देश की संसद में पारित किए गए 3 किसान बिलों के विरोध में लगभग एक वर्ष से चल रहा तथाकथित किसानों का आंदोलन पहले ही दिन से विरोध जैसा बिल्कुल भी प्रतीत नहीं हो रहा है। यहाँ न केवल विरोध के नाम पर उपद्रव और अराजकता का माहौल बनाया जा रहा है बल्कि इसके साथ-साथ किसान विरोध प्रदर्शन स्थल अपराधों का एक अड्डा बन कर सामने आया है।
यहाँ शुरुआत में नशे का व्यापार और छोटे-मोटे अपराध आम सी बात थी और धीरे-धीरे ये अपराध भीषण होते चले गए। यौन शोषण के साथ-साथ विरोध स्थल पर बलात्कार जैसी अमानवीय घटनाएँ भी हुईं। निर्ममता की सभी हदें उस समय पार हो गईं जब कथित किसानों द्वारा अपने ही साथी किसानों को कभी जलाकर मारा गया तो कभी एक भीड़ द्वारा एक निहत्थे कमज़ोर किसान की क्रूर हत्या को अंजाम दिया गया।
15 अक्टूबर, 2021 को किसान विरोध स्थल पर लखबीर सिंह नामक व्यक्ति की हाथ कटी लाश लटकी मिलना कोई नई और एकमात्र घटना नहीं है। पंजाब के तरनतारन का रहने वाला यह व्यक्ति मजदूरी करता था और उसकी 3 बेटियाँ भी थीं।
अत्यंत क्रूर ढंग से लखबीर सिंह को मौत के घाट उतारा गया। इस मौके पर कई ऐसे सोशल मीडिया पोस्ट सामने आए हैं, जिनमें आंदोलनकारी कहते देखे जा सकते हैं कि इस व्यक्ति द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की गई थी और इसी कारण निहंग सिखों ने इस ‘पापी’ को सज़ा दी।
इस सबके बीच मुख्य सवाल यह खड़ा होता है कि कोई व्यक्ति इस प्रकार सिखों के गढ़ में जाकर उन्हीं के एक धार्मिक ग्रंथ का अपमान करने की बेवकूफी आखिर क्यों करेगा?
यह कृत्य इस बात को तो साफ करता है कि सालभर से सड़कों को जाम कर के बैठे आंदोलनकारी किसान तो अवश्य ही नहीं हो सकते। और अगर इस आंदोलन में असली किसान शामिल भी हैं तो इन कुकृत्यों को देखकर उन्हें जल्द से जल्द स्वयं को इन हत्यारों से अलग करना होगा नहीं तो उन्हें भी इन्हीं हत्यारों की श्रेणी में गिना जाएगा।
लखबीर सिंह से पहले भी अब तक कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ इन आंदोलनकारियों ने आम लोगों और साथी किसानों तक की क्रूर हत्याएँ की हैं।
20 जनवरी, 2021 को किसान उपद्रवियों ने दिल्ली के लाल किला समेत विभिन्न क्षेत्रों में भीषण उपद्रव मचाया था। इन्होंने न केवल पुलिस के साथ मारपीट की और उन्हें घायल किया, बल्कि ट्रैक्टर लेकर दिल्ली की सड़कों को रौंदते किसानों ने खूब सार्वजनिक संपत्ति भी मिट्टी में मिलाई।
इसी बीच सड़क पर ट्रैक्टरों से स्टंट दिखाते हुए एक व्यक्ति की जान भी चली गई, जिस की लाश को किसानों ने सड़क के बीचों-बीच रखकर आंदोलन भी प्रारंभ कर दिया था। इन लोगों का कहना था कि यह व्यक्ति पुलिस की गोली से मारा गया है।
इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी, जिसमें साफ देखा जा सकता था कि मृतक सड़क पर ट्रैक्टर से स्टंट करने का प्रयास कर रहा था, जिसके कारण ही दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई।
पंजाब के बठिंडा ज़िले के रामपुरा क्षेत्र में एक 60 वर्षीय व्यक्ति हाकम सिंह की 25 मार्च को आंदोलन स्थल पर ही गला रेतकर हत्या कर दी गई। आंदोलन स्थल से केवल आधा किमी दूर खेतों में उसका शव पड़ा मिला।
जाँच में सामने आई सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में हाकम सिंह हत्या के ही दिन दिन शाम को दो सिखों के साथ उसी ओर जाता दिखा जहाँ बाद में उसका शव मिला। फुटेज में कुछ देर बाद ही दोनों सरदार अकेले वापस आते देखे गए।
मामले में कहा गया कि पहले से प्लानिंग के चलते हाकम को आरोपित कुलवंत सुनसान जगह ले गया था। वहाँ उसे नशा करा कर चाकू से उसका गला रेत दिया गया।
अगली घटना अप्रैल 2021 की है जब 26 वर्षीय गुरप्रीत सिंह को टिकरी बॉर्डर पर किसानों द्वारा पीट-पीटकर जान से मार दिया गया। पुलिस द्वारा बताया गया कि रात को करीब 9:30 बजे गुरप्रीत और उसी के गाँव का युवक रणबीर साथ में शराब पी रहे थे। नशे में दोनों के बीच पैसों को लेकर झड़प हुई।
इसके बाद पहले गुरप्रीत के सर पर लाठी से वार किया गया, जिससे वह गिर गया और उसके बाद लात-घूँसों से उसकी पिटाई की गई। गुप्तांगों समेत शरीर के कई अंगों में भीषण चोट आने के कारण अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई।
हत्याओं के साथ-साथ सालभर से चल रही महामारी कोरोना के विषय में भी ध्यान न देने के कारण कई किसानों की इस कथित आंदोलन में मृत्यु हुई है। जहाँ सरकार सभी देशवासियों से सतर्कता बरतने की गुहार लगा रही है, वहीं इस आंदोलन में किसानों द्वारा बिना किसी कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए खुलकर मनमानी जारी है।
लापरवाही के चलते सिंघु बॉर्डर पर धरने में शामिल 2 किसानों की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद भारतीय किसान यूनियन द्वारा आंदोलन को स्थगित करने की बात भी सुनने में आई थी।
मरने वालों में से एक किसान की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव भी आई थी। जिसके बाद यह बातें भी सामने आई कि आंदोलन स्थल पर किसान कोरोना की जाँच करवाने में भी आनाकानी कर रहे हैं।
16 मई, 2021 को हरियाणा राज्य में किसान पुलिस वालों के बीच एक झड़प हुई थी, जिसमें 350 किसानों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसके बाद किसान आंदोलनकारियों ने इन सभी किसानों पर से एफआईआर हटाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।
24 मई, 2021 को हिसार में चल रहे इस आंदोलन में रामचंद्र नामक एक किसान के हृदय गति रुकने के कारण मृत्यु हो गई थी। किसानों द्वारा रामचंद्र की स्थिति बिगड़ने पर उसे अस्पताल नहीं ले जाया गया और मरने के बाद उसे तिरंगे में लपेटकर शहीद घोषित कर दिया गया।
जून 2021 की रात को 42 वर्ष के व्यक्ति मुकेश को हरियाणा के बहादुरगढ़ स्थित कसार गाँव में ज़िंदा जला कर उसकी हत्या कर दी गई थी। मरने से पहले इस व्यक्ति की एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही थी।
बुरी तरह झुलसे मुकेश की गंभीर हालत देखते हुए सिविल अस्पताल ने इलाज़ से हाथ खड़े कर लिए, जिसके बाद उन्हें ब्रह्म शक्ति संजीवनी हॉस्पिटल ले गए। इलाज के दौरान हॉस्पिटल में ही मुकेश की मृत्यु हो गई थी।
आरोप लगाया जा रहा था कि आरोपितों ने मुकेश पर केरोसीन का तेल छिड़क कर आग लगाईं थी। पूर्व प्रधान ने आरोप लगाया कि धरने पर मौजूद किसानों ने कसार गाँव के प्रधान को बुलाकर धमकी दी कि अगर ब्राह्मण अब भी इस किसान आंदोलन में शामिल नहीं होंगे तो उन्हें और भी गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। आंदोलनकारियों ने इस मामले को सरकारी की चाल बताते हुए इस घटना को आत्महत्या करार करने का प्रयास भी किया था।
हाल ही में हुए लखीमपुर खीरी के विवाद को भी भूला नहीं जा सकता। यहाँ एक समारोह के लिए जाते भाजपा कार्यकर्ताओं और आंदोलनकारियों के बीच झड़प ने भी 8 लोगों की जान ले ली थी। सोशल मीडिया पर कई ऐसे भयानक वीडियो सामने आए जिनमें किसान आंदोलनकारी भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठियाँ बरसाते देखे जा सकते हैं।
हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने के बाद भी इन लोगों ने भाजपा कार्यकर्ताओं और उनके ड्राइवरों को नहीं बख्शा और पीट-पीट कर मार डाला। इस घटना का उत्तर प्रदेश विपक्षी पार्टियों ने खासा फायदा उठाया और कॉन्ग्रेस की प्रियंका गाँधी वाड्रा समेत सपा के अखिलेश यादव ने भी इस पर राजनीतिक रोटियाँ सेकने का खूब प्रयास किया।
हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सभी मृतकों को 45-45 लाख और घायलों को 10-10 लाख रुपए मुआवजे के रूप में देने का ऐलान किया गया था। साथ ही सभी मृतकों के परिवार से किसी एक व्यक्ति को योग्यता अनुसार सरकारी नौकरी देने की भी बात कही गई थी।
सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि लखीमपुर खीरी की घटना पर सरकार और प्रशासन की चुप्पी और अब तक इस आंदोलन को निरस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाना ही निरंतर इन लोगों को हिम्मत दे। इसी के कारण 15 अक्टूबर को कुंडली सीमा पर लखबीर सिंह की निर्मम हत्या कर उसकी लाश को लटकाया गया।
आंदोलन के नाम पर सालभर से निरंतर होती हत्याएँ और उपद्रव के कारण आम जनता भी काफी परेशान हो चुकी है और वे सरकार और प्रशासन से इस सब को लेकर जवाब माँग रहे हैं। केंद्र सरकार को जल्द से जल्द इस मामले को गंभीरता से लेना होगा अन्यथा इस प्रकार के कुकृत्य जारी रहेंगे और देश की कानून व्यवस्था पर निरंतर हमले होते रहेंगे।