हरिद्वार: मनसा-चंडी देवी मंदिरों, आश्रमों पर राजाजी टाइगर रिजर्व ने लगाया अतिक्रमण का आरोप, खाली करने का नोटिस जारी

06 नवम्बर, 2021
हरिद्वार स्थित मनसा देवी और चंडी देवी मंदिर समेत कई मंदिरों को नोटिस जारी

उत्तराखंड के हरिद्वार जिला स्थित मनसा देवी और चंडी देवी मंदिर समेत क्षेत्र के कई मंदिरों को नोटिस जारी किया गया है। यह नोटिस राजा जी टाइगर रिजर्व प्रशासन की ओर से दिया गया है।

रिजर्व प्रशासन का कहना है कि जंगल क्षेत्र में जो भी ‘अतिक्रमण किए गए’ हैं, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर खाली करना होगा। वहीं मंदिर प्रबंधन और स्थानीय हिन्दू संगठनों का इस मामले में कहना है कि मंदिर यहाँ टाइगर रिजर्व बनने से पहले से बने हुए हैं। 

रिपोर्ट्स के अनुसार, हरिद्वार की मनसा देवी मंदिर को वन विभाग ने 1,600 वर्ग मीटर जमीन लीज पर दी हुई है, इसी पर मंदिर भवन बसा है। हाल ही में मंदिर कमेटी द्वारा 13 नए कमरे बनाए गए हैं, जिन्हें राजा जी टाइगर रिजर्व प्रशासन द्वारा अपने कब्जे में ले लिए गया और मंदिर प्रबंधन को नोटिस जारी कर दिया गया है। मंदिर प्रशासन इसे अपनी जमीन बताता है, और राजा जी टाइगर रिजर्व वाले इसे टाइगर रिजर्व की वन भूमि बता रहे हैं।

बता दें कि राजाजी नेशनल  पार्क वर्ष 1983 में बनाया गया था। उससे पहले यहाँ हरिद्वार फॉरेस्ट डिवीजन था। वर्ष 2015 में यह बाघों की मौजूदगी की वजह से देश का 48वाँ टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था।

टाइगर रिजर्व बनने से पहले 2004 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में यहाँ चिन्हित 44 ‘अतिक्रमणों’ को खाली करने के आदेश हुए थे, इनमें मनसा देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर, दूधिया आश्रम, पंचमुखी हनुमान मंदिर, भीमगोडा बस्ती, वाल्मीकि बस्ती भी शामिल थी। 

इन्हें उस समय वन विभाग ने सांकेतिक रूप से खाली करवाया था, परन्तु बाद में ये धार्मिक संस्थाएँ पुरानी लीज नवीनीकरण के आधार कर काबिज़ हो गईं हैं। टाइगर रिजर्व बनने के बाद यहाँ वन विभाग की जगह राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के दिशा निर्देश ज्यादा प्रभावी माने जाने लगे थे।

लीज़ आगे बढ़ने पर संदेह 

हरिद्वार बाज़ार द्वारा मनसा देवी को जाने वाली लीज़ 13 मार्च, 2008 को खत्म हो गई थी, इसे अब 15 वर्षों के लिए बढ़ाया गया है, लेकिन अगली बार ये लीज़ बढ़ेगी या नहीं बढ़ेगी, इस बात को लेकर संदेह अब भी बना हुआ है। अगर ये लीज़ आगे नहीं बढ़ी तो कहा जा रहा है कि तीर्थाटन को एक बड़ा झटका लग सकता है। 

बता दें कि पार्क प्रशासन पहले भी साल में दो-तीन बार यहाँ अवैध रूप से बन रहे अतिक्रमणों को ढहाता रहा है और कथित कब्जेदार फिर से कब्ज़ा कर लेते हैं। मंदिर प्रबंधन का कहना है कि टाइगर रिजर्व या नेशनल पार्क बनने से पहले यहाँ मंदिर आश्रम स्थापित हैं।

उन्होंने कहा कि उन्होंने जंगल का संरक्षण भी किया है। उत्तराखंड वन के पीसीसीएफ राजीव भरतरी कहते हैं कि कुछ मुद्दे विवादों में हैं, जिन पर कोर्ट में मामला चल रहा है, परन्तु वे ये अनुमति नहीं दे सकते हैं कि कोई भी संस्था अपनी निर्धारित भूमि से ज्यादा पर कब्ज़ा करके अवैध निर्माण करने लग जाए।



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