहा है जिसमें लोग “वापस जाओ-वापस जाओ” के नारे लगाते और विरोध प्रदर्शन करते देखे जा सकते हैं।
श्री पंच गंगोत्री मंदिर समिति के तीर्थ पुरोहितों और हक हकूकधारियों ने एक बैठक में देवस्थानम बोर्ड और एक्ट पर चर्चा की थी। इसमें यह कहा गया था कि 11 सितंबर को मुख्यमंत्री के साथ हुई वार्ता में 30 अक्टूबर तक देवस्थानम बोर्ड भंग करने की बात कही गई थी, परंतु अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है और अगर जल्द ही इस पर करवाई नहीं हुई तो सरकार को एक उग्र आंदोलन देखने को मिल सकता है।
बता दें कि यह पूरा मामला अगले वर्ष होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भी एक अहम मुद्दा माना जा रहा है और यह सत्ताधारी भाजपा पार्टी को चुनावों में खासा नुकसान पहुँचा सकता है।