‘गज़वा-ए -हिन्द’ को लेकर पाकिस्तान में तो टीवी चैनलों पर तो अक्सर बहसें देखी जा सकती हैं, लेकिन भारत में सेकुलरिज़्म अजर-अमर बना रहे इसलिए इसकी चर्चा करने से बचा जाता है।
कोई इस पर चर्चा भी करना चाहे तो उसे साम्प्रदायिक या इस्लामोफ़ोबिक कह कर दुत्कार दिया जाता है, लेकिन जिनके दिल में भारत को फतह करने का सपना पल रहा हो वो हर वक्त किसी ना किसी तरह अपने मंसूबों को पूरा करने की साज़िश में लगे रहते हैं।
भारत का कथित सेकुलरिज़्म उनके जिहादी इरादों को बदल नहीं सकता। उन्हें आपके सेकुलरिज़्म से कोई लेना-देना नहीं। वो तो बस किसी तरह भारत को दारुल इस्लाम बनाने की मुहिम में जुटे रहते हैं। इसके लिए कई तरह से प्रयास किए जाते हैं। सोशल मिडिया का इस्तेमाल बढ़ने के बाद पढ़े-लिखे जिहादी समूहों ने इसे भी अपने जिहाद का एक हथियार बना लिया है।
आप फ़ेसबुक, ट्विटर या गूगल पर किसी धर्म विशेष से जुड़ा कोई शब्द भी लिख दें तो आपको ब्लॉक कर दिया जाएगा, लेकिन वही गूगल खुद खुले आम भारत में भारत के ही खिलाफ जिहाद को प्रमोट कर रहा है और कहीं कोई विरोध की आवाज तक नहीं है। इस ऐप का डेवलपर कोई पाकिस्तानी सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग बताया जा रहा है।
गूगल के प्ले स्टोर में ‘गज़वा-ए -हिन्द’ नाम से मोबाइल ऐप मौजूद है, जो भारत के खिलाफ ‘इस्लामी जिहाद’ की बात करता है। हैरानी की बात है कि गूगल प्ले स्टोर में भारत के खिलाफ कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाली ये ऐप वर्ष 2017 से मौजूद है। डिलीट किए जाने से पहले ऐप के विवरण में इसकी आखिरी अपडेट 2017 की बताई जा रही थी। भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं है और अगर है तो सवाल उठता है कि वो कैसे भारत के खिलाफ उन्माद को बढ़ावा देने वाली इस ऐप की ओर से आँख मूंदे बैठी हैं?
सोशल मीडिया पर इसको लेकर हंगामा खड़ा हो गया। हंगामे के बाद गूगल ने अपने प्ले-स्टोर से इस ऐप को हटा दिया। बता दें कि साल 2019 में भी प्ले-स्टोर पर ये ऐप आई थी, जिसके बाद इस ऐप को लेकर बवाल हुआ था।
गूगल ने उस वक्त भी इस ऐप को प्ले-स्टोर हटा दिया था, लेकिन चुपचाप दोबारा से उसी ऐप का प्ले-स्टोर में डाउनलोडिंग के लिए उपलब्ध कर दिया। यह गूगल की नियत पर सवाल खड़े करता है।
गूगल प्ले-स्टोर से इस ऐप को हटा दिया गया है
मुस्लिम धर्म के सिद्धातों के अनुसार विश्व दो भागों में विभाजित है- दारुल इस्लाम और दारुल हर्ब। वह देश जहाँ मुस्लिम रहते हैं और मुस्लिमों का ही शासन है, उसे ‘दारुल इस्लाम’ कहते हैं।
‘दारुल हर्ब’ वो देश हैं, जहाँ मुस्लिम रहते हैं, लेकिन शासन गैर-मुस्लिम करते हैं। इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, भारत भूमि मुस्लिमों की हो सकती है लेकिन हिन्दुओं और मुस्लिमों, दोनों की नहीं हो सकती।
इस्लामी कानून की दूसरी आज्ञा ‘जिहाद’ है, जिसके अनुसार हर मुस्लिम का ये फ़र्ज़ हो जाता है कि वह व्यक्तिगत या सामुहिक रूप से इस्लामी शासन का तब तक विस्तार करता रहे, जब तक सारी दुनिया मुस्लिमों के नियंत्रण में नहीं आ जाती। इस्लामी सिद्धांतों के मुताबिक भारत को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने के लिए भारत के मुस्लिमों का ‘जिहाद’ की घोषणा करना न्यायसंगत है।
इसका अर्थ यह हुआ कि दारुल हर्ब ‘भारत’ को दारुल इस्लाम बनाना ही ‘गज़वा-ए-हिन्द’ है।
दिलचस्प बात यह है कि ‘गज़वा-ए -हिन्द’ का जिक्र ‘कुरान ‘में नहीं है, बल्कि इसका जिक्र ‘हदीसों’ में मिलता है।
हदीस के अनुसार –
“तुम्हारा एक लश्कर हिंद से जंग करेगा। मुजाहिदीन वहाँ के बादशाह को बेड़ियों में जकड़कर लाएँगे और फिर जब वह वापस लौटेंगे तो हजरत ईसा को स्याम (वर्तमान सीरिया) में पाएँगे। इस पर अबू हुरैरा ने कहा कि अगर मैं इस गजवा में शामिल हुआ तो मेरी ख्वाहिश होगी कि मैं हजरत ईसा के पास पहुँचकर यह बताऊँ कि मैं आपका (पैगंबर मोहम्मद) सहाबी हूँ। इस पर रसूल अल्लाह मुस्कराए और कहा बहुत मुश्किल, बहुत मुश्किल।”
हदीस के अनुसार, गज़वा-ए-हिन्द तब मुकम्मल होगा जब इज़राइल को नष्ट करने के बाद बैतुल मुक़द्दस पर मुस्लिमों का कब्जा हो जाएगा और पूरी दुनिया में इस्लामी हुकूमत कायम हो चुकी होगी, तब एक बादशाह अपने लश्कर के साथ भारत पर हमला कर के यहाँ ‘दारुल इस्लाम’ की स्थापना करेगा।
गज़वा-ए-हिन्द के समय की जो भविष्यवाणी की गई है, उसके हिसाब से इस वक्त हज़रत ईसा फिलिस्तीन में उतर चुके होंगे, इज़राइल मुस्लिमों के अधिकार में आ चुका होगा। इजराइल, फिलिस्तीन, अफगानिस्तान, जॉर्डन, इराक, ईरान अदि सभी को मिलाकर एक विश्व्यापी इस्लामी साम्राज्य बन चुका होगा।
गज़वा-ए -हिन्द को लेकर कुल 5 हदीसें है। इन 5 हदीसों में से एक ‘हज़रत सौबान’ से, 3 ‘हज़रत अबू हुरैरा से और पाँचवीं हदीस ‘कअब’ से रिवायत होना मानी जाती है। अगर आप पाँचों हदीसों को पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि सभी हदीसें एक ही रिवायत से ली गई हैं। ये मुख्य हदीस ‘किताब-अल-फ़ित्न’ में आई हैं।
ये सभी हदीसें ऐसे रावियों के द्वारा बयान की गई हैं, जिन्हें ज्यादातर मुहद्दिसीन (हदीस विशेषज्ञ) अविश्वसनीय मानते हैं। रावी उन लोगों को कहते हैं जो हदीस बयान करते हैं।
कई प्रमुख इस्लामी विद्वान गज़वा-ए -हिन्द की हदीसों को विस्वास के काबिल न मानते हुए नकारते हैं, जबकि कई लोग अभी भी हिन्द को फतह करने के प्रयासों में दिन रात साज़िश के जिहादी ख्वाब बुनते रहते हैं।
एक पाकिस्तानी इस्लामी विद्वान और रिसर्चर के मुताबिक, गज़वा-ए -हिन्द के लिए जरूरी शर्तों के पूरा होने की अभी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। इज़राइल को नष्ट कर के बैतुल मुकद्द्स पर कब्जा अभी मुस्लिमों के लिए दूर की कौड़ी है।
1400 साल पहले इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के हवाले से बताई जा रही गज़वा-ए -हिन्द की हदीसों को नकारने वाले विद्वान कहते हैं कि पैगंबर के समय में भारत (पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित), इंडोनेशिया, मलाया, बर्मा, थाईलैंड, कम्बोडिया, वियतनाम अदि पूरा क्षेत्र हिन्द कहलाता था और अगर ये हदीस सच भी है तो भी गज़वा-ए-हिन्द पूरा हो चुका है क्योंकि इनमें से ज्यादातर हिस्सा दारुल इस्लाम बन चुका है।
हदीस पैगंबर मोहम्मद द्वारा सहाबा (साथियों) से कही गई या की गई बातों का संग्रह है। इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद अपने जीवन काल के दौरान सहबियों से जो बातें करते और कहते थे या उनके किसी सवाल के जवाब में कहते थे, उन्हें सहाबी (पैगंबर के साथी) याद कर लेते थे, फिर वो पैगंबर की ये बातें अपनी आने वाले पीढ़ियों को सुनाते थे।
बाद में पैगंबर की इन बातों को संग्रहित कर लिया गया, जिन्हें हदीस कहते हैं। चूँकि हदीस एक इंसान से दूसरे और दूसरे से तीसरे इंसान तक पहुँचीं हैं, इसलिए इनको लेकर इस्लामी विद्वानों के बीच संदेह बना रहता है कि कहीं किसी रावि ने पैगम्बर की वफ़ात (मृत्यु) के बाद अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए पैगंबर के नाम पर कोई झूठी हदीस तो नहीं पेश कर दी।
इसके चलते मुस्लिम जगत के कई विद्वानों ने अपना पूरा जीवन ही इस खोज में लगा दिया है कि अल्लाह के पैगंबर के नाम पर जिन लोगों से हदीसों की रवायत है वो लोग विश्वास के योग्य हैं या नहीं।
अपनी खोजों में मुस्लिम विद्वानों ने हदीस बयान करने वाले रावियों की निजी ज़िंदगी पर गहरे शोध और छानबीन की। जिन रावियों द्वारा हदीसों की रवायत हुई उनकी याददाश्त, चरित्र और हुज़ूर के बाद वो किस पीढ़ी से थे, ये भी देखा गया।
इस आधार पर इस्लामी विद्वानों ने कई हदीसों को रद्द किया और गज़वा-ए -हिन्द की हदीस को झूठी माना। लेकिन भारत और पाकिस्तान के कुछ मुस्लिम आज भी इसी मुगालते में जी रहे हैं कि उन्हें भारत पर फतह हासिल कर गज़वा-ए -हिन्द की हदीस को सही साबित करना है।
कुरान के बाद हदीसें इस्लाम में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। गज़वा-ए-हिन्द की हदीसों का इस्तेमाल इस्लामी कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन लोगों को बरगलाने और जिहाद के नाम पर आतंकी बनाने में करते है।
अलकायदा और जैश-ए-मोहम्म्द जैसे संगठन हिंदुस्तान और पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को जिहाद की आग में झोंकने और खुद को स्थापित करने के लिए गज़वा-ए- हिन्द की हदीसों का इस्तेमाल करते है।
भारत के साथ कश्मीर में छद्म युद्ध लड़ रहे पाकिस्तान और स्थानीय तथा विदेशी आतंकी संगठन इन हदीसों के प्रयोग मुस्लिम युवाओं को भड़काने और भारत के खिलाफ हथियार उठाने के लिए ब्रेनवाश करने में एक हथियार की तरह प्रयोग करते हैं। लश्कर-ए-तैयबा गज़वा-ए-हिंद को कश्मीर की आज़ादी से जोड़ता था।
पाकिस्तान के कट्टरपंथी इन हदीसों को यह कहते हुए प्रमोट करते हैं कि पाकिस्तान का तो जन्म ही गज़वा-ए-हिन्द को पूरा करने के लिए हुआ है। मसूद अज़हर भी अपने जिहादी भाषणों में इन हदीसों का जम कर प्रयोग करता था।
अल कायदा की उज्बेक शाखा ने तो बाकायदा उर्दू में ‘गज़वा-ए-हिन्द’ के नाम से एक पत्रिका भी निकाली थी, जिसमें ‘गज़वा-ए-हिन्द’ की व्याख्या करते हुए ये कहा गया था कि पाकिस्तान में निज़ाम शरीयत के हिसाब से नहीं है, इसलिए भारत के खिलाफ ‘गज़वा-ए-हिन्द’ यहाँ से शुरू होकर पूरी दुनिया में फैलेगा।