गरीबी या लालच में आकर अतीत में धर्म बदल चुके लोगों की घरवापसी कराने में जुटे हिंदू संगठनों और आदिवासी संगठनों की सफलताओं का दौर जारी है। इसी क्रम में, राँची के लापुँग प्रखंड के कंडरकेल गाँव में ईसाई धर्म अपना चुके एक परिवार के आठ लोगों ने घरवापसी की।
कंडरकेल गाँव स्थित सरना स्थल में आदिवासी महासभा की ओर से घरवापसी समारोह का आयोजन किया गया था। इस समारोह में विधिपूर्वक सरना रीति रिवाज से पूजा-अर्चना कर परिवार के सदस्यों की घरवापसी कराई गई। घरवापसी समारोह में बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे।
घरवापसी कर सरना धर्म अपनाने वाले लोगों को आदिवासी महासभा ने धोती और साड़ी देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय धर्म गुरु जयपाल उराँव ने सभी लोगों को धार्मिक तरीके से वचनबद्ध करा कर की। फिर सफेद मुर्गे की बलि देकर सारे धार्मिक अनुष्ठान किए गए, ताकि लोग ऐसी गलती दोबारा नहीं करें।
सरना धर्म अपनाने वालों में कंडरकेल डुमरटोली के रहने वाले चैतू उराँव, खुशबू उराँव, अभिषेक उराँव, सुषमा उराँव, संजोती उराँव, जगनी उराँव, अमित उराँव और आर्यन उराँव शामिल हैं। चैतु उराँव ने बताया कि उसका परिवार लगातार बीमार रहता था।
इस परेशानी से उबरने के लिए वह मिशनारियों के झाँसे में आ गया था और ईसाई धर्म अपना लिया, लेकिन अब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ है, इसलिए अपने धर्म में वापसी कर रहा है।
आदिवासी महासभा के संयोजक देव कुमार धान ने कहा कि जो अपने मूल धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म में चले गए हैं, उन लोगों को एक अभियान चलाकर अपने मूल धर्म में लाने का प्रयास कर रहे हैं।
इससे पहले इसी साल मार्च में झारखंड में गढ़वा जिले के भंडरिया प्रखंड के अलग- अलग गाँवों में ईसाई बने 33 आदिवासी परिवार के 181 लोग वापस अपने सरना धर्म में लौट आए थे।
धर्म जागरण और जनजातीय सुरक्षा मंच ने सरना आदिवासियों की वापसी के लिए सरईडीह गाँव जनजातीय सम्मेलन का आयोजन किया था। कार्यक्रम में ईसाई से सरना धर्म में वापस लौटने वाले सभी सदस्यों का पाँव पखार कर (जनजातीय परंपरा के अनुरूप पाँव धोकर) स्वागत हुआ।
इस कार्यक्रम में विश्रामपुर गोरैयाबखार गाँव के 18 परिवार के 104, खूँटी टोला करचाली गाँव के 7 परिवार के 42 सदस्य और महँगाई गाँव के 8 परिवार के 35 यानी 181 लोग ईसाई धर्म छोड़ कर सरना धर्म में वापस लौट आए थे।
राँची में घरवापसी के प्रयासों में आगे बढ़कर कमान संभालने वाले ‘सरना समिति’ राँची के अयक्ष मेघा उराँव नके मार्च में हुए इस घरवापसी समारोह में बताया था कि इस इलाके में ईसाईयों के प्रचारकों ने कई गाँवों में भोले-भाले आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराया है।
उन्होंने बताया किसरना धर्म में वापस लौटने के इच्छुक लोग लोग लगातार उनके संगठनों से संपर्क में हैं। उनका संगठन भी धर्मांतरित लोगों के घरवापसी के प्रयासों में लगा है। वो बताते हैं कि बहकावे और लोभ में पुरखों ने धर्म बदल लिए थे, लेकिन समय के साथ अहसास होने लगा कि उनसे बड़ी भूल हुई है।
उन्होंने कहा कि सरना धर्म का कोई जोड़ नहीं हो सकता, साथ ही उन्होंने खुशी जाहिर की कि अब वे लोग वापस अपने धर्म में लौट रहे हैं। घरवापसी करने वालों ने बताया कि बहकावे और लोभ में उनके पुरखों ने धर्म बदल लिया था और ईसाई बन गए थे।
सरना धर्म झारखंड के आदिवासियों का आदि धर्म है। सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है। संक्षेप में कहें तो सरना धर्म ल अर्थ प्रकृति की पूजा करने की परंपरा है। सरना धर्म की मान्यता आदिवासियों में ‘हो’, ‘संथाल’, ‘भुमिज’,’ मुण्डा’, ‘उराँव’ आदि जातियों में हैं।
झारखंड, बंगाल, ओडिशा और बिहार में आदिवासी समुदाय का बड़ा तबका अपने आपको सरना धर्म के अनुयायी के तौर पर मानता है। ये वन क्षेत्रों की रक्षा करने में विश्वास करते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की प्रार्थना करते हैं। सरना धर्म मानने वालों को हिन्दू ही माना जाता है।
झारखंड की शिबू सोरेन सरकार ने सरना हिन्दू धर्म से अलग एक स्वतंत्र धर्म के रूप के मान्यता देने का प्रस्ताव विधानसभा में पास करा के केंद्र सरकार के पास भेज चुकी है। हालाँकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने के प्रस्ताव के खिलाफ है।
आरएसएस हमेशा से यह बात कहता रहा है कि देश के आदिवासी समुदाय हिंदू धर्म का हिस्सा हैं। आरएसएस के अनुसार सरना कोई अलग धर्म नहीं है, बल्कि आदिवासी भी हिंदू धर्म कोड के अधीन हैं, इसलिए उनके लिए अलग से धर्म कोड की कोई जरूरत नहीं है।