J&K ने कई कुर्बानियाँ दी हैं, उसे उसका हक मिलेगा: डू-पॉलिटिक्स से पूर्व उपमुख्यमंत्री की बातचीत

14 जून, 2021
जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने डू-पॉलिटिक्स से घाटी से जुड़े कई विषयों पर बातचीत की (चित्र साभार: इंडियन एक्सप्रेस)

जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने ‘डू-पॉलिटिक्स’ के साथ बात करते हुए एक साक्षात्कार में कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के पहले और बाद में पूरे कश्मीर घाटी में हुए बदलावों पर विस्तृत चर्चा की।

जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के सुरक्षाकर्मी के बेटे और इतिहास में डॉक्टरेट डिग्रीधारी निर्मल सिंह ने वर्ष 2016 में दूसरी बार प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

निर्मल सिंह जम्मू कश्मीर विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं और विदेशी मंचों पर वह कश्मीरी आवाम की मुखर आवाज भी रहे हैं। निर्मल सिंह मई, 2018 में तत्कालीन जम्मू और कश्मीर की विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे।

नाराजगी के चलते नेहरू ने महाराजा हरि सिंह से नहीं की थी मुलाकात

साक्षात्कार की शुरुआत निर्मल सिंह ने उस समय को याद करते हुए की जब कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू किया गया था। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे शेख अब्दुल्ला और पंडित नेहरू के आपसी गठबंधन ने आज़ाद देश के भीतर ही दो अलग अलग देश खड़े कर दिए।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1947 में ‘टू नेशन थ्योरी’ के तहत जब भारत का बँटवारा हुआ तो राजा हरि सिंह भारत में विलय के लिए पंडित नेहरू से मुलाकात का समय माँगते रहे, लेकिन पंडित नेहरू ने उनको समय नहीं दिया क्योंकि उन्होंने उनके प्रिय शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करवा दिया था।

नेहरू को एक राजनीतिक व्यक्तित्व से अधिक एक तानाशाह बताते हुए निर्मल सिंह ने कहा, “अंग्रेजों ने शेख अब्दुल्ला को महाराजा के खिलाफ इस्तेमाल किया। बाद में वो नेहरू की गोदी में बैठ गया। नेहरू स्वयं को समाजवादी कहता था लेकिन उनकी नीतियों के कारण जम्मू कश्मीर ने यह सब भुगता।”

निर्मल सिंह ने कहा कि नेहरू शेख अब्दुल्लाह को कश्मीर में स्थापित करना चाहते थे। इसके लिए वह शेख अब्दुल्ला की रिहाई चाहते थे, इसलिए कश्मीर के भारत में विलय में जानबूझकर विलंब किया गया। उन्होंने कहा कि इसका फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया और एक तिहाई हिस्सा हथिया लिया, जिसे आज हम पीओके कहते हैं।

अनुच्छेद 370 की पृष्ठभूमि पर नज़र डालते हुए वो कहते हैं कि किसी भी रियासत के भारत में विलय के लिए कोई विशेष दर्जा नहीं दिया गया था तो संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़कर कश्मीर को विशेष दर्जा क्यों दिया गया?

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 की वजह से ही कश्मीर में अलगाववाद पनपा और सैकड़ों-हजारों कश्मीरियों और सुरक्षाबलों को अपनी जान देनी पड़ी। कश्मीर में अब तक हुए खून खराबे के लिए उन्होंने नेहरू की गलत नीतियों और नेहरू-अब्दुल्ला के व्यक्तिगत स्वार्थ को जिम्मेदार ठहराया।


15 अगस्त, 1947 को जब ब्रिटिश राज का अंत हुआ, ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों के तमाम प्रयासों के बावजूद महाराजा हरि सिंह किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाए थे।
आख़िरकार एक दिन पाकिस्तान समर्थित कबायलियों ने घाटी पर हमला बोलते हुए कई हिन्दुओं का नरसंहार किया।

इस बीच, 25 अक्टूबर को महाराजा वहाँ से निकल आए और उन्होंने एक दस्तावेज पर अपने हस्ताक्षर करते हुए अपनी रियासत को भारत का हिस्सा घोषित कर दिया।

भारतीय गृह मंत्रालय के तत्कालीन सचिव वीपी मेनन 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू गए और उन्होंने विलय के दस्तावेज पर महाराजा हरि सिंह के हस्ताक्षर ले लिए।

कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह


अनुच्छेद 370 हटने के बाद कैसा है कश्मीर की जनता का मिजाज

जम्मू कश्मीर के जनमानस के बीच अनुच्छेद 370 की स्वीकार्यता से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जम्मू और लद्दाख में अनुच्छेद 370 को लेकर कोई मुद्दा नहीं था। आर्टिकल 370 को लेकर कश्मीर घाटी में ही 5 से 10% लोगो के बीच गलतफहमी है।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से अभी जम्मू कश्मीर में बहुत बड़ा बदलाव बेशक ना आया हो, लेकिन कश्मीर की आवाम बदलाव की राह पर चल तो पड़ी ही है और बहुत जल्द बदलाव दिखना भी शुरू हो जाएगा।

कश्मीर में चुनावों के जरिए लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के बारे में उन्होंने कहा कि कश्मीर में हुए चुनावों में जिस तरह कश्मीर की जनता ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है, इससे साबित होता है कि वह भारत के लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं और भारत के साथ ही रहना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि कश्मीर का युवा आज अलगाववादी नेताओं पर उन्हें गुमराह करने का इल्जाम लगा रहा है। लोग कह रहे हैं कि हमारी तीन पीढ़ियों को बरगला कर पत्थरबाजी और आतंकवाद में लिप्त रखा गया, जबकि हमें विकास चाहिए था।

जम्मू के साथ भेदभाव

जम्मू और कश्मीर में भेदभाव को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने इस चीज को स्वीकारा कि जम्मू के साथ शुरू से ही भेदभाव किया गया है। उन्होंने कहा कि चूँकि ब्यूरोक्रेसी से लेकर चीफ मिनिस्टर तक घाटी से आते थे, इसलिए जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ भेदभाव होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर राज्य की सरकारी नौकरियों में जम्मू से 10% और लद्दाख से 1% से भी कम लोगों की भागीदारी है।

पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि सरकारें केंद्र से धन तो क्षेत्रफल के आधार पर लेती थीं, लेकिन उसका बटवारा जनसंख्या के हिसाब से करती रहीं।

दरअसल, क्षेत्रफल में जम्मू बड़ा है लेकिन आबादी के लिहाज से वह घाटी से छोटा है। लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थक रहे भाजपा नेता निर्मल सिंह ने ‘डू पॉलिटिक्स’ से बात करते हुए याद दिलाया कि जब केंद्र में अटल बिहारी की सरकार थी तो उन्होंने कश्मीर को धन का आवंटन क्षेत्र के आधार पर ना देते हुए योजनाओं के आधार पर करने की शुरुआत की थी।

हुनने इस बात पर जोर दिया कि केंद्र और प्रदेश की सभी सरकारों ने घाटी के विकास पर ही फोकस किया और इस बीच जम्मू और लद्दाख को काफी हद तक इग्नोर किया गया।

‘जम्मू ने कुर्बानियाँ दीं, उसे उसका हक़ मिलेगा’

‘डू पॉलिटिक्स’ के संपादक अजीत भारती ने निर्मल सिंह से पूछा कि क्या अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू पर विशेष ध्यान दिया गया है या केंद्र की भाजपा सरकार का फोकस भी पिछली सरकारों की तरह घाटी तक ही सीमित है?

इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के ध्यान में यह बातें हैं कि जम्मू ने बहुत कुर्बानियाँ दी हैं और उसको उसका हक मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा, “जब घाटी में उग्रवाद अपने चरम पर था तो जम्मू के युवा पुलिस अधिकारियों को ले जाकर ही एसटीएफ बनाई गई थी। जम्मू का ऐसा कोई घर नहीं है जिसने आतंकवाद के खिलाफ कुर्बानी ना दी हो। जम्मू और लद्दाख के साथ 72 साल से हो रहा भेदभाव एक दिन में समाप्त नहीं हो सकता लेकिन यह जल्द ही समाप्त होगा। जम्मू और घाटी के बीच बैलेंस बनना शुरू हो चुका है और जल्द ही जम्मू के लोगों को भी उनका हक मिलेगा।”

जम्मू और कश्मीर को अलग करने की क्या है योजना

सम्पादक अजीत भारती ने निर्मल सिंह से सवाल किया कि क्या केंद्र सरकार की जम्मू और कश्मीर को अलग अलग राज्य बनाने की कोई योजना है, क्योंकि दोनों ही क्षेत्र के लोगों में पहनावे से लेकर खानपान तक में कोई भी समानता नहीं है?

इस पर भाजपा नेता ने कहा कि यह बात सही है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की रहन-सहन और वातावरण एक दूसरे से पूरी तरह अलग हैं, लेकिन सरकार का अभी दोनों को अलग-अलग राज्य बनाने का कोई भी इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तान से कब्जे वाले कश्मीर को लेकर कोई फैसला नहीं हो जाता, दोनों को अलग-अलग करना मुमकिन नहीं है।

राजा हरि सिंह के खिलाफ वामपंथी लेखकों का मकड़जाल

कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह को लेकर वामपंथी लेखकों द्वारा फैलाए गए झूठ के दावों की पोल खोलते हुए निर्मल सिंह ने कहा, “वामपंथी लेखकों ने राजा हरि सिंह के साथ बहुत अन्याय किया है। वामपंथी लेखकों ने उन्हें मुस्लिम-विरोधी बताया है, जबकि राजा हरि सिंह नें मुस्लिमों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए अलग से स्कूल खोले थे।”

“उन स्कूलों में मुस्लिमों के लिए खास तौर से मौलवी भर्ती किए गए थे क्योंकि मुस्लिम बच्चे कुरान शरीफ की शिक्षा लेना चाहते थे। राजा हरि सिंह ने ही महिलाओं और हरिजनों के लिए स्कूल खोलें। इसके अलावा, उन्होंने ही 1932 में सबसे पहले त्रावणकोर में मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश पर लगी रोक हटाई थी और यह उन्होंने महात्मा गाँधी से बहुत पहले किया था।”

कॉन्ग्रेस पर साधा निशाना

उन्होंने कहा कि राजा हरि सिंह को मुस्लिम विरोधी बताने वाले कॉन्ग्रेसी वामपंथी इतिहासकार जिस शेख अब्दुल्ला को सेकुलर नेता बताते नहीं थकते, उनके एंटी-हरिसिंह मूवमेंट का आधार ही मजहबी था। उन्होंने कहा कि शेख अब्दुल्ला मुस्लिम बहुल आबादी वाले राज्य पर एक हिंदू राजा को स्वीकार नहीं करना चाहते थे। कश्मीर की अवाम कभी भी इन वामपंथी लेखकों को माफ नहीं करेगी।

बातचीत में निर्मल सिंह आगे बताते हैं कि राजा हरि सिंह को मुस्लिम विरोधी बताने वाले वो वामपंथी लेखक थे, जो अलगाववादी-राजनैतिक दलों और कॉन्ग्रेस में घुसे हुए थे। उन्होंने 1960-70 में कश्मीर में हुए एक सेमिनार का भी जिक्र किया, जहाँ जम्मू-कश्मीर फ्रीडम मूवमेंट की रूपरेखा तैयार की गई थी।

इस सेमिनार की फंडिंग केंद्र सरकार की ओर से की गई थी। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस, वामपंथियों, हुर्रियत और अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने कश्मीर की यूनिवर्सिटीज का इस्तेमाल देश को तोड़ने के षड्यंत्रों के लिए किया और आज भी कर रही हैं।

कॉन्ग्रेस को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा, “कश्मीर की आवाम ने इन्हीं लोगों के निजी स्वार्थ की कीमत चुकाई है। यह देश का दुर्भाग्य है कि जिस कॉन्ग्रेस ने 1950 में कश्मीर को 370 के जरिए देश से अलग कर दिया था, वह अनुच्छेद 370 हटने के दो साल बाद भी इस फैसले को स्वीकार नहीं कर पा रही है।”

आर्टिकल 370 हटाने के लिए नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा कि यह कोई आसान काम नहीं था, केंद्र ने कश्मीरियों की भलाई के लिए बहुत ही हिम्मत का काम किया है। यहाँ के लोगों को भी अब इन राष्ट्र-विरोधियों की हकीकत दिखने लगी है।

जम्मू कश्मीर में इन्वेस्टमेंट के लिए कंपनियों से की अपील

जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने डू पॉलिटिक्स चैनल के माध्यम से देश भर की बड़ी कंपनियों से जम्मू और कश्मीर में इन्वेस्टमेंट करने की अपील करते हुए कहा कि विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि एक लंबे समय तक कश्मीर का विकास उग्रवाद खा गया और पिछले दो साल कोरोना वायरस के चलते विकास रुका रहा, लेकिन इसको ज्यादा दिनों तक रोका नहीं जा सकता।

उन्होंने कंपनियों को आमंत्रित करते हुए कहा, “जम्मू कश्मीर में इन्वेस्टमेंट के लिए जमीन बिल्कुल खाली पड़ी है। कंपनियों के लिए यह बहुत ही सुनहरा अवसर है। वह यहाँ आकर प्रोजेक्ट लगाएँ और यहाँ के युवाओं को नौकरी दें। लंबे समय तक यहाँ के नेताओं ने युवाओं को बरगला कर उनके हाथों में हथियार थमाए रखा।”

उन्होंने आगे कहा कि उग्रवाद के अलावा यहाँ के लोगों को कुछ भी नहीं मिला। यह समय जम्मू कश्मीर के साथ खड़े होने का। उन्होंने कहा कि कश्मीर को हमें उसी तरह संभालना होगा जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी के बर्तन पर ऊपर से प्रहार करता है लेकिन अंदर से सहारा भी देता है।


संपादक अजीत भारत एवं जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह की पूरी बातचीत आप इस यूट्यूब लिंक पर देख सकते हैं –



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