बांग्लादेश में हिन्दू आदिवासियों का ईसाई मिशनरीज और इस्लामी संगठनों द्वारा जबरन धर्मान्तरण किया जा रहा है। धर्मांतरण का यह खेल प्राकृतिक संसाधनों को बचाने और आदिवासियों को आधुनिक बनाने के नाम पर खेला जा रहा है।
26 मार्च, 1971 को भारत के सहयोग से पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ बना था। तब बांग्ला संस्कृति वाले ज्यादातर हिन्दू और आदिवासी/वनवासी बांग्लादेश चले गए थे। भारत और नेपाल के बाद बांग्लादेश में सबसे बड़ी हिन्दू आबादी रहती है। हाल ही में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के प्रति हिंसा में बढ़ोतरी हुई है।
हिंसा की यह खबरें अखबारों की सुर्खियाँ भी बनी लेकिन अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रही एक ‘हिंसा’ ऐसी भी है, जो अखबारों की सुर्खियाँ नहीं बन पातीं और ये हिंसा है ‘ज़बरन धर्मान्तरण’। बांग्लादेश में रहने वाली हिंदू जनजाति आदिवासियों को आधुनिक बनाने के नाम पर धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है।
आदिवासी अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर नजरूल इस्लाम के अनुसार आदिवासी दिन-प्रतिदिन प्रकृति और पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर विचार नहीं करते हैं। सरकारी और ग़ैर सरकारी इस्लामी संस्थाओं और ईसाई मिशनरियों के प्रयासों से हम उन्हें ‘आधुनिक’ बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
नज़रुल इस्लाम कहते हैं कि आदिवासियों में जंगली जानवरों का शिकार करने और खाने की प्रवृत्ति के कारण जंगली जानवर विलुप्त होते जा रहे हैं। वहीं, कृषि भूमि में वृद्धि के लिए वनों की कटाई के कारण उत्तरी क्षेत्र के वन्य जीवन संकट में पड़ने वाले है इसलिए ‘स्वदेशी लोगों’ के जीवन स्तर में सुधार के नाम पर ईसाई धर्म की दीक्षा और मतांतरण किया जा रहा है।
इस्लाम कहते हैं कि आदिवासी जनजातियों के विकास के लिए किए जा रहे धर्मांतरण में लगे विभिन्न चर्चों, मिशनरी संगठनों के साथ-साथ एनजीओ जैसे वर्ल्डविजन और कैरिटास के प्रयासों के बावजूद, कम से कम 2.5 मिलियन आदिवासी लोग अभी तक आधुनिक जीवन के आदी नहीं हुए हैं।
बता दें कि बांग्लादेश के उत्तरी क्षेत्र के लगभग हर जिले में आदिवासी हैं। ये आदिवासी ग्रेटर दिनाजपुर के ठाकुरगाँव, पंचगढ़, घोड़ाघाट, ग्रेटर रंगपुर के लालमोनिरहाट, ग्रेटर रंगपुर के नीलफामारी, ग्रेटर बोगरा के जॉयपुरहाट, पंचबीबी, नौगाँव, नाचोल, चपैनवाबगंज और ग्रेटर राजशाही के चलनबिल इलाकों में रहते हैं।
इन इलाकों में वन्यजीवों के अवैध शिकार को रोकने और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए आदिवासियों को ‘आधुनिक’ बनाने का कार्य जोरों पर है। निजी विकास एजेंसी के रेहान अहमद राणा के अनुसार, जनजातियों का विकास ईसाई धर्म में दीक्षा की शर्त पर किया जा रहा है। यह स्वीकार्य नहीं हो सकता।
बांग्लादेश आदिवासी अनुसंधान परिषद के अनुसार देश मे 25 लाख जनजातियाँ प्राचीन जीवन शैली जी रही हैं, जिन्हें आधुनिक बनाए जाने की जरूरत है, उनमें से ज्यादातर संताल हैं। बांग्लादेश में स्वदेशी आदिवासी अल्पसंख्यकों की कुल जनसंख्या 2010 में 2 मिलियन से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था। इनमें से चकमा आदिवासी समूह सबसे बड़ा है, मर्मास दूसरी सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति है।
बांग्लादेश की बड़ी संख्या में स्वदेशी जनजातियाँ पारंपरिक रूप से बौद्ध और हिंदू हैं जिनमें चकमास, मर्म, त्रिपुरी, तंचंग्या, मृसु, संताल, खासी, जयंतिया, गारोस, मणिपुरी, केओट (कैबर्ता) है। बांग्लादेश का एकमात्र मुस्लिम आदिवासी समुदाय ‘पंगल’ है। उन्हें मैतेई-पंगल के नाम से भी जाना जाता है। वे सिलहट और मौलवीबाजार में रहते हैं।
2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के विभिन्न आदिवासी समूहों की संख्या 27 है। इसमें सबसे बड़ा ‘चकमा’ है, जिसमें 444,748 लोग शामिल हैं, जबकि दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह मर्म है, जिसकी आबादी 202,974 है। चकमा आदिवासियों का संगठन लम्बे समय से आरोप लगाता रहा है कि आदिवासियों का इस्लाम और ईसाई धर्म मे ज़बरन धर्मान्तरण हो रहा है।
साल 2017 में चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने आरोप लगाया था कि भारत-बांग्लादेश सीमा के पास चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (सीएचटी) में रहने वाले आदिवासी लोगों का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण लंबे समय से हो रहा है। चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और संस्थापक सुहास चकमा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि पिछले एक महीने में ही कई त्रिपुरियों को इस्लाम में परिवर्तित किया गया है।
उन्होंने बताया कि चकमा ने कहा कि दस्तावेजों से पता चलता है कि मोहम्मद सलेम त्रिपुरा, सैयद सुजान त्रिपुरा, अब्दुल्ला त्रिपुरा जैसे नाम सामने आए है, जो बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले के टेकनाफ में धर्मांतरण का शिकार बने। हम लम्बे समय से सम्बंधित अधिकारियों को इस बारे मे अवगत करा रहे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब को लिखे एक पत्र में त्रिपुरा माइली जोडा, चकमा सोशियो कल्चरल डेवलपमेंट सोसाइटी, चकमा बौद्ध वेलफेयर सोसाइटी, चकमा यूथ प्रोग्रेस एसोसिएशन, चकमा सोशल कल्चरल ऑर्गनाइजेशन और चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया सहित 6 संगठनों ने आरोप लगाया था कि बांग्लादेश के खगराचारी जिले के छह अलग-अलग गाँवों के कम से कम 860 आदिवासी परिवार धर्मान्तरण से बचने के लिए त्रिपुरा भाग गए हैं।
चकमा एसोसिएशन ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में दावा किया था कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक गंभीर धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं और त्रिपुरा की ओर भाग रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के जबरन धर्मांतरण के खतरे की वजह से हजारों त्रिपुरी आदिवासी भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ लगे बांग्लादेश के खगराचारी जिले के विभिन्न गाँवों में बस गए हैं।