कोलकाता पुलिस में महिला कॉन्सटेबल के पदों के लिए हिजाब पहनकर आवेदन भेजने वाली कुछ युवतियों के आवेदन रद्द कर दिए गए हैं। अब आवेदन रद्द किए जाने के खिलाफ कुछ आवेदनकर्ताओं ने कलकत्ता हाईकोर्ट में शरण ली है।
बता दें कि कोलकाता पुलिस में महिला कॉन्स्टेबल के पद के लिए जिन महिला अभ्यर्थियों ने हिजाब पहनीं तस्वीर के साथ आवेदन किया था, उन सभी आवेदनों को खारिज कर दिया गया था।
दरअसल पिछले साल पश्चिम बंगाल में कोलकाता पुलिस में भर्ती के लिए करीब साढ़े आठ हजार कॉन्स्टेबल की नियुक्तियों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे, उनमें से 1,192 पद महिला कॉन्स्टेबल के थे।
पश्चिम बंगाल पुलिस भर्ती बोर्ड ने 6 सितंबर को परीक्षा के लिए आवेदन पत्र भी जारी दिए थे, लेकिन इस परीक्षा के लिए 30,000 से अधिक छात्रों के आवेदन पत्र जारी नहीं किए गए। उन्हें इसका कारण यह बताया गया है कि ‘आपने फॉर्म जमा करते समय कुछ गलतियाँ की हैं’।
जिन 30,000 छात्रों के आवेदन पत्र जारी नहीं हुए हैं, उनमें 1,000 से अधिक मुस्लिम लड़कियाँ हैं। क्योंकि उन लोगों ने फार्म भरते समय जो तस्वीरें अपलोड की थीं उनमें हेडस्कार्फ़ या हिजाब पहने हुए दिखाई दे रही हैं।
डब्ल्यूबीपीआरबी की गाइडलाइंस में कहा गया है कि फोटो में किसी भी तरह से आवेदकों के चेहरे को कवर नहीं किया जाना चाहिए।
बोर्ड के दिशानिर्देश में स्पष्ट कहा गया है कि आवेदकों के चेहरा/सिर ढकने वाला फोटोग्राफ, आँखों को ढकने वाले धूप के चश्मे और ग्रुप फोटोग्राफ या सेल्फ़ी से क्रॉप किए गए फ़ोटोग्राफ़ को भी अनुमति नहीं दी जाएगी।
बावज़ूद इसके 1000 से अधिक मुस्लिम महिला अभ्यर्थियों ने हिजाब पहनी हुई फ़ोटो के साथ आवेदन किया था। इन सभी ऑनलाइन आवेदनों को अस्वीकार कर दिया गया था।
इसे लेकर कुछ आवेदनकर्ताओं ने कोलकाता हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हिजाब पहनना हमारा संवैधानिक अधिकार है। पुलिस भर्ती बोर्ड हमें हमारे धार्मिक अधिकारों से वंचित कर रहा है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बोर्ड का यह नया नियम संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
न्यायाधीश अरिंदम मुखोपाध्याय की अदालत में मामले पर सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष के अधिवक्ता ने दलील पेश करते हुए कहा कि पुलिस एक अनुशासित बल है,जहाँ अनुशासन एक महत्वपूर्ण पहलू है।
वहीं दूसरी तरफ आवेदनकारियों के अधिवक्ता बिकास रंजन भट्टाचार्य व फिरदौस शमीम ने कहा कि यह एक मजहबी रीति है और इस आधार पर किसी को नौकरी की परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा सकता।
न्यायमूर्ति अरिंदम मुखर्जी ने शुरू में कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपने धार्मिक रीति-रिवाज के आवश्यक हिस्से के रूप मे हिजाब के साथ अपनी संबंधित तस्वीरों के साथ आवेदन रद्द करने पर सवाल उठाए हैं क्योंकि तस्वीर में चेहरा आवश्यक पहचान के लिए स्पष्ट है।
अब इस मामले का निपटारा होने के बाद ही कॉन्सटेबल पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। इस मामले पर अगली सुनवाई आगामी 6 जनवरी को होगी।
इस मामले में बोर्ड के एक सदस्य का कहना है कि डब्ल्यूबीपीआरबी के दिशानिर्देश स्पष्ट रूप से कहते हैं कि एक उम्मीदवार की तस्वीर सिर को ढके बिना स्पष्ट रूप से दिखाई देनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि हमने विभिन्न कारणों से 30,000 आवेदनों को खारिज कर दिया है। इनमें सभी धर्मों के उम्मीदवार शामिल हैं। हमने उनके धर्म की जाँच नहीं की है कि वे मुसलमान हैं या सिख या हिंदू हैं। हमने पुरुषों या महिलाओं के साथ भी भेदभाव नहीं किया है।