लिबरल एवं वामपंथी गिरोह की एक महिला, जो कि एक ‘प्रगतिशील’ एनजीओ Latika Roy Foundation की डायरेक्टर भी है, की झूठ के दम पर ‘हिन्दू विरोधी’ अजेंडा चलाने की कोशिश उत्तराखंड पुलिस ने नाकाम कर दी। अमेरिकी पासपोर्ट रद्द या जब्त होने के डर से एनजीओ की डायरेक्टर ने अपना ट्वीट भी डिलिट कर दिया।
कथित ‘समाजसेवा’ के नाम पर विदेशी चंदे के दम पर अपनी भारत विरोधी दुकान चलाने वाले एनजीओ की बौखलाहट अब खुल कर सामने आने लगी है। क्रिसमस के बहाने अपनी हिन्दू घृणा की उल्टी करते हुए एनजीओ Latika Roy Foundation की डायरेक्टर जो चोपड़ा मैकगॉन (Jo Chopra McGowan) ने एक झूठा मनगढ़ंत ट्वीट करते हुए उत्तराखंड का माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया।
‘लतिका रॉय ग्रुप’ एनजीओ की डायरेक्टर जो चोपड़ा मैकगॉन ने ट्वीट करते हुए कहा कि हिंदू उत्तराखंड में क्रिसमस नहीं मनाने देते हैं। मैकगॉन के इस दावे का उत्तराखंड पुलिस ने तुरंत ही खंडन किया, जिसके बाद उन्होंने वो ट्वीट डिलीट कर दिया।
ख़ास बात यह है कि NGO की निदेशक ने इस ट्वीट में उसी हैशटैग का इस्तेमाल किया है, जिस लाइन पर आज का कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी चल रहे हैं। जो मैकगॉन ने अपने इस फेक ट्वीट में ‘हिंदुत्व’ को इसका जिम्मेदार ठहराया है।
राहुल गाँधी भी निरंतर हिन्दुओं को लुटेरा और हत्यारा साबित करने का प्रयास करते देखे जा सकते हैं। यही वजह है कि इस NGO का भी किसी कॉन्ग्रेसी टूलकिट से सम्बन्ध हो सकता है।
मैकगॉन ने ट्वीट करते हुए लिखा,
“कल मैं देहरादून में शॉपिंग कर रही थी। यह वह राज्य है, जहाँ क्रिसमस का त्योहार प्रतिबन्धित है। जिस भी दुकान पर मैं गई जिस व्यक्ति से भी मैं मिली उसने मुझे ‘मेरी क्रिसमस’ कहा। माफ करें हिंदुत्ववादियों, भारतीय बहुत खुले विचारों और दयालू दिल के हैं, आपका नफरत का अजेंडा यहाँ सफल नहीं हो सकता। “
मैकगॉन के ट्वीट पर रिप्लाई करते हुए उत्तराखंड पुलिस ने कहा,
“प्रदेश में कहीं भी क्रिसमस पर्व पर बैन नहीं था। पूरे प्रदेश में सभी ईसाई बंधुओं ने पूरे हर्षोल्लास से इस पर्व को मनाया। आप सभी से अपील है कि इस तरह की धार्मिक दुर्भावनाओं से ग्रसित अफवाहों पर ध्यान ना दें। यहाँ सभी का सम्मान है, जैसा भारत का संविधान कहता है।”
बेशर्मी की हद ये है कि एक तरफ जहाँ मैकगॉन उत्तराखंड में क्रिसमस बैन होने की अफवाह फैला रही थी, वही उनका एनजीओ बच्चों के साथ क्रिसमस मनाती तस्वीर ट्वीट कर रहा था। खुद मैकगॉन ने भी इस ट्वीट को रिट्वीट किया है।
बता दें कि मैकगॉन NGO लतिका रॉय ग्रुप की मालकिन हैं। अब हिन्दू घृणा से सनी इस महिला की उत्तराखंड तो छोड़िए, भारत की नागरिक भी संदेह के घेरे में आ गई है। लेकिन देहरादून में बैठे हुए अब सब कुछ लगभग इनका और इनके अजेंडा का है।
पर्यावरण के नाम की ‘अफीम’ बेचने वाले ये गिरोह जहाँ चाहते हैं वहाँ सड़कों के प्रोजेक्ट पास होते हैं, जहाँ नहीं चाहते, वहाँ सिर्फ एक PIL से रुक जाते हैं। मैकगॉन जहाँ हिंदुओं के खिलाफ अपने अजेंडे पर काम कर रही हैं, वहीं इनके पति रवि चोपड़ा अपने स्वामित्व वाली एक अन्य एनजीओ People’s Science Institute के द्वारा चीन सीमा तक भारी मशीनरी पहुँचाने वाली चार धाम सड़क योजना के खिलाफ प्रोपेगेंडा चला रहे हैं।
2018 में रवि चोपड़ा ने पर्यावरणीय चिंताओं और हिमालयी पारिस्थितिकी पर प्रभाव का हवाला देते हुए चार सड़क विस्तार परियोजना को चुनौती दी थी। हालाँकि रवि चोपड़ा की दाल नहीं गली और 14 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्र की सुरक्षा और सुरक्षा बलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण इस परियोजना को हरी झंडी दे दी।
इस परियोजना के पूरे होने के बाद सुरक्षाबल भारी युद्ध मशीनरी को चीन सीमा तक आसानी से ले जा सकेंगे। कथित पर्यावरणविद रवि चोपड़ा पहाड़ी सड़कों की चौड़ाई का विरोध कर रहे थे। बता दें कि 12,000 करोड़ रुपए की रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 900 किलोमीटर लंबी चार धाम परियोजना की नींव पीएम मोदी ने दिसंबर, 2016 मे रखी थी।
जानकारी के अनुसार, फेक न्यूज फ़ैलाने वाली मैकगॉन और उनके पति, दोनों ही अलग-अलग एनजीओ चलाते हैं जिनके द्वारा इनको विदेशों से लाखों रुपए की फंडिंग प्राप्त होती है। हिंदू और भारत विरोधी अजेंडा चलाने वाले एनजीओ दंपत्ति के बेटे आनंद ने एक चीनी लड़की से शादी की है, और बीजिंग में इनके कई रिश्तेदार भी रहते हैं।
इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि रवि चोपड़ा ने चीनी अधिकारियों के साथ साँठगाँठ के चलते उत्तराखंड चार धाम परियोजना में टाँग अड़ाने की कोशिश की थी। दंपत्ति को हाँगकाँग, यूके और अमेरिका से लाखों रुपए की फंडिंग होती है।
एक दावे के अनुसार दम्पति को भारत विरोधी वामपंथी एनजीओ समूह Oxfam International से भी फंडिंग प्राप्त होती है।
मई 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने कमान संभालने के बाद सबसे पहला का उन एनजीओ पर लगाम कसने के किया था, जिन्हें विदेश से फंडिग प्राप्त होती थी। विदेशी चंदा प्राप्त करने का सिस्टम ब्लॉक होते ही ज्यादातर एनजीओ या तो बंद हो गए या बोरिया बिस्तर समेट कर भारत से दफा हो गए।
2014 से अब तक 10,000 से भी ज्यादा विदेशी चंदे पर पलने वाले एंटी नेशनल एनजीओ बन्द हो चुके हैं। साल 2020 में मोदी सरकार ने राज्यसभा में फ़ॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट 2020 यानी FCRA को पास किया गया है, जिसके बाद इन एनजीओ उसकी बौखलाहट और भी ज्यादा बढ़ गई है।
नए बिल के अनुसार एनजीओ के प्रशासनिक कार्यों में 50 प्रतिशत विदेशी फ़ंड की जगह बस 20 फ़ीसद फ़ंड ही इस्तेमाल हो सकेगा यानी इसमें 30% की कटौती कर दी गई है।
इसके अलावा कोई भी एनजीओ मिलने वाले ग्रांट को दूसरे एनजीओ से शेयर भी नहीं कर पाएगी और एनजीओ को मिलने वाली विदेशी फंडिंग भी सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली की ब्रांच में ही रिसीव की जा सकती है।
इस बिल का उद्देश्य कथित समाज सेवा के नाम पर विदेशों से मिलने वाले फ़ंड को रेगुलेट करना था, ताकि इस फंड का इस्तेमाल किसी भी सूरत में देश विरोधी गतिविधियों और धर्मांतरण के लिए ना हो सके।
विदेशी चंदे के ट्रांसफर और FCRA एकाउंट खोलने को लेकर स्पष्ट नियम और आधार नंबर देने अनिवार्यता की व्यवस्था लागू होने से ज्यादातर एनजीओ बौखलाए हुए हैं।
भारत सरकार का मानना है कि इन एनजीओ को कितना डोनेशन कहाँ से मिलता है, इसकी जानकारी ये लोग सरकार से साझा नहीं करते और फंड का इस्तेमाल ‘भारत विरोधी’ कामों मे करते हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अब सभी एनजीओ को कानून के मुताबिक ही चलना पड़ेगा।