हाल ही में जापान के टोक्यो में 2020 ओलंपिक खेल (Olympic Games Tokyo 2020) संपन्न हुए हैं। इन खेलों के दौरान कई वामपंथी गिरोहों एवं मीडिया समूहों ने सरकार को घेरने के लिए नैरेटिव गढ़ना प्रारम्भ किया। जिसमें यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा था कि भारत सरकार खिलाड़ियों को उचित सुविधाएँ प्रदान नहीं करती है एवं पुराने खिलाड़ियों को अपना जीवन गरीबी में बिताना पड़ता है।
इसी नैरेटिव को हवा देने के लिए पिंकी कर्मकार (Pinky Karmakar) नामक असम की एक महिला को लेकर एएनआई, एनडीटीवी एवं इंडिया टुडे जैसे कई मीडिया समूहों ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। समाचार चैनल आजतक ने तो इस विषय पर एक 30 मिनट का शो तक तैयार कर दिखाया है। (आर्काइव लिंक)
इस रिपोर्ट में पिंकी कर्मकार को 2012 में हुए लंदन ओलंपिक की ‘टॉर्चबियरर’ बताते हुए यह कहा गया कि अब ये महिला असम के चाय के बागों में दिहाड़ी मजदूरी का काम करने को मजबूर है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि वे 9 सालों से अपने परिवार की रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए इसी तरह मजदूरी कर रही है।
रिपोर्ट में बताया गया कि पिंकी के पिता बूढ़े हैं और उनके परिवार में उनकी माँ की मृत्यु के बाद एक छोटा भाई एवं दो छोटी बहनें हैं, जिनके पालन पोषण के लिए पिंकी को ₹167 प्रतिदिन के दाम पर मजदूरी करनी पड़ती है। पिंकी 17 वर्ष की आयु में यूनिसेफ स्पोर्ट्स फॉर डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया करती थीं, जिसके द्वारा ही उन्हें ओलंपिक टॉर्चबियरर के लिए चुना गया।
दावा किया जा रहा है कि पिंकी ने कहा कि ओलंपिक खेलों से लौटने के बाद उन्हें किसी प्रकार की कोई सुविधाएँ नहीं दी गई हैं। वे नहीं जानतीं कि उन्हें यूनिसेफ द्वारा क्यों चुना गया था, अब उनके सभी सपने टूट चुके हैं।
पिंकी कर्मकार के हवाले से रिपोर्ट में आगे कहा गया कि वे अभी बोरबोरा चाय के बाग में दिहाड़ी पर काम कर रही हैं एवं BA की पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें सरकार, ओलंपिक कमेटी या यूनिसेफ से भी अब तक कोई मदद नहीं मिली है।
अधिकतर मीडिया समूहों ने पिंकी द्वारा भारत का ओलंपिक खेलों में प्रतिनिधित्व करने का दावा किया जिसके कारण आम जनता के बीच इस प्रकार की भ्राँति फैल गई कि पिंकी एक खिलाड़ी थीं, एवं सरकार ने ओलम्पिक खेलों के उपरान्त उन पर ध्यान नहीं दिया। इसी कारण उन्हें इस प्रकार की दयनीय स्थिति में रहना पड़ रहा है।
डू-पॉलिटिक्स की टीम ने इसकी जाँच करते हुए 2012 के ओलिंपिक खिलाड़ियों की लगभग पूरी सूची निकाली, जिसमें पिंकी कर्मकार (Pinky Karmakar) का कहीं नाम नहीं मिला। इसी विषय में गहन पड़ताल के बाद यह सामने आया कि असल में पिंकी किसी खेल से संबंध नहीं रखती हैं, वे केवल यूनिसेफ द्वारा ओलम्पिक खेलों के लिए चुनी गई एक टॉर्चबियरर थीं।
असल में ओलंपिक में ये दो अलग-अलग प्रकार के पद होते है। इनमें से एक को ‘फ्लैगबीयरर’ यानी ‘ध्वजवाहक’ एवं दूसरे को ‘टॉर्चबियरर’ यानी ‘मशालवाहक’ कहा जाता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि तकनीकी आधार पर मशालवाहक किसी विशेष देश का नहीं बल्कि ओलंपिक खेलों, खेल भावना एवं मेज़बान देश की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चयन भी मेज़बान देश के ही ओलंपिक संघ द्वारा किया जाता है।
इसी कारण इस मामले में आवश्यक है कि यह समझा जाए कि यूनिसेफ ने 2012 लंदन ओलंपिक के लिए पिंकी को मशाल वाहक के रूप में आगे बढ़ाया था। इसमें भारत सरकार या राज्य सरकार का भी कोई लेना-देना नहीं है। पिंकी की खेल एवं खिलाड़ियों के प्रति सकारात्मक भावनाएँ देखते हुए उनका चुनाव किया गया था।
नैतिकता की दृष्टि से पिंकी एवं ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा देश या राज्य की सरकार से इस मामले में किसी प्रकार की अपेक्षाएँ रखना सही माना जा सकता है परंतु तकनीकी रूप से देखा जाए तो यह बिल्कुल गलत है।
इस मामले में जब सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाए कि पिंकी के द्वारा कौन सा खेल खेला गया था एवं वे ओलंपिक के अलावा और कहाँ-कहाँ खेली हैं, तभी यह पूरा मामला खुलकर सामने आया और विभिन्न तथ्य प्रस्तुत किए गए।
इसके उपरांत ही एनडीटीवी, एएनआई समेत कहीं मीडिया समूहों ने अब अपनी रिपोर्ट एवं ट्वीट या तो अपडेट या डिलीट कर दिए हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भारत में कई खेलों, खिलाड़ियों एवं एथलीटों की स्थिति दयनीय है। सरकारों द्वारा खेल पर अत्यधिक ध्यान नहीं दिया जाता है, परंतु अगर पिछले कई ओलंपिक खेलों और टोक्यो ओलंपिक में तुलना की जाए तो इस बार के खिलाड़ियों ने सम्बंधित खेलों में अच्छा खासा प्रदर्शन किया है। हॉकी में 40 से अधिक वर्षों बाद भारत को पदक प्राप्त हुआ एवं अन्य कई खेलों में भी विभिन्न पदक हासिल हुए हैं।
देश में खिलाड़ियों की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है और इसके लिए सरकारों पर दबाव बनाए रखना चाहिए, परंतु इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि यह दबाव एवं सरकारों की आलोचना एक सकारात्मक राह पर हो न कि फेक न्यूज़ फैलाकर जनता की भावनाओं का इस्तेमाल कर झूठ के आधार पर।