गुड़गाँव स्थित सेक्टर-44 में सुबह 11 बजे से ही एक पार्क में तकरीबन 100 से अधिक लोग नमाज पढ़ने के लिए जुट गए थे। वहाँ चटाइयाँ बिछीं थीं और दान पेटियों पर डिजिटल पेमेंट के लिए बारकोड रीडर के प्रिंट आउट भी रखे गए थे।
कई मल्टी नेशनल कम्पनीज़ के बीचों-बीच बसे इस पार्क में सिर्फ नमाज पढ़ने वाले लोग ही नहीं थे, बल्कि 10-15 स्थानीय हिन्दू युवक भी मौजूद थे। इन 10-15 युवकों ने खुले में नमाज पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज की और नमाजियों को बिना प्रशासन की इजाज़त के खुले नमाज में नमाज पढ़ने से रोक दिया।
एक लंबे समय से हरियाणा के गुड़गाँव शहर में चल रही खुले में नमाज़ को लेकर विवाद जारी है। हफ्तों से चल रहे इस विवाद में गुड़गाँव के कई सेक्टरों में खुले में नमाज़ को लेकर स्थानीय लोगों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई। सेक्टर 12A, 37, 17 और 44 जैसे कई स्थानों पर स्थानीय लोगों ने खुले में नमाज़ पढ़ाने वाले मौलाना को रोका और इस कृत्य का पुरज़ोर विरोध किया।
जहाँ हरियाणा पुलिस और प्रशासन इस मामले में अलग-अलग समय पर अलग-अलग रंग दिखा रहा है, वहीं शुक्रवार (10 दिसंबर, 2021) को हरियाणा पुलिस इस मामले में गंभीरता से कार्य करती दिखी।
डू-पॉलिटिक्स टीम गत सप्ताह शुक्रवार (3 दिसंबर, 2021) को गुड़गाँव के सेक्टर 34 पहुँची थी। वहाँ हमने खुले में पढ़ी जाने वाली नमाज़ के ख़िलाफ़ स्थानीय हिंदू समुदाय के लोगों का भारी विरोध प्रदर्शन देखा।
लोगों ने बातचीत में हमें बताया कि किस तरह उनके विरोध के बावजूद पुलिस ने न केवल खुले में नमाज़ कराई बल्कि नमाज़ पढ़ाने वाले मौलवियों और लोगों को घेराबंदी करके संरक्षण तक दिया। इसके साथ-साथ विरोध कर रहे हिंदू समुदाय के लोगों को ही हिरासत में ले लिया गया।
डू-पॉलिटिक्स की टीम शुक्रवार (10 दिसंबर, 2021) को पुनः गुड़गाँव पहुँची, जहाँ पहुँचकर हमें पता चला कि इस बार सेक्टर-37 में खुले में नमाज़ नहीं पढ़ने दी गई परंतु सेक्टर-17 स्थित सुखराली में अब भी यह कृत्य जारी था, जिसे स्थानीय हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा रुकवा दिया गया।
हमारी टीम सेक्टर-44 पहुँची जहाँ पार्क में एक मौलवी मुस्लिम समुदाय के कई लोगों के साथ एकत्रित हुए थे और जुमे की नमाज़ पढ़ने की तैयारी चल रही थीं। इस स्थान पर स्थानीय हिंदू समुदाय के कुछ लोग पुलिस के साथ पहुँचे और उन्होंने प्रशासन द्वारा जारी की गई लिस्ट दिखाते हुए यह दावा किया कि यह पार्क उन चिन्हित जगहों में से नहीं है जहाँ नमाज़ की अनुमति है।
पार्क में दोनों समुदायों के बीच भारी वाद-विवाद चला जिसमें हिंदू समुदाय प्रशासन द्वारा जारी की गई लिस्ट पर अड़ा रहा और मुस्लिम समुदाय और उनके मौलाना निरंतर नमाज़ पढ़ने की रट लगाए रहे। पुलिस ने दोनों समूहों में बीच-बचाव का पूरा प्रयास किया और किसी प्रकार की अराजकता नहीं फैलने दी।
DoPolitics ने दोनों समुदायों के ही कुछ लोगों से बात की जिसमें जहाँ अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोग स्वयं को आसपास की कंपनियों में काम करने वाले नौकरीपेशा लोग बता रहे थे, वहीं हिंदू समुदाय के लोग स्वयं को स्थानीय निवासी कह रहे थे।
बातचीत की शुरुआत में मुस्लिम समुदाय के लिए नमाज़ करवाने आए मौलवी ने पहले कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। हालाँकि, बाद में उन्होंने पुलिस और प्रशासन से कई आक्रामक बातें तक कहीं।
हिंदू समुदाय का नेतृत्व कर रहे अमित हिंदू और अन्य कई युवकों ने प्रशासन द्वारा चिन्हित जगहों की लिस्ट दिखाते हुए कहा:
“जब दो-तीन दिन पहले समझौता हो चुका है तो फिर ये लोग दोबारा आगे क्यों बढ़ने लग जाते हैं? अगर खुले में ही सब चीजें करनी है तो फिर मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारों की जरूरत ही क्या है? बंद करो सबको, ताला लगाओ।”
आगे उन्होंने यह भी बताया कि जो लिस्ट प्रशासन द्वारा दी गई है उसमें यह जगह नमाज़ के लिए नामित नहीं है और उस लिस्ट पर इनके बड़े इमामों के हस्ताक्षर भी हैं। आगे हिंदू समुदाय के युवकों ने कहा:
“दिल्ली में घुसे, आधा दिल्ली खराब कर दिया, मेवात में घुसे,मेवात खराब कर दिया, यूपी आधा खराब कर दिया, बंगाल पूरा खराब कर दिया। इस्लामी विचारधारा हर किसी के अंदर घुसा दी है। जो हमारे छोटे-छोटे स्थान बचे हैं जहाँ बच्चे और बड़े बूढ़े घूमने आते हैं वहाँ अब इन्हें नमाज़ पढ़नी है।”
इस्लाम का हवाला देते हुए उन्होंने आगे कहा:
“इस्लाम की किसी किताब में ऐसा लिखा दिखा दो कि खुले में नमाज़ पढ़ने की बात की गई हो। जब 57 इस्लामिक देशों में खुले में नमाज़ की अनुमति नहीं है तो भारत में ही क्यों है? अगर खुले में नमाज़ चलेगी तो हमारे बच्चे-बड़े-बूढ़े कहाँ जाएँगे?”
आगे यह भी कहा गया कि यहाँ नमाज़ नहीं होने दी जाएगी और आगे सरकारों पर भी दबाव डाला जाएगा कि अब नमाज़ केवल मस्जिदों में ही पढ़ी जाए। केवल गुड़गाँव ही नहीं पूरे भारतवर्ष में यही कानून चलना चाहिए।
हिंदुओं पर लग रहे हैं नफरत फैलाने के विभिन्न आरोपों पर हिंदू समुदाय के युवकों ने कहा:
“क्या हम नफरत फैला रहे हैं? क्या शाहीन बाग हिंदुओं का था? जो बड़े-बड़े मुद्दे हो रहे हैं क्या वे हिंदू कर रहे हैं? सनातन धर्म शांति का प्रतीक है, हम कभी किसी जीज़ की शुरुआत नहीं करते। क्या किसी ने कभी देखा है कि हिंदू ने, मुसलमानों के इलाकों में या किसी इलाके में बदतमीजी की हो या अराजकता फैलाई हो?”
जहाँ मुस्लिम पक्ष ने क्षेत्र में मस्जिद न होने की बात कही, वहीं इस पर भी हिन्दू समुदाय ने कहा कि क्षेत्र में 12 मस्जिदें हैं। ये जान-बूझकर वहाँ जाते नहीं हैं। यहाँ नमाज़ के नाम पर दान का पैसा इकट्ठा किया जाता है। जब ये लोग नमाज़ के लिए आ रहे हैं तो दान-पेटी का क्या मतलब है?
“यहाँ यह दान पेटी किस लिए है? ये लोग यहाँ नमाज़ पढ़ने आते हैं या पैसा इकट्ठा करने आते हैं?”
जब लिस्ट के विषय में मुस्लिम समुदाय के लोगों से बात की गई और उन्हें बताया गया कि उनके ही बड़े मौलवियों ने चिन्हित जगहों की लिस्ट पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पर एक मुस्लिम युवक ने कहा:
“हमारे समुदाय को नहीं पता कि किन लोगों ने उस सूची पर हस्ताक्षर किए हैं। आरएसएस (RSS) के मंच के एक प्रवक्ता हैं, उन्होंने जाकर दस्तावेजों पर साइन कर दिया।”
नमाज़ पढ़ने आए मौलाना ने पुलिस के साथ आक्रामक शब्दावली का उपयोग करते हुए कहा:
“सर हमें गोली मार दो। हम नमाज़ ही नहीं पढ़ेंगे, सब को गोली मार दो। अगर आप कहोगे तो हम गुड़गाँव छोड़कर चले जाएँगे।”
इसके बाद स्वयं को एक पास ही की कंपनी का कर्मचारी बताने वाले एक मुस्लिम युवक ने कहा:
“गुड़गाँव की सभी कंपनियों से कह दीजिए कि मुसलमानों को नौकरी न दें। आप गुड़गाँव में नोटिस लगा दीजिए कि मल्टीनेशनल कंपनी मुसलमानों को हायर न करें क्योंकि वे यहाँ एक जुमे की नमाज़ भी नहीं पढ़ सकते। हफ्ते की सारी नमाज़ हम अपने घर पर पढ़ते हैं पर जुमे की नमाज़ जो अकेले नहीं होती इसलिए हम यहाँ आते हैं।”
उन्होंने हरियाणा और केंद्र सरकार से भी इस विषय में मल्टीनेशनल कंपनियों को यह नोटिस देने की बात कही कि वे गुड़गाँव में मुसलमानों को नौकरी न दें।
अधिकतर युवकों ने खुले में नमाज़ पढ़ने का यह तर्क दिया कि वे आस-पास के ऑफिसों में काम करते हैं और जुमे की नमाज़ पढ़ने उन्हें एक जगह एकत्रित होना आवश्यक है, इसी कारण वे यहाँ आते हैं। लोगों ने ये तर्क भी दिए कि बाकी सभी नमाज़ घर पर और अकेले हो सकती हैं परंतु जुमे की नमाज़ सबके साथ में यानी जमात के साथ पढ़ना आवश्यक होता है।
हमारी टीम ने इस विषय में मौलवी से कुरान या हदीस के उन निर्देशों या संदर्भों को बताने की बात कही जहाँ इस प्रकार के निर्दश दिए गए हों, परंतु इस इस पर उन्होंने हमें कुछ विशेष उत्तर नहीं दिया।
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने यह भी कहा कि हम यहाँ कोई अनैतिक कार्य तो नहीं कर रहे हैं, जब सभी दिवाली और होली जैसी चीज़ें सड़कों पर होती हैं तब किसी को कोई दिक्कत नहीं आती।
लोगों से जब यह सवाल किया गया कि वे मस्जिद में नमाज़ क्यों नहीं पढ़ते तो उन्होंने कहा कि प्रशासन अगर ऐसा चाहता है तो वे उन्हें मस्जिद दिला दे।
हमने इस विषय में पार्क के आस-पास के लोगों से पूरे मामले को लेकर बातचीत की। पार्क के पास ही ई वर्षों से चाय बेचने वाले एक व्यक्ति ने कहा:
“अभी कुछ ही दिनों से यहाँ ये मामला चल रहा है, पहले ऐसा कुछ नहीं होता था। अभी स्थानीय लोगों को परेशानी होने लगी है। यह सही हुआ है। जब सब लोग मंदिरों में जाते हैं तो ये लोग अपनी मस्जिदों में जाएँ। ये सड़कों को क्यों घेरते हैं।”
पूरे मामले को लेकर हमने मौके पर पहुँची पुलिस के अधिकारी से बातचीत की और पूछा कि यह जगह असल में सूची में थी या नहीं। इस विषय में उन्होंने कहा:
“जो लिस्ट हमें दिखाई गई है, उसमें से यह जगह नहीं है और इस मामले में इनको (मुस्लिम पक्ष) शायद अपडेट हो चुकी लिस्ट की जानकारी नहीं होगी। जो भी अपडेट होगा उसे आगे लागू कराया जाएगा।”
पूरे विवाद के समाप्त होने के बाद हिंदू पक्ष के युवकों ने प्रशासन का धन्यवाद किया कि उन्होंने सूची के आधार पर नियमावली लागू करते हुए नमाज़ नहीं होने दी।
हालाँकि इस पूरे विवाद के बाद हमारी टीम इफ्को टावर के पास पहुँची जहाँ कुछ स्थानीय लोगों ने हाल ही में हेलीकॉप्टर क्रैश में दिवंगत हुए सीडीएस बिपिन रावत समेत अन्य भारतीय सेना के अफसरों को लेकर एक शोक सभा का आयोजन किया हुआ था।
शोक सभा में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के कई वरिष्ठ सदस्य मौजूद थे, जिन्होंने गंगा-जमुनी तहज़ीब की बातें कीं, जिसमें हिंदू पक्ष के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा:
“पास ही में विवेकानंद ग्लोबल स्कूल है, मैं उसका चेयरमैन हूँ। आप सब वहाँ आएँ, वहाँ बहुत बड़ा घास का मैदान है, हमारे पास दरियाँ भी हैं और जब तक आप नमाज़ अदा करेंगे, मैं आपके लिए चाय और मीठे की व्यवस्था कर दूँगा।”
साथ ही मुस्लिम समुदाय के एक वरिष्ठ मौलवी ने कहा:
“यह नमाज़ की जगह है और इसे जानमाज़ कहते हैं। यहाँ सनातन धर्म से ताल्लुक रखने वाले भी हैं, इस्लाम और सिख समुदाय के लोग भी हैं। यह संदेश बहुत बड़ा है और यह अब पूरी दुनिया में जाएगा।”