पंजाब में बढ़ते ईसाई धर्मान्तरण पर अकाल तख्त ने जताई चिंता, SGPC चलाएगा अभियान

13 अक्टूबर, 2021
पंजाब में बढ़ते मिशनरियों के कन्वर्जन पर बोले अकाल तख़्त जत्थेदार

पंजाब में लंबे समय से चल रहा ईसाई मिशनरियों द्वारा सिखों का पंथ परिवर्तन अब कोई छुपी बात नहीं है। इस विषय में अब अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।

अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने मंगलवार (12 अक्टूबर, 2021) को कहा कि ईसाई मिशनरी पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में ज़बरन पंथ परिवर्तन के लिए एक अभियान चला रहे हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने इसका मुकाबला करने के लिए अब एक अभियान प्रारम्भ किया है।

अकाल तख़्त जत्थेदार ने आगे अपने बयान में कहा:

“ईसाई मिशनरी पिछले कुछ वर्षों से सीमा के आस-पास के इलाकों में ज़ोर-ज़बरदस्ती से पंथ परिवर्तन के लिए एक अभियान चला रहे हैं। ये लोग निर्दोष लोगों को ठग रहे हैं साथ ही अपना पंथ बदल लेने के लिए लालच तक दिया जा रहा है। हमें इन मामलों की कई रिपोर्ट्स मिली हैं।”

बता दें कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह दलित सिख समुदाय से आते हैं। अमृतसर में दलित और सिख संगठनों ने स्वर्ण मंदिर और अकाल तख्त में प्रवेश और काढ़ा प्रसाद चढ़ाने को लेकर दलित सिखों के अधिकार की बहाली की 101वीं वर्षगाँठ मनाई गई।

माना जाता है कि 12 अक्टूबर, 1920 की उस घटना ने एसजीपीसी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी अवसर पर जत्थेदार ने पंथ परिवर्तन के महत्वपूर्ण विषय को लेकर चर्चा की। 


उन्होंने कहा कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस ज़बरन पंथ परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए ‘घर घर अंदर धर्मसाल’ अभियान शुरू किया है। पंथ परिवर्तन सिख धर्म पर एक खतरनाक हमला है। इस अभियान के तहत सिख प्रचारक अपने धर्म पर साहित्य बाँटने के लिए गाँवों का दौरा कर रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा:

“धर्म अध्यात्म का विषय है। ज़बरन पंथ परिवर्तन या किसी को फुसलाना कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। ज़बरन पंथ परिवर्तन के विरुद्ध अभियान को मजबूत करने में सभी सिखों को एसजीपीसी का समर्थन करना चाहिए, जो हमारे लिए एक बहुत ही गंभीर चुनौती है।”

‘गरीबी बनाती है दलितों को आसान निशाना’

जत्थेदार के बयान पर अपने विचार साझा करते हुए अमृतसर में रहने वाले दलित और अल्पसंख्यक संगठन पंजाब के प्रमुख डॉ कश्मीर सिंह ने कहा कि इस तरह के पंथ परिवर्तन के पीछे कई कारण हैं। एक कारण गाँवों में दलितों के साथ होने वाला भेदभाव भी है। साथ ही दलितों में अशिक्षा और गरीबी है, जो उन्हें मिशनरियों का आसान निशाना बनाती है और पंथ परिवर्तन करके उन्हें विदेशों में बसने में भी मदद मिकलती है।  

उन्होंने आगे कहा: 

“मिशनरियों के लोग दलितों को बहलाने फुसलाने के लिए उनके घर जाते हैं। एसजीपीसी की ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं है। हमें इस तरह के पंथ परिवर्तन को रोकने के लिए दलित समुदाय के एसजीपीसी प्रचारकों और एसजीपीसी और उसके संस्थानों में अधिक दलित प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान अकाल तख्त जत्थेदार एक दलित सिख हैं परन्तु समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। साथ ही उन्होंने दलित सिखों को एसजीपीसी में प्रमुख पदों पर भर्ती करने, और एसजीपीसी के तहत सभी शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में मुफ्त शिक्षा देने का भी आह्वान किया।



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