आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान सभा को संबोधित करते हुए भारतीय सभ्यता और संस्कृति को लेकर अपनी राय रखीं। उन्होंने कहा कि ये भारतीय संस्कृति ही है जो इस देश को एक साथ जोड़े हुए है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विभाजन के बाद पाकिस्तान गए मुस्लिमों का उस देश में कोई सम्मान नहीं है। उन्होंने कहा कि विभाजन के बाद से भारत में रहने वाले मुस्लिम भारत के हैं, भले ही उनकी पूजा पद्धति कुछ भी हो।
मंगलवार (12 अक्टूबर, 2021) को उदय माहुरकर और चिरायु पंडित द्वारा लिखी गई किताब ‘वीर सावरकर: द मैन हु कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टीशन’ के प्रमोशन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रिटायर्ड जनरल एवं सांसद वीके सिंह भी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में मोहन भागवत ने सभा को संबोधित करते समय कई बातें कहीं।
उन्होंने कहा:
“विभाजन के बाद जो मुस्लिम पाकिस्तान में पलायन कर गए थे, उनका वहाँ कोई सम्मान नहीं है। भारत एक उदारवादी सभ्यता का देश रहा है, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यही संस्कार हमें आपस में बाँधे रखने में सहायता करते हैं जो संस्कार हिंदू धर्म से आते हैं। सावरकर ने लिखा है कि किस तरह हिंदू राजाओं का भगवा ध्वज और नवाबों का हरा झंडा एक साथ मिलकर ब्रिटिश राज के विरुद्ध खड़े रहे।”
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आगे कहा कि हिंदू राष्ट्रवाद इसी की बात करता है। जहाँ अलग-अलग पंथों का पालन करते हुए भी राष्ट्र के नाम पर यहाँ एकता है। उन्होंने आगे बताया कि किस तरह सावरकर ने कहा था कि अंग्रेजों को यह समझ आ गया था कि वे एक विभाजन की सोच पैदा करके ही भारत पर राज कर सकते हैं, इसी कारण उन्होंने कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया।
मोहन भागवत ने यह भी बताया कि अंडमान से आने के बाद सावरकर ने अपनी किताब में लिखा कि अलग-अलग पंथों पर चलने के बाद भी एकता होना ही हिंदू राष्ट्रवाद कहलाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख ने कई मुस्लिम विचारकों के विषय में बात करते हुए कहा:
“सर सैयद अहमद खान स्वयं को भारत माँ का बेटा कहते थे। केवल उनकी इबादत का तरीका इस्लाम था। भारत में कट्टरपंथ प्राचीन काल में भी था। अगर इतिहास में दारा शिकोह और अकबर जैसे लोग हुए हैं तो दूसरी और औरंगजेब जैसे कट्टरपंथी लोग भी रहे हैं। दारा शिकोह, हसन खान मेवाती, इब्राहिम खान गर्दी, हकीम खान सूर, और अशफाकउल्ला खान जैसे लोग स्मरण करने योग्य हैं।”
मोहन भागवत ने कहा कि सावरकर का हिंदुत्व ‘अखंड भारत’ के बारे में था, जहाँ किसी को भी उसके धर्म, जाति और स्टेटस के आधार पर अलग नहीं समझा जाता और ये ‘राष्ट्र प्रथम’ के विचार पर आधारित था।
उन्होंने कहा, “भारतीय समाज में कई लोगों ने हिंदुत्व और एकता के बारे में बात की, लेकिन सावरकर ही थे, जिन्होंने इसे पुरजोर तरीके से कहा और अब सालों बाद ऐसा महसूस किया जा रहा है कि अगर सभी ने पुरजोर तरीके से बात की होती तो कोई विभाजन नहीं होता।”
आरएसएस प्रमुख ने जम्मू कश्मीर के विषय में भी बात करते हुए कहा कि अभी वह जब राज्य में गए तो उन्होंने देखा कि स्कूलों के नाम ऐसे क्रांतिकारियों के नामों पर रखे जा रहे हैं जो ‘भारत’ में विश्वास रखते थे।
उन्होंने कहा की पूजा पद्धति या इबादत के तरीके अलग हो सकते हैं, परंतु सभी के पूर्वज एक रहे हैं और हम मातृभूमि को नहीं बदल सकते।