उत्तराखंड के एक प्रतिष्ठित स्कूल पर अपने सभी धर्मों के छात्रों पर ‘हलाल’ मीट थोपने का मामला सामने आया है। हिन्दू और सिख बच्चों को भी अनिवार्य रूप से हलाल मीट खिलाने को लेकर देहरादून का वेल्हम बॉयज स्कूल विवादों में घिर गया है। सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि शिक्षा के मंदिर में इस तरह धार्मिक आधार पर खाने पीने की चीजों को थोपा जाना स्कूल प्रशासन पर सवाल खड़े कर रहा है।
देहरादून का प्रतिष्ठित वेल्हम बॉयज स्कूल एक टेंडर नोटिस को लेकर सवालो में घिर गया है। स्कूल के किचन आइटम से सम्बंधित टेंडर में स्कूल ने सिर्फ हलाल मीट का जिक्र किया है, जिस पर हिंदू संगठनों ने ऐतराज जताया है।
हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि स्कूल प्रशासन मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ हिंदू और सिख बच्चों को जबरन हलाल मीट खिलाना चाहता है।
दरअसल देहरादून के वेल्हम बॉयज स्कूल ने छात्रों के खाने पीने की सामग्री की सप्लाई के लिए एक टेंडर निकाला है। टेंडर किचन सामग्री और खाने-पीने की जरूरी वस्तुओं के साथ मीट का भी उल्लेख है।
विवाद की वजह यह है कि इस नोटिस में अनिवार्य रूप से सिर्फ हलाल मीट का ही जिक्र किया गया है। हलाल मीट एक समुदाय विशेष के लोग ही खाते हैं, जबकि विद्यालय में सभी धर्मों के लोग पढ़ते हैं, जिनके लिए हलाल मीट खाना मना है।
यह टेंडर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद हिंदू संगठनों में उबाल है। लोगों ने भी सोशल मीडिया पर उत्तराखंड सरकार और स्कूल प्रशासन की नियत पर सवाल उठाते हुए कड़ा ऐतराज जताया है।
लोगों का कहना है कि एक समुदाय विशेष के लिए तुष्टीकरण की हद पार करते हुए स्कूल प्रशासन द्वारा हिंदू और सिख बच्चों को जबरन हलाल मीट खिलाया जा रहा है। तमाम हिंदूवादी संगठनों ने स्कूल के इस कदम को हिंदू-विरोधी कदम बताया है।
इस मामले पर संज्ञान लेते हुए विश्व हिंदू परिषद ने भी कड़ी नाराजगी जताते हुए पूछा है कि अगर स्कूल में ‘हलाल’ मीट खिलाया जा रहा है तो साथ ‘झटका’ मीट क्यों नहीं खिलाया जा रहा? स्कूल में सभी धर्मों के बच्चों को एक प्रकार का ही हलाल मीट क्यों खिलाया जा रहा है?
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय शंकर तिवारी ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है – “देहरादून के वेल्हम बॉयज़ स्कूल ने, जहाँ 90% हिन्दू बच्चे पढ़ते हैं, हलाल मीट के लिए निविदाएँ माँगी हैं, जो बलात थोपने वाला अपराध है। वेल्हम स्कूल अपनी निविदा वापस ले और हिन्दुओं से माफी माँगे, अन्यथा कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार हो जाए।”
विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने स्कूल प्रशासन से तुंरन्त ही हलाल मीट की अनिवार्यता वाले इस टेंडर को वापस लेने को कहा है। हिंदूवादी संगठनों इसके खिलाफ जल्द ही बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
हलाल और झटका मीट को लेकर अतीत में भी तमाम तरह के विवाद होते रहे हैं, लेकिन शिक्षा के मंदिर में, जहाँ सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं, इस तरह धार्मिक तुष्टिकरण करते हुए हलाल मीट परोसना स्कूल प्रशासन की नियत पर सवाल खड़े करता है।
हलाल की तकनीक विशिष्ट समुदाय (मुस्लिम) के लोग ही करते हैं। हलाल प्रक्रिया में जानवर को इस तरह काटा जाता है कि शरीर से रक्त की अंतिम बूंद निकलने तक वो जिंदा रहे। हलाल की प्रक्रिया पशु के लिए बेहद दर्दनाक होती है।
हलाल विधि में जानवर की गर्दन को थोड़ा सा काट कर छोड़ दिया जाता है, जिसके बाद जानवर की धीरे-धीरे खून बहने से तड़प-तड़प कर मौत हो जाती है। गौरतलब है कि मुसलिम समुदाय में सिर्फ हलाल विधि से काटे गए जानवरों का ही माँस खाना स्वीकार माना गया है।
पशुओं को मारने की ‘झटका’ विधि में जानवर को काटने से पहले उसकी रीढ़ पर प्रहार किया जाता है, जिसमें उसकी तुरंत मौत हो जाती है। कई बार जानवर को काटने से पहले शॉक देकर उसके दिमाग को सुन्न किया जाता है, ताकि उसे दर्द का एहसास न हो।
झटका विधि में एक धारदार हथियार से जानवर के सिर को एक बार में ही धड़ से अलग कर दिया जाता है जबकि हलाल प्रक्रिया में उसे तड़पाया जाता है। मांसाहार करने वाले हिंदू और सिख समुदाय के लोग ‘झटका’ मीट खाते हैं।
देश मे करोड़ो रुपए का माँस व्यापार चुनिंदा लोगों की लॉबी के हाथों में है। माँस के व्यापार में झटका माँस के व्यापारियों की कोई जगह नहीं है, सारे व्यापार में हलाल माँस व्यापारियों का क़ब्ज़ा हो गया है। पाँच सितारा होटल से लेकर, छोटे रेस्त्रां, ढाबे, ट्रेन की पैंट्री और सशस्त्र बलों तक में हलाल माँस की ही आपूर्ति की जाती है।
बूचड़खानों का निरीक्षण भी निजी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है और एक मुस्लिम धर्म गुरु के प्रमाण देने पर ही ‘एपीडा’ (APEDA) द्वारा उसका पंजीकरण किया जाता है। इस मामले में झटका कारोबारियों के साथ अन्याय होता है, जिसकी वजह से वो बाजार में जगह ही नहीं बना पाते। नतीज़ा ये होता है कि पूरे देश मे सब पर ज़बरन ‘हलाल’ माँस थोपा जा रहा है, जो कि एक प्रकार का आर्थिक बहिष्कार कहा जा सकता है।
चीन और वियतनाम जैसे देश, जहाँ हलाल और झटके का कोई मुद्दा नहीं है, वहाँ भी सिर्फ हलाल माँस का ही निर्यात किया जाता है। एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सिर्फ एक ही धर्म के मीट व्यापारियों को हलाल सर्टिफिकेट जारी करने में प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि इसके अधिकार एक विशेष धार्मिक संस्थाओं के पास ही है।