माउंटबेटन जब भी उन्हें स्कूटर पर ले जाते थे तो एडविना उनकी पीठ पर कुछ ना कुछ लिखती रहती थी, माउंटबेटन जानते थे कि लिखा हुआ नाम ‘नेहरू’ ही है।
आदरणीय नेहरू जी के चरणों में ये साहित्य और ये कालजई पंक्तियाँ अमृता प्रीतम ने नहीं बल्कि सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिलों की धड़कन आशीष नौटियाल जी ने समर्पित की हैं।
साहित्य की चासनी में भीगी हुई ये पंक्तियाँ आज आपके सामने रखने का मकसद ये है कि कुछ दिन पहले ही जन्मदिन ही उस शख्सियत का था, जिसे लोग भारत के पहले प्रधानमंत्री और एडविना के आखिरी महबूब के तौर पर जानते हैं।
इस व्यंग्य को आप हमारे यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं –
दुःख की बात ये है कि खुद को ‘पंडित’ कहने वाले और खुद ही खुद को भारत रत्न घोषित करने का कारनामा आजाद भारत के इतिहास में पहली बार करने वाले इस आदमी के लिए आप आज कुछ बोल दो तो उसके समर्थन में चार लोग भी खड़े नहीं होते और नाराजगी नहीं दिखाते कि अबे क्या बोल रहे हो यार, बोल ही रहे हो तो चुपके से बोलो, बोलना ही है तो लिखो तो मत, लिख ही रहे हो तो कम से कम वीडियो तो मत बनाओ।
लेकिन मैं क्या करूँ ओ लेडिस, मैं हूँ आदत से मजबूर। लेडिस और मजबूरी, ये दोनों चीजें जहाँ पर एकसाथ आ जाती हैं मैं वहाँ पर साक्षात् स्वयं नेहरू जी हो जाता हूँ। मुझे लगता है जैसे वो मेरे शरीर पर धीरे धीरे कब्ज़ा कर रहे हैं। वो मेरे जेहन में ऐसे घुस रहे हैं जैसे नेहरू जी के रहते चायनीज सैनिक अक्साई चिन घुस आए थे।
तो हम बात कर रहे थे आधुनिक भारत के शिल्पी, पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन की। वो आधुनिक भारत के शिल्पी कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने एक दिन सारी उर्दू शायरी और गुलाब की महक लेने से समय निकाला और अपना मन बनाया कि आज तो नए भारत का निर्माण कर के ही रहूँगा।
नेहरू जी ने छेनी-हथौड़ा उठाया और कर दिया नए भारत का निर्माण। कम ही लोग ये बात भी जानते हैं कि नेहरू जी ने जिस तरह भारत निर्माण किया था, ठीक उसी तरह कालांतर में राजीव गाँधी भी भारत में कम्यूटर अपने कंधे पर ढो कर लाए थे।
लेकिन कंगना जी कहती हैं कि हमें आजादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली। कंगना जी हैं इसलिए मैं ये मान कर चलता हूँ कि कंगना जी ने कहा है तो ठीक ही कहा होगा। मेरी मोदी कंगना ही हैं। वैसे भी कंगना जी इतनी क्यूट हैं कि मैं उनके लिए मिर्जा ग़ालिब बन सकता हूँ मगर करण जोहर नहीं!
तो बात आजादी की थी। वास्तव में अब जो रहस्य मैं आपको बताने जा रहा हूँ, वो गोदी मीडिया आपको नहीं बताएगा। कंगना रनौत ने आजादी के बारे में जो भी कहा है वो एकदम सही है। इसके पीछे मेरे पास फैक्ट्स हैं, वही फैक्ट्स जिन्हें अगर ध्रुव राठी की तरह पढ़कर सुना दो तो लोग यकीन कर ही लेते हैं और ये तो फिर खुद माउंटबेटन और एडविना की बेटी ने अपनी किताब में लिखा है।
कुछ साल पहले एक किताब में एडविना की बेटी ने पामेल हिक्स नी माउंटबेटन, इनका तो नाम भी ऐसा होता है कि जीभ भी ट्विस्ट हो जाती है… तो एडविना की बेटी ने लिखा था कि नेहरू और एडविना के बीच शारीरिक सम्बन्ध नहीं बन पाए थे क्योंकि उन्हें प्राइवेसी नहीं मिल पाती थी।
अब आप ही बताइए मित्रों, क्या हम उस भारत को आजाद कह सकते हैं जिसमें देश के पहले प्रधानमंत्री को ही इतनी आजादी नहीं थी कि वो अपने संबंधों का विकास कर पाएँ? ऐसा आदमी देश के विकास पर कैसे ध्यान लगा पाता जो अपने ही विकास के लिए समय नहीं निकाल पाया। लेकिन फिर भी उन्होंने देश का विकास किया और आजादी के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी तक को होली खिलाई।
अब आप बताइए, अगर 1947 में ओयो रूम्स होते तो क्या नेहरू जी को ऐसी विडंबना और त्रासदी का सामना करना पड़ता? अब आप क्रोनोलॉजी समझिए कि ‘ओयो रूम्स’ कब भारत में आए और इनके विकास के पीछे किस महान द्रष्टा का योगदान था।
लोग तो क्रेडिट देंगे नहीं लेकिन मैं दिल की गहराई से जानता हूँ कि जो उस दिन नेहरू जी प्राइवेसी नहीं मिली, उन्होंने तभी ठान लिया था कि देशवासियों को सेकुलरिज्म मिले न मिले मगर उन्हें एक ‘ओयो रूम की बेबस्था मिलनी ही चईये’।
अब कुछ लोग ये भी कहते हैं कि नेहरू जी का योगदान भारत को आजादी दिलाने में आखिर था ही क्या? ग़जब बात करते हो यार। असल योगदान समझ पाने की अनपढ़ संघियों में अकल ही नहीं है। मोदी भक्ताई में इतना भी मत गिर जाओ कि तुम नेहरू जी जैसे स्टड का जलवा ही न समझ पाओ।
साबरमती का संत तो बस ‘ओवररेटेड’ है। दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल…. कोई सेन्स है इन बातों का? असली खेला तो नेहरू जी ने किया। आप सोचिए कि सारा ब्रिटिश क्राउन इंडिया के पीछे, ब्रिटेन के वायसराय इंडिया के पीछे और गुलाम इंडिया का एक चीता ऐसे हालातों में वायसराय की बीवी के पीछे… टू मच फन।
न तलवार उठानी पड़ी, ना ढपली बजानी पड़ी। न परवरदिगार से, न गोलियों की बौछार से.. नेहरू पिघलता है तो बस एडविना के प्यार से।
मतलब आप मामले की नजाकत को समझो ब्रदर। छप्पन इंच इसे कहते हैं। माउंटबेटन जब आजादी से पहले डोमिनियन स्टेटस के पन्ने तैयार कर रहे थे उस टाइम जवाहर लाल नेहरू एडविना के लिए व्हाट्सऐप स्टेटस तैयार कर रहे थे।
ऐसा कर के उन्होंने आखिरकार भारत को गुलामी की जंजीरों से छुड़ा लिया। ब्रिटेन के वायसराय ने भी सोचा होगा सरकारी नौकरी गई तेल लेने पहले अपना परिवार सम्भालो और खुद को फैमिली मैन साबित करो वरना बाबर का नाम मिटाने से पहले इण्डिया वाले माउंटबेटन का नाम मिटा देंगे और वो भी बिना डाबर का तेल लगाए।
लेकिन संघियों की ये फितरत है कि वो जवाहरलाल नेहरू के त्याग और बलिदान को हमेशा कम ही आँक कर चलते हैं। कभी वो किसी कॉन्ग्रेसी को एक्सपोज कर देते हैं तो कभी वो किसी आपिए को एक्सपोज कर देते हैं। अब तक तो ये सिर्फ आरएसएस वाले ही करते थे लेकिन अब नेहरू जी को एक्सपोज करने का काम हर चीज को आरएसएस की साजिश बताने वाले दिग्विजय सिंह ने भी कर दिया है।
दिग्वजय सिंह बालदिवस से ठीक पहले चचा नेहरू की एक ऐसी फोटो पोस्ट करते हैं जिसमें वो एक महिला के साथ हैं। दिग्विजय सिंह तो बस ये कहना चाह रहे थे कि नेहरू जी अपने मित्र की पत्नी को बधाई दे रहे हैं लेकिन अनपढ़ संघियों ने इसका ये मतलब निकाल लिया कि दिग्विजय सिंह ने चचा नेहरू को एक्सपोज कर लिया है।
लेकिन हकीकत तो यही है कि नेहरू जी को कोई एक्सपोज नहीं कर सकता। उन्होंने ये काम भी अपने रहते कर लिया था कि कहीं बाद में कोई और इसका क्रेडिट न ले बैठे। उन्होंने खुलकर अपने प्रेम पत्र एडविना तक एयर इण्डिया के विमान से भिजवाए, एडविना उसका जवाब भी देती थीं और उच्चायोग का आदमी उन पत्रों को एयर इंडिया के विमान तक पहुँचाया करता था।
एडविना को भीगी पलकों से विदाई के बाद नेहरू जी रुके नहीं। एडविना ही नहीं सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू के लिए भी नेहरू के दिल में सॉफ़्ट कॉर्नर था। नेहरू और पद्मजा का इश्क ‘सालों’ चला था और ये बात उन्होंने किसी से छुपाई भी नहीं। बस उन्होंने पद्मजा से शादी इसलिए नहीं की क्योंकि वो बेटी इंदिरा का दिल नहीं दुखाना चाहते थे। समझ रहे हैं आप? इतना बड़ा त्याग।
आखिर में चलते चलते आपको बता देता हूँ कि 1937 में नेहरू ने पद्मजा को लिखे पत्र में क्या लिखा था।
नेहरू जी ने लिखा था- “तुम 19 साल की हो… (जबकि वास्तव में पद्मजा उस समय 37 साल की थीं) तो गौर फरमाएँ नेहरू जी लिखते हैं-
“तुम 19 साल की हो और मैं 100 या उससे भी से ज़्यादा। क्या मुझे कभी पता चल पाएगा कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो?”
एक बार और नेहरू ने पद्मजा को पत्र लिखा, जज्बातों को महसूस करने की कोशिश करिए –
“मैं तुम्हारे बारे में जानने के लिए मरा जा रहा हूँ.. मैं तुम्हें देखने, तुम्हें अपनी बाहों में लेने और तुम्हारी आँखों में देखने के लिए तड़प रहा हूँ।”
नेहरू जी ने अमेरिकी राष्रपति की पत्नी से भी होली खेली थी। जैकलीन केनेडी के साथ होली खेलने की बात ही कम ही लोग जानते होंगे।
और इस बात का तो शायद ही किसी को पता हो कि नेहरू जी कैनेडी की तस्वीर अपने तकिए के नीचे रख कर सोया करते थे।
सीआईए के पूर्व अधिकारी और ‘जेएफके फॉरगोटेन क्राइसिसः तिब्बत, द सीआइए एंड द सिनो-इंडियन वार’ (JFK’s Forgotten Crisis. Tibet, the CIA, and the Sino-Indian War) के लेखक ब्रूस रिडेल का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
इस क्लिप में रिडेल पर चर्चा करते हुए खुलासा किया था कि भारत के पहले प्रधानमंत्री संयुक्त राज्य अमेरिका की तत्कालीन फर्स्ट लेडी जैकलीन कैनेडी (Jacqueline Kennedy) के इश्क़ में गिरफ्तार हो गए थे। उन्होंने ये भी खुलासा किया था कि उनकी मोहब्बत में चुपके-चुपके आँसू बहाने वाले नेहरू जी कैनेडी की तस्वीर अपनी तकिया के नीचे रख कर सोते थे।
नेहरू जी के त्याग और शौर्य के ये किस्से आपको कोई सुनाएगा नहीं। लेकिन मैं आपको ऐसे ही किस्से सुनाता रहूँगा ताकि फासीवादी मोदी की सरकार नेहरू जी को हाशिए पर ना धकेल पाए।
ये लोग जो बाल दिवस के दिन ट्विटर पे बैठे ठरकी दिवस ट्रेंड करवाते हैं, इन्हें नेहरू जी के शौर्य से कुछ सीखना चाहिए। अबे जा के कोई कैनेडी-वेनेडी से इश्क लड़ाओ, ये ट्रेंड -व्रेंड करवाने से नेहरू नहीं बन पाओगे।