दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार (अप्रैल 12, 2021) को केंद्र और दिल्ली पुलिस से कहा कि रमजान के लिए निजामुद्दीन के बंगले वाली मस्जिद को दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के दिशानिर्देशों के अनुसार इबादत के लिए खोल दिया जाए।
समाचार पत्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अदालत का कहना है कि जब अन्य धर्मों के लिए ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है तो फिर निज़ामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin Markaz mosque) में इबादत के लिए जाने वालों की भी कोई निश्चित सूची नहीं हो सकती है।
अदालत ने रमजान को ध्यान में रखते हुए केंद्र और दिल्ली पुलिस द्वारा सत्यापित किए गए 200 लोगों में से केवल 20 लोगों को इबादत के लिए मरकज परिसर में प्रवेश करने की अनुमति देने की बात को ख़ारिज कर दिया है। आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्लाह खान ने अपने ट्विटर अकाउंट से भी इसकी जानकारी दी है।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने कहा कि यह एक खुली जगह है। उनके कोई निश्चित श्रद्धालु नहीं हैं और ना ही किसी अन्य धर्म में ऐसा है। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति मंदिर, मस्जिद या चर्च जा सकता है और सिर्फ 200 व्यक्तियों की एक विशिष्ट सूची को इजाजत नहीं दी जा सकती।
उच्च न्यायालय ने कहा, “200 लोगों की सूची स्वीकार्य नहीं है। यह नहीं हो सकता है। हाँ, आप मस्जिद के निश्चित क्षेत्र को बना सकते हैं, यह कितना है और मुझे सोशल डिस्टेंसिंग के निर्देशों के अनुसार बताएँ कि उस मस्जिद में कितने लोग आ सकते हैं। तब हम कह सकते हैं कि एक निश्चित समय में वहाँ पर कितने लोग जुट सकते हैं और इसकी हम अनुमति देंगे। नाम कोई नहीं दे सकता।
अदालत ने कहा, “आपकी शिकायत उसमें आने-जाने वाले विजिटर्स से हो सकती है। फिलहाल, हम इसमें नमाज पढ़ने जाने वालों के लिए इसे खोल रहे हैं।”
गौरतलब है कि मामले में केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता रजत नायर ने अदालत से कहा था कि 200 लोगों की एक सूची पुलिस को सौंपी जा सकती है, लेकिन केवल 20 लोग ही एक समय में मस्जिद में प्रवेश कर सकते हैं ताकि सामाजिक दूरियों के मानदंडों का पालन किया जा सके।
दिल्ली वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने अदालत को बताया कि वे सभी प्रोटोकॉल का पालन करेंगे लेकिन ऐसी सूची को पालन करना व्यावहारिक रूप से कठिन होगा।
इससे पूर्व, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज के परिसर में प्रतिबंधों में ढील देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। निजामुद्दीन मरकज को पिछले साल कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान चर्चा में आए तबलीगी जमात के संबंध में मामला दर्ज होने के बाद से ताला लगा दिया गया था।
बंगले वाली मस्जिद, मदरसा काशिफ-उलअलूम और बस्ती हजरत निजामुद्दीन में स्थित हॉस्टल्स को मार्च, 2020 से बंद कर दिया गया था। दिल्ली वक्फ बोर्ड की दलील है कि आम जनता को प्रवेश करने और नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं है, छात्रों को मदरसे में अपनी शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं है; मौलवियों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए होस्टल में रहने की अनुमति नहीं है।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि पुलिस ने पिछले वर्ष 31 मार्च को इस आधार पर पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी के आधार पर पूरे परिसर पर ताले लगा दिए कि मौलाना मोहम्मद साद और मरकज प्रबंधन ने जानबूझकर और लापरवाही से सरकारी निर्देशों का उल्लंघन किया।