भारत-पाकिस्तान के बीच खेले गए t-20 क्रिकेट मैच के बाद भारतीय क्रिकेट टीम की हार चर्चा से बाहर हो गई। चर्चा में अगर कुछ है तो वो है भारतीय गेंदबाज मोहम्मद शमी की कथित ट्रोलिंग। BCCI की पूरी लॉबी यह साबित करने पर तुली है कि मैच के बाद मोहम्मद शमी को भारतीयों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें गालियाँ दी जा रही हैं।
इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल ये बन गया है कि आखिर मोहम्मद शमी को कब, कहाँ और किसने निशाना बना दिया? मोहम्मद शमी की ‘ट्रोलिंग’ पहाड़ी पर रहने वाले उस भूत की तरह हो चुकी है, जिसे बीड़ी-माचिस देने का दावा तो घर-गाँव के सभी गप्पबाज अपनी-अपनी कहानी में करते हैं लेकिन असल में उसे देखा किसी ने आज तक नहीं है।
वास्तव में हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ फ़ैक्ट चेक करने वाले पहले फ़ेक न्यूज़ फैलाते हैं और फिर उसका फ़ैक्ट चेक करते हैं। यह उनका बिजनेस मॉडल है। सोचिए कि अब्दुल किसी रोज अपने बिस्तर से खड़ा उठे, सुबह की नमाज़ पढ़े और उसके बाद उसे पता चले कि आज तो बाज़ार में कोई फ़ेक न्यूज़ है ही नहीं। अब्दुल तो फ़ौरन बेरोज़गार हो जाएगा। अब अब्दुल नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या?
समस्या यहीं पर शुरू हो जाती है। तुरंत अब्दुल का सहयोगी, यानी प्रतीक उसे सलाह देता है कि फ़ेक न्यूज़ है नहीं तो फ़ेक न्यूज़ फैला दो। इसमें क्या बड़ी बात है? दो-चार ऐसे अकाउंट बना कर रखो, जिनसे फ़ेक न्यूज़ फैलाई जा सके और फिर उनकी धर-पकड़ कर उनका फ़ैक्ट चेक कर देना।
फ़ैक्ट चेकर गैंग की एक समस्या का हल तो हो गया। अब फ़ैक्ट चेकिंग के बिज़नेस से एक किस्सा याद आता है। एक बार अब्दुल निकाह के लिए लड़की पसंद करने गया। लड़की वालों ने पूछा कि आप क्या काम करते हैं?
इसके जवाब में अब्दुल बोला कि ‘जी ऑनलाइन बिजनिस्स है, मैं और मिरा दोस्त पार्टनर हैं।’ लड़की वालों ने थोड़ा खुद को वार्तालाप में मशगूल दिखाने के लिए पूछा कि ‘थोड़ा बताएँगे कैसा बिजनेस?’
डेस्परेट अब्दुल उन्हें बताता है कि जब कोई ऑनलाइन फ़ेक न्यूज़ डालता है तो वो उसका पूरा सच दुनिया के सामने लाता है। इस पर लड़की के अब्बा ने जिज्ञासावश पूछा, “तो फिर दोस्त क्या करता है?” अब्दुल जवाब देता है, “वही तो फ़ेक न्यूज़ फैलाता है।”
अब वापस आते हैं मैच और मोहम्मद शमी पर। मोहम्मद शमी को निशाना बनाए जाने की बकवास इतनी ज्यादा आधार विहीन है कि इस पर खुद मोहम्मद शमी भी सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर निशाना बनाया तो कब और किसने?
इस बात की संभावना भी बहुत कम ही हैं कि क्रिकेट टूर्नामेंट के बीच वो इस पर कुछ कहेंगे। लेकिन कम से कम इतना तय है कि BCCI और पूरा तंत्र फिलहाल यह साबित करना चाहता है कि मोहम्मद शमी को निशाना बनाया जा रहा है। अब मोहम्मद शमी की यह ट्रोलिंग किस अकाउंट ने और कब की, ये राज भी उसी अकाउंट के साथ कहीं छुपे हुए हैं।
ट्विटर पर एक ओर जहाँ लोग मैच में मिली हार पर बहस कर रहे थे तभी पाकिस्तान की जीत की ख़ुशी में पटाखे फूटने की ख़बरें भी चर्चा में कूद पड़ीं। सोशल मीडिया की प्रवृत्ति भी ऐसी है कि ट्रेंड बदलते समय नहीं लगता। जहाँ एक सेकंड पहले नेहरू ट्रेंड कर रहे होते हैं, वहीं दूसरे ही सेकंड पेज रिफ्रेश करो तो पता चलता है कि एडविना ट्रेंड करने लगी हैं।
एक के बाद एक ट्वीट आने लगे जो मोहम्मद शमी के साथ अपनी एकजुटता दिखा रहे थे। इसमें BCCI से जुड़ा ऊपर से नीचे तक का लगभग हर आदमी शामिल था। यहाँ तक कि राहुल गाँधी के साथ-साथ पूर्व एवं वरिष्ठ मैच फिक्सर मोहम्मद अजहरुद्दीन तक मोहम्मद शमी के साथ खड़े होने का दावा करते देखे गए और कहने लगे कि खेल भावना की जीत होनी चाहिए।
इन सबमें एक नाम और जुड़ गया। ये नाम था मेरे पसंदीदा क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का। 25 अक्टूबर की देर शाम सचिन तेंदुलकर ने भी ट्वीट करते हुए कहा कि वो भी मोहम्मद शमी के साथ खड़े हैं।
सचिन ने यह ट्वीट करने से पहले मामले का फ़ैक्ट चेक करने की भी मेहनत नहीं की होगी यह भी सत्य है। यह ज़िक्र करना बेहद ज़रुरी है कि ये वही सचिन तेंदुलकर हैं जिनके क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद मैंने क्रिकेट देखना ही बंद कर दिया।
सचिन के खेल का मैं इस क़दर शागिर्द रहा हूँ कि जबसे सचिन ने खेल को अलविदा कहा, मेरा क्रिकेट देखना ही छूट गया। यह कुछ इस तरह था, जैसे प्रेमिका से प्रेम सम्बन्ध टूटने के बाद इंसान प्रेमिका की गली तक नहीं जाता, मैं उसी तरह किसी स्पोर्ट्स चैनल की ओर नहीं गया।
सचिन तेंदुलकर के खेल के प्रति यह आस्था सिर्फ उनके खेल के कारण ही थी। क्योंकि बहुत अहम अवसरों पर इस व्यक्ति ने अक्सर अपने मौन को ही अपनी सुविधा समझा है। सचिन तेंदुलकर इस बात के एक बेहतरीन उदाहरण हैं कि किस तरह से मौन को ही सुविधा बना कर भी इंसान एक अच्छी खासी ज़िन्दगी जी सकता है।
मोहम्मद शमी के प्रकरण पर फ़ौरन कूद जाने वाले ये वही भारत रत्न सचिन तेंदुलकर हैं जो तकरीबन पच्चीस साल भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम का हिस्सा होने के बावजूद मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी जैसी चीजों से अनजान ही रहे।
सचिन तेंदुलकर एक समय भारतीय क्रिकेट टीम के कोच बने ग्रैग चैपल जैसी त्रासदी के दौरान भी चुपचाप ही रहे। वह दौर याद करिए जब ग्रेग चैपल कोच बनकर भारतीय टीम पर अपना अजेंडा थोप रहे थे। तब भी सचिन ने मौन में ही सुविधा देखी थी।
यही नहीं, जो BCCI अपनी कार्यप्रणाली के कारण विश्वभर में और भारत में भी निरंतर आलोचना का केंद्र रही है, उसके अजेंडे के खिलाफ भी सचिन ने मौन ही रखा हुआ है। बात चाहे सौरव गाँगुली के प्रकरण की हो या फिर राहुल द्रविड़ के कप्तान चुने जाने तक के विवाद की, सचिन मौन ही रहे।
इसके अलावा निजी जीवन में देखें तो सचिन तेंदुलकर के मसूरी स्थित बंगले, जिसे कि ‘ढहलिया बैंक’ भी कहा जाता है, में छावनी क्षेत्र संबंधी नियमों का उल्लंघन कर व्यापक स्तर पर अवैध निर्माण कराने का भी आरोप है। इस पर भी वो मौन ही रहे।
यहाँ तक कि जिस आईसीएल की थीम चुरा कर आईपीएल की नींव रखी गई उस से जुड़ने वाले खिलाडियों से की गई BCCI की दादागिरी और मोनोपॉली पर भी सचिन चुप ही रहे। जब कॉन्ग्रेस ने सचिन को संसद भेजा तो वहाँ भी वो एकदम मौन ही रहे। लेकिन जिस मोहम्मद शमी पर कथित अत्याचार की बात कही जा रही है, वहाँ सचिन तेंदुलकर ट्वीट दाग रहे हैं।
बाल ठाकरे ने सचिन तेंदुलकर को एक राय दी थी। ठाकरे ने कहा था कि वो क्रिकेट की पिच छोड़कर राजनीति की पिच में ना ही उतरें। लेकिन सचिन तेंदुलकर जमकर राजनीति में रहे हैं। यह उनका बड़ा दिल हो सकता है कि वो किसी को ना नहीं कह पाते होंगे।
अब सवाल उठता है मोहम्मद शमी को किसने गाली दी? ट्विटर की बात करें तो बड़े से बड़े गालीबाज इस बात को ले कर हैरान हैं कि जब उन्होंने ही मोहम्मद शमी को गाली नहीं दी तो फिर आखिर मोहम्मद शमी को गाली दी किसने?
गाली देने वाले तो पिछले कई वर्षों से विराट कोहली को जम कर गाली दे रहे हैं, खरी-खोटी सुना रहे हैं। यहाँ तक कि उनके निजी जीवन को भी उनकी बल्लेबाजी के बीच लाया जाता रहा है।
कोहली पर आरोप भी लगते हैं कि ये सिर्फ विज्ञापनों के लिए क्रीज पर उतरता है और अपना मुँह बना कर निकल जाता है। लेकिन BCCI ने आखिर कभी विराट कोहली के समर्थन में टूलकिट क्यों नहीं निकाली?
क्या BCCI अपने खिलाड़ियों में मजहब के नाम पर भेदभाव करता है? जिस BCCI ने कुछ अमेरिकी आन्दोलनजीवियों के लिए टीम इंडिया को घुटनों पर बिठा दिया, वो मोहम्मद शमी के साथ-साथ ये भी तो कह सकता था कि विराट कोहली को भी निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बहुत संभव है कि विराट कोहली भी मन में सोच रहे होंगे कि अगर उनके नाम में भी मोहम्मद या खान लगा होता तो क्या BCCI और उनकी से उनके साथ भी खड़ी होती?
इस पूरे प्रकरण में वामपंथियों की निशानदेही और तत्परता देखने लायक है। पाकिस्तान के जश्न में फूटे पटाखों को मोहम्मद शमी की कथित ट्रोलिंग ने दबा दिया। सभी ने एकजुट हो कर बिना ‘इफ़ और बट’ किए ट्वीट दागे।
हिन्दू एक बार फिर नफ़रत फ़ैलाने वाले साबित हो गए हैं जबकि मोहम्मद शमी अगले मैच में आलोचकों को करार जवाब देने जा रहे हैं। लोग चुपके से भूल गए कि BCCI की यह टीम ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ (BLM) के लिए घुटनों पर झुकी थी। भारतीयों का आक्रोश किसी भी बाजार को प्रभावित कर सकता है।
सबको करना आखिरकार बिजनेस ही है। जल में रह कर मगर से बैर कैसा – बॉलीवुड, बॉलीवुड के साथ खड़ा हो जाता है। क्रिकेट, क्रिकेट के साथ खड़ा हो जाता है… और मेरे जैसा आम आदमी दूसरे आम आदमी से सवाल करता रह जाता है – “आखिर तू क्यों चुप है?”