लोकतंत्र का मतलब बहुसंख्यकों का शासन नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा: हरिद्वार में माँस की बिक्री पर HC ने सरकार को फटकारा

17 जुलाई, 2021
हरिद्वार में माँस की बिक्री पर प्रतिबंध को मिली चुनौती

उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand high court) ने शुक्रवार को हरिद्वार में माँस पर प्रतिबंध (Meat ban in Haridwar) के खिलाफ दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। नैनीताल हाईकोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ बहुसंख्यकों का शासन नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों और उनके अधिकारों की सुरक्षा है।

जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने कहा:

“एक सभ्यता की महानता को केवल इस बात से आँका जाता है कि वह अपने अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार करती है और हरिद्वार में इस तरह का प्रतिबंध इस बात पर सवाल उठाता है कि राज्य किस हद तक एक नागरिक के भोजन की पसंद का निर्धारण कर सकता है।”

जस्टिस आरएस चौहान ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा:

“किसी नागरिक को अपना भोजन खुद तय करने का अधिकार है या यह राज्य द्वारा तय किया जाएगा। अगर हम कहते हैं कि यह राज्य द्वारा तय किया जाएगा क्योंकि राज्य ने एक ‘विशेष प्रकार’ के माँसाहारी भोजन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है तो क्या राज्य सरकार अन्य सभी प्रकार के माँस पर प्रतिबंध लगा सकती है?”

बता दें कि इसी वर्ष मार्च में राज्य सरकार ने हरिद्वार को माँसाहार मुक्त करते हुए सभी क्षेत्रों को ‘बूचड़खाना मुक्त’ (Slaughterhouse-free) घोषित कर दिया था और बूचड़खानों (स्लाटर हाउस) को जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) रद्द कर दी थी।

हरिद्वार जिले के ही मुस्लिम समुदाय के 4 लोगों ने इस आदेश के खिलाफ याचिका दायर करते हुए कहा था कि माँस पर प्रतिबंध निजता के अधिकार, जीवन के अधिकार और स्वतंत्र रूप से धर्म का पालन करने के अधिकार के खिलाफ है और आदेश हरिद्वार में मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है।

सरकार के फैसले को हरिद्वार के मंगलौर निवासी इफ्तिकार, महताब आलम, सद्दाम हुसैन और सरफराज के अलावा सहजाद की ओर से दो अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई थी।

याचिका में कहा गया था कि यह आदेश न केवल मनमाना है बल्कि धर्म और जाति की सीमाओं से परे हरिद्वार के लोगों को स्वच्छ और ताजा माँसाहारी भोजन से वंचित करके संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का भी उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि बकरीद 21 जुलाई को निर्धारित है और इस दिन पशु बलि एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है।

याचिका में कहा गया है कि बकरीद के दिन पशु-वध पर रोक लगाकर सरकार याचिकाकर्ताओं के अनुच्छेद 25 (किसी के धर्म का पालन करने का अधिकार) का उल्लंघन कर रही है। याचिका में धारा 237-ए की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है।

यह धारा राज्य सरकार को नगर निगम, परिषद या नगर पंचायत के अंतर्गत आने वाले किसी भी क्षेत्र को वध-मुक्त क्षेत्र घोषित करने की शक्ति देती है। धारा 237 -ए को राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम में शामिल किया है।

महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने कोर्ट को माँस प्रतिबंध का समर्थन करने वाले अदालतों के कई पूर्व फैसलों का हवाला दिया, जिसमें 2004 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी जिक्र था, जिसमें हरिद्वार, ऋषिकेश और मुनि की रेती के नगरपालिका क्षेत्रों में माँस और अंडे पर प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था।

अदालत ने माना कि याचिका में गंभीर मौलिक मुद्दे उठाए गए हैं और इसमें संवैधानिक व्याख्या भी शामिल होगी। हालाँकि कोर्ट ने 21 जुलाई को पड़ने वाली बकरीद से पहले कोई फैसला देने से इनकार करते हुए अगली सुनवाई 23 जुलाई को तय की है।



सहयोग करें
वामपंथी मीडिया तगड़ी फ़ंडिंग के बल पर झूठी खबरें और नैरेटिव फैलाता रहता है। इस प्रपंच और सतत चल रहे प्रॉपगैंडा का जवाब उसी भाषा और शैली में देने के लिए हमें आपके आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। आप निम्नलिखित लिंक्स के माध्यम से हमें समर्थन दे सकते हैं: