मुस्लिम बन गए लेकिन चुनावों में आरक्षित सीटों का लाभ लेते रहे ये सांसद और जनप्रतिनिधि

13 जून, 2021
पंथ परिवर्तन कर चल रहा घिनोना सियासत का खेल

बंगाल के आरामबाग लोक सभा क्षेत्र से तृणमूल कॉन्ग्रेस की सांसद आफरीन अली पर धोखाधड़ी का मुकदमा सामने आया है। आफरीन अली (अपरूपा पोद्दार) पर यह आरोप है कि उनके द्वारा आरामबाग लोक सभा क्षेत्र की आरक्षित एससी सीट से चुनाव लड़ा जबकि वे आरक्षण की हकदार नहीं हैं। 

पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा द्वारा एक ट्वीट के माध्यम से यह जानकारी साझा की गई। इसमें विश्व दलित परिषद द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत की कॉपी है।‌ असल में आरामबाग लोक सभा सीट चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई थी तथा इस पर चुनाव लड़कर आफरीन अली जीत जाती हैं।


उसी का संज्ञान लेते हुए विश्व दलित परिषद द्वारा इसे संविधान के अनुच्छेद 341 का उल्लंघन बताया गया तथा मामला दर्ज किया गया। उनका पक्ष है कि जब हिंदू धर्म की अनुसूचित जाति में जन्मी अपरूपा पोद्दार ने मुसलमान मोहम्मद शाकिर अली से शादी कर नाम बदल लिया तो वह अनुसूचित जाति की कैसे रहीं? परिषद का कहना है कि उनका आरामबाग सीट से खड़ा होना अवैध है तथा उन्हें जल्द से जल्द पद से खारिज किया जाना चाहिए। 

देखा जाए तो यह इस प्रकार की धोखाधड़ी का कोई पहला मामला नहीं है। कानून मंत्री की मानें तो इस्लाम या इससे पंथ में परिवर्तित होने के बाद कोई हिंदू धर्म की अनुसूचित जाति का व्यक्ति अनुसूचित जाति को मिल रहे आरक्षण या किसी प्रकार की सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकता। इसके बावजूद ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें शादी करके या अन्य तरीकों से पंथ परिवर्तन के बावजूद आरक्षण का लाभ उठाया जा रहा है। 

इनमें से कुछ ही मामलों में सुनवाई पूर्ण होकर न्याय मिल पाता है, परन्तु अधिकतर में जाँच अब तक अटकी हैं। 

कुछ समय पूर्व पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा द्वारा ऐसे कई मामलों को उजागर किया गया था। 

शादी मुस्लिम से, चुनाव एससी आरक्षित सीट से 

गत वर्ष जुलाई में उत्तराखंड की एक महिला कविता पर मुकदमा दर्ज हुआ जिसमें उनके खिलाफ धोखाधड़ी का आरोप था। कविता पर आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 171F और 171G के तहत मामला दर्ज हुआ।

इस FIR में यह कहा गया था कि एक दलित परिवार में पैदा हुई कविता ने मुआजम नाम के मुसलमान व्यक्ति से 1997 में शादी की थी। इसके बाद वह पंथ परिवर्तन कर कविता से आशिया बन गई थी। सालों बाद 2015 में उत्तराखंड के ज़िला पंचायत चुनावों में आशिया द्वारा एससी प्रमाण पत्र लगाकर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ा गया। 

मामला तब खुला जब उसी सीट पर चुनाव लड़ी महिला सविता द्वारा इसको लेकर शिकायत दर्ज कराई गई। उनके द्वारा पहले ज़िला मजिस्ट्रेट को शिकायत डाली गई, जिस पर कोई कार्रवाई न होने के कारण मामला हाई कोर्ट में ले जाया गया। 

 सविता की शिकायत (चित्र साभार- Swarajyamag)

हाई कोर्ट ने फैसला सविता के पक्ष में देते हुए आशिया का एससी प्रमाण पत्र खारिज करने तथा उन पर शिकायत दर्ज करने का निर्णय दिया। 

आशिया ने 2018 में इस निर्णय के विरुद्ध पुनः खास अपील की है। उन्होंने कहा कि शादी के दौरान उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत अपनी शादी दर्ज नहीं कराई थी, परंतु अब उनके द्वारा ऐसा कर लिया गया है तथा उन्होंने 2010 में अपना नाम आशिया से कविता कराने को लेकर आग्रह भी डाला था। 

कमीशन की रिपोर्ट (चित्र साभार-Swarajyamag)

कोर्ट द्वारा पूरे मामले को सुनने के बाद फैसला सुनाया गया कि संविधान की तीसरी धारा के अनुसार कोई भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति पंथ परिवर्तन के बाद आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता। इसके साथ ही यह भी सामने आया कि शादी के समय आशिया नाबालिग की।

आशिया को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र नहीं मिल सकता क्योंकि वह एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी कर चुकी है। साथ ही वह आरक्षण का लाभ उत्तराखंड में नहीं उठा सकती क्योंकि वह दिल्ली में रह रही है तथा ऐसे मामलों में आरक्षण राज्य स्तर पर देखा जाता है

आशिया के एससी प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया गया तथा उसे ज़िला पंचायत के पद से भी हटा दिया गया।

20 सालों बाद बना शमशाद से बलवंत 

अगला मामला मुरादाबाद के ज़िला पंचायत वार्ड नंबर 2 से आता है, जहाँ  20 साल पहले हिंदू से मुसलमान बने व्यक्ति द्वारा बलवंत जाटव बन कर चुनाव लड़ा गया। 

1990 के दशक में इस्लाम कबूल कर शमशाद बनने के लगभग 20 वर्षों के बाद 2015 में शमशाद द्वारा जाति प्रमाण पत्र निकलवाया गया। इसके उपरान्त शमशाद ने मुरादाबाद से ज़िला पंचायत का चुनाव लड़ा तथा वह जीत भी गया। 

शमशाद (चित्र साभार- Swarajyamag)

सामने खड़ी दूसरी प्रत्याशी मिथिलेश रानी द्वारा शमशाद के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई, जिसमें विश्व दलित परिषद के भूपेंद्र पाल सिंह जाटव ने उनके सहायता की। जिलाधिकारी के मुसलमान होने के कारण इस शिकायत पर ध्यान नहीं दिया गया, तो ये लोग मामले को न्यायालय में तक लेकर गए। वहाँ रानी ने शिकायत की कि शमशाद ने 1990 में मुसलमान बनते हुए इस्लाम कबूल कर लिया था तथा वोटर लिस्ट में भी उसका नाम शमशाद दर्ज है। 

जाँच के दौरान पता चला कि शमशाद द्वारा बनवाया गया अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र भी नकली है तथा उसके खिलाफ नवंबर, 2016 में आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज हो गया। 

दिसंबर, 2016 में शमशाद को ज़िला परिषद के पद से हटाते हुए यह निर्णय दिया गया कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ गैर हिंदुओं के लिए नहीं हैं। इनका लाभ उठाने के लिए व्यक्ति का हिंदू या सिख होना आवश्यक है।

न्यायालय का आदेश (चित्र साभार-Swarajyamag)

हज सब्सिडी भी, आरक्षण का लाभ भी 

अगला समान मामला बिजनौर ज़िले से आता है, जहाँ रामनाथ सिंह और भगवान देवी के घर एक जाटव परिवार में जन्मी हिंदू युवती ने एक मुस्लिम व्यक्ति अब्दुल लतीफ से शादी करके इस्लाम कबूल लिया एवं शकीला बन गई। उसके बाद 2015 में नजीबाबाद ब्लॉक, वार्ड नंबर 8 से आरक्षित एससी सीट से चुनाव लड़कर शकीला जीत कर पद पा गई। 

दूसरी प्रत्याशी मंजू द्वारा बिजनौर एसपी तथा ज़िला मजिस्ट्रेट के पास इस मामले में शिकायत दर्ज कराई गई और विश्व दलित परिषद ने भी इस पर संज्ञान लिया और मामले को नेशनल कमिशन फॉर शेड्यूल्ड कास्ट तक लेकर गए। मंजू ने शिकायत में शकीला का पासपोर्ट दिखाया जिसमें हज के लिए सब्सिडी ली गई है तथा मुस्लिम रीतियों के द्वारा उसकी शादी भी संपन्न बताई गई। 

जुलाई 2017 में कमीशन ने इसका संज्ञान लेते हुए ज़िले के डीएम और एसपी को हड़काया। कमीशन ने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से न आता हो, वह अनुसूचित जाति का लाभ नहीं उठा सकता और शकीला द्वारा साफ़ किया गया है कि उसने इस्लाम में परिवर्तित होकर अपना पंथ बदला था। 

इसी को देखते हुए कमीशन ने यह निर्णय दिया कि उसका जाति प्रमाण पत्र रद्द किया जाए तथा उसे ज़िला पंचायत के पद से भी हटाया जाए। 

कमीशन द्वारा उन अधिकारियों के विरुद्ध भी शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया गया जिन्होंने शकीला का जाति प्रमाण पत्र बनाया था। 

बता दें कि शकीला के जाति प्रमाण पत्र पर खान राशिद अली नामक हस्ताक्षर देखे जा सकते हैं। 

शकीला का जाति प्रमाण पत्र (चित्र साभार- Swarajyamag)

दलित संस्था के प्रमुख भूपेंद्र पाल सिंह द्वारा बताया गया है कि अब तक मामले को लेकर सुनवाई आगे नहीं बढ़ी है। वे कहते हैं कि:

“मैं अब तक दसियों ऐसे मामले देख चुका हूँ जहाँ अनुसूचित जाति के परिवारों में पैदा हुए लोग शादी या पंथ परिवर्तन कर इस्लाम अपनाने के बाद भी आरक्षण का लाभ उठाते रहते हैं।”

गुलशन जहाँ ने छः बार झोंकी प्रशासन की आँखों में धूल

अगला मामला भारत की नौकरशाही व्यवस्था पर बड़े प्रश्नचिन्ह लगाता है। 1995 में मोहम्मद अकरम से शादी कर बबली से गुलशन जहाँ बनी महिला किस प्रकार भारतीय कानूनी व्यवस्था एवं संविधान से खिलवाड़ करती है, यह मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है।  

यह महिला अवैध रूप से छः बार आरक्षित एससी सीट पर चुनाव लड़ चुकी है। 

पंथ परिवर्तन कर मुसलमान बनी गुलशन जहाँ अपना मज़हब और पति का नाम छुपाते हुए अपने पिता पूरन सिंह के नाम से 7 फरवरी, 2009 को जाति प्रमाण पत्र बनाकर 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ती है। इसके बाद साल दर साल इसी प्रकार की धोखाधड़ी करती ही जाती है। 

2018 में विश्व दलित परिषद द्वारा उसके विरुद्ध शिकायत तब दर्ज होती है, जब गुलशन 2018 में आरक्षित एससी सीट से ज़िला पंचायत का चुनाव लड़ती है। शिकायत में तहसीलदार परमानंद झा का नाम भी था जिनके द्वारा गुलशन का जाति प्रमाण पत्र बनाया गया। इसके बाद गुलशन वार्ड नंबर-51 से पुनः बाय-पोल चुनाव लड़ती है। 

जब 2019 में मामला सामने आता है, तो यह खुलासा होता है कि गुलशन ने अपनी निजी जानकारी छुपा कर जाति प्रमाण पत्र बनवाया था तथा अवैध तरह से आरक्षित एससी सीटों पर 2009 का लोकसभा चुनाव, 2010 का ज़िला पंचायत चुनाव, 2012 में विधानसभा चुनाव, 2015 में ज़िला पंचायत चुनाव तथा 2017 में विधानसभा चुनाव भी लड़ा था।

बता दें कि भूपेंद्र पाल सिंह ‘चमार’ द्वारा पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा को यह बताया गया कि अब तक न तो गुलशन का जाति प्रमाण पत्र रद्द हुआ है न ही उसके विरुद्ध किसी FIR पर सुनवाई हो रही है। प्रशासन इन मामलों को गंभीरता से लेता ही नहीं है।

जर्जर नौकरशाही व्यवस्था 

ये सभी मामले देश की लापरवाह नौकरशाही व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इससे यह साफ होता है कि असल में जिसे आरक्षण जैसी योजनाओं का लाभ प्राप्त होना चाहिए वे तो इससे कोसों दूर रहते हैं तथा कई शातिर-नीच लोग व्यवस्था द्वारा जरूरतमंदों के लिए दी गई योजनाओं का उपयोग निजी फायदे एवं राजनीतिक हितों के लिए करते हैं। 

सरकारी कार्यप्रणाली के जर्जर होने का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि स्वाति गोयल शर्मा द्वारा यह मुहिम उठाने के बाद बिजनौर पुलिस अधीक्षक ने उन्हें यह दावा करते हुए चिट्ठी भेजी कि कोई दलित अगर इस्लाम या ईसाई पंथ में परिवर्तित हो भी जाए तो भी उसे आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा।


इसके जवाब में जब पत्रकार स्वाति की टीम द्वारा बिजनौर पुलिस अधिकारी को कानून बताया गया तो उन्होंने अपना दावा वापस खींच लिया।

नोट: यह रिपोर्ट ‘Swarajya Mag’ की पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा की रिपोर्ट की सहायता से तैयार हुई है।



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