3 काले कानून+19 तारीख+11वाँ महीना+2+0+21=56.. आज ये फैसला लिया ही जाना था। आज मुहूर्त ही मास्टरस्ट्रोक का था। काल के कपाल पर लिखता हूँ मिटाता हूँ, सुबह से शाम तक मास्टरस्ट्रोक बनाता हूँ, गीत नया गाता हूँ।
हाँ भई… उम्मीद है स्वाद तो आ ही गया होगा। क्या सोचा था.. खालिस्तानी पेले जाएँगे? टिकैत के बक्कल तारे जाएँगे? अब देख लो शेर ने दो कदम पीछे खींच लिए हैं। ये मैं नहीं कह रहा, वो सब लोग कह रहे हैं जो सालभर से अन्नदाताओं के काण्ड सिर्फ ये सोच कर सहन करते रहे कि एक दिन हमारे मोदी जी बिजली के साथ आसमान से चमककर हरक्यूलिस की तरह उतर आएँगे और कोई मास्टरस्ट्रोक खेलेंगे, लेकिन ये तो हो गया खेला।
आप यह व्यंग्य हमारे यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं –
शेर ने पैर पीछे खींचे हैं तो कुछ सोच समझ के ही खींचे होंगे। मैं भी ये यकीन दिल से करता हूँ। आज से नहीं बचपन से ये यकीन करता हूँ और मेरी आत्मा चीख-चीख कर कह रही है कि आगे भी करता ही रहूँगा लेकिन आज थोड़ा उदास हूँ।
सालभर से मोदी जी के चक्कर में जो मार यहाँ वहाँ गद्दार, देशद्रोही एंटी नेशनल्स पे मचा रहे थे आज उस पे पूर्ण विराम लग गया है। जब सोनू सूद सबको उठा-उठा कर घर भेज रहा था तब हम इन गद्दारों-खालिस्तानियों को पाकिस्तान और चीन भेजने का ख्वाब देख रहे थे। न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए।
सब्जेक्ट आज कुछ भी महसूस कर पाने में असमर्थ है। आज इतना दुखी हूँ कि मैंने सुबह ही ट्विटर से लॉग आउट कर दिया और पिछले एक साल में अन्नदाताओं के ख़िलाफ़ उगली हुई सारी आग ‘हाइड’ करने बुद्ध की भाँति चल पड़ा। बार बार मन में काशी के बाउ जी की पंक्तियाँ दोहरा रहा हूँ कि काशी अपने क्रोध को पालना सीख। लेकिन हो नहीं रहा।
शेर की सवारी और कमलची की यारी आपको कहाँ उठा के पटक दे आप खुद नहीं जाते। जो क़ानून आज तक लागू ही नहीं हुए उनके ख़िलाफ़ विरोध भी हुआ और सरकार ने वो वापस भी ले लिए। फिर भी इस देश में असहिष्णुता रहेगी ही, मोदी फ़ासिस्ट ही कहे जाएँगे और दो तरह के भारत वाली कविताएँ बनती रहेंगी। अम्बानी और अण्डाणी तो वैसे भी आज से बेरोजगार हुए समझो।
लेकिन नहीं, मोदी जी ने तो अपने मन की बात करनी ही है। मैंने भी इसी का बेनिफिट ले कर मोदी जी पर वीडियो बनाने का फैसला कर लिया। जहाँ सब लोग बोल रहे हैं, मैं भी चुपके से दो बातें बोल दूंगा तो किसी को क्या ही पता चलना है।
लेकिन मेरी विडंबना समझिए। प्रचंड मोदी भक्त होने के बावजूद मुझे मोदी जी पर ये सब लिखना और बोलना पड़ रहा है। अभी तो दो दिन भी नहीं हुए थे मुझे नेहरू जी का रोस्ट किए हुए और मोदी जी के खिलाफ कुछ बोलने में पहले ही दिल से आवाज नहीं आती।
उधर कुछ लोग आज भी मोदी जी के सपोर्ट में उतरे हुए हैं। “एक कदम पीछे, दो कदम आगे।” “टिकैत बेरोजगार हो गया” “शेर पीछे हटा है” ” क्या आप मोदीजी से ज्यादा जानते हैं?” मतलब सात साल तो शेर की पदचाप गिनने में बीत गए और अभी आगे शेर और कितने डग भरेगा ये किसी को नहीं मालूम।
कृषि कानून लाए थे तो वो मास्टरस्ट्रोक हो गया था, हटा दिया तो अब यही मास्टरस्ट्रोक हो गया है, सो रहा हूँ तो मास्टरस्ट्रोक है, जाग रहा हूँ तो मास्टरस्ट्रोक है। मने क्या करें इन मास्टरस्ट्रोक्स का ओढ़ें कि बिछाएँ?
इस से ज्यादा विडंबना हमारे लिए क्या होगी कि जिस इंदिरा गाँधी पर हम ‘मेमे’ बनाते थे आज वही सच्ची हिन्दू शेरनी नजर आने लगी है। खालिस्तान भी एक्सपोज हो गया, पाकिस्तान भी एक्सपोज हो गया, पन्नू की साजिश नाकामयाब हो गई। देशद्रोही, गद्दार भी एक्सपोज हो गए। आज खोपड़ी इतनी खराब हो रखी है जिसकी कोई सीमा नहीं। दर्द होता है बैठ जाता हूँ, बैठता हूँ तो दर्द होता है। कविता फूट रही है मन में।
जितने लोग भाजपा के कार्यकाल में एक्सपोज हो गए हैं इन्हें अगर हाथों में गिनने बैठो तो शेर जितने कदम आज तक चला है वो सब कम पड़ जाएँगे। और फिर जब 2024 आएगा तो हमारे पास बताने के लिए शेर के क़दमों की दूरी बटा विस्थापन की प्रमेय के अलावा कुछ और रहेगा ही नहीं। मने राजनीति कर रहे हैं या फिजिक्स पढ़ रहे हैं, ये तो क्लियर कर दो।
अभी तक हम लोगों ने मुगलों से मूव ऑन नहीं किया था और अब हम जनसंघ के दौर पर लटक गए हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि यही तब हुआ था यही तुम अब कर रहे हो। मने गिल्ट ट्रिप में हर टाइम गर्लफ्रेंड ही बॉयफ्रेंड को डाल रही है।
कभी कह देती है कि यू डिजर्व बेटर, कभी कह देती है कि घरवाले नहीं मान रहे। कभी बॉयफ्रेंड को भी तो मौका दो भाई नाराज होने का। बहुत मेहनत की थी हमने आई लव यू बोल कर अपनी सरकार बनाने में।
दुनिया ने कहा तुम संघी हो, जात वाले रवीश ने कहा तुम अनपेड ट्रोल हो, वोक गर्लफ्रेंड ने कहा तुम रिग्रेसिव हो… ये सब जख्म हम अपने सीने पर चलते रहे हर हर मोदी, घर घर मोदी कहते रहे। और मोदी जी हैं कि अन्नदाताओं तक को ठीक नहीं कर पा रहे?
कहाँ है वो फासिस्ट मोदी जिसके सपने देखकर एक-एक सच्चा हिन्दू हर सुबह जागता है और बिना मंजन किये ट्विटर पर सबको एक्सपोज करता है। कहाँ है वो असहिष्णुता जिसकी आड़ में गद्दार, देशद्रोहियों ने शाहीनबाग़ में फ्री की बिरियानी हजम कर डाली और डकार भी नहीं लिए। कहाँ है वो मनुवादी समाज जिसकी स्थापना के ख्वाब हमने चुनाव चिन्ह कमल दबाते देखे थे।
मतलब जब पिछले एक-डेढ़ सालों से सारे लोग अराजक हैं, तब सरकार को लोकतान्त्रिक होने की चुल मची है। अरे मैं तो कह रहा हूँ यही सही टाइम था भोकाल टाइट करने का। लेकिन नहीं। बड़ी मुश्किल से देश में हिन्दू-मुस्लिम से हटकर कुछ हो रहा था आज वो भी चौपट हो गया। इस से ज्यादा सेक्युलर कोई कंट्री क्या होगी कि इस बार हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब चल रहा था। टीवी डिबेट में भी सब टिकट हॉउसफुल। वो कहाँ जाएँगे?
पिछले एक साल से भारत में जितनी बेरोजगारी कम हुई थी मोदी जी के इस फैसले ने वो सब चौपट कर दी। यहाँ तक कि अभिसार, सायमा, आरफा तक ‘जोर्नो’ बन गए किसान आंदोलन की आड़ में। वैसे भी, मोदी जी के सामने आ के अगर कोई कुत्ता भी भौंक जाए तो वामपंथी उसे भी अपना बाप बनाने को तैयार रहते हैं।
पिछले एक साल में शायद ही कोई ऐसा आदमी रहा होगा जिसने खुद को किसान और अन्नदाता नहीं कहा होगा। यहाँ तक कि एक दिन जब वन ऑफ़ माय एक्स से चेटिंग हुई तो उसने मुझसे पूछा कि’ क्या तुम नाराज हो?’ तो मैंने उसे जवाब दिया कि ‘नहीं मैं अन्नदाता हूँ’। तबसे वो नाराज चल रही है। लेकिन हमने ये सोच के कभी हार नहीं मानी और रार नई ठानी कि सामने मोदी जी का कुशल नेतृत्व है।
वैसे आखिर में एक सीरियस बात जो कहनी थी वो ये है कि दुःख फार्म लॉ वापस लेने का भी नहीं है। दुःख इस बात का है कि जिस तरह से एलके आडवाणी जी जिन्ना की मजार पर जाने के बाद मार्गदर्शक आडवाणी जी बनकर रह गए कहीं मोदी जी के राजनीतिक जीवन में ये वैसा ही कोई प्रकरण न बन जाए।
बाकी ये हम सब जानते हैं कि अराजकों के आगे सबसे सटीक फैसला आज जो लिया गया है वही हो सकता था। बस जो इस बहाने एंटी नेशनल्स में पीछे हटने वाला मैसेज गया है न….. उस से दुःख हुआ है ब्रो।