टीका अभियान: आखिर निर्लज्ज रवीश अपना पोस्ट बार-बार एडिट क्यों कर रहा है?

22 जून, 2021 By: संजय राजपूत
रवीश कुमार अपने 'मोदी प्रेम' को छुपाने में दिन प्रति दिन नाकाम नजर आ रहे हैं

रवीश कुमार अक्सर सत्ता से (2014 के बाद) सवाल पूछते रहते हैं। देश में हो रही हर छोटी बड़ी घटना पर वह सवाल उठाते हैं, बशर्ते घटना केंद्र की मोदी सरकार या राज्य की भाजपा सरकार से जुड़ी हो।

प्रधानमंत्री मोदी तो खासकर रवीश के निशाने पर रहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी से जुड़े हर समाधान की समस्या रवीश जी के पास है। प्रधानमंत्री के प्रति रवीश बाबू की कुंठा इतनी ज्यादा है कि वो राष्ट्र और राष्ट्र के प्रधानमंत्री के बीच का फर्क ही भूल चुके हैं।

अब इसमें गलती रवीश जी की भी नहीं है, दरअसल वो ‘इंदिरा इज़ इंडिया और इंडिया इज़ इंदिरा’ वाली पीढ़ी से आते हैं तो उन्हें ‘देश’ और ‘मोदी’ का फर्क कैसे समझ आएगा। इसलिए इन्हें राष्ट्र की हर उपलब्धि प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत उपलब्धि लगती है।

पिछले दिनों एक चिट्ठी में रवीश जी ने कहा था कि टीका बनाने और लगाने वाले लोगों का श्रेय गोदी मीडिया मोदी को देता है, लेकिन अब एक दिन में सर्वाधिक टीके लगाए जाने की देश की उपलब्धि रवीश को मोदी की ‘व्यक्तिगत उपलब्धि’ लग रही है।

इसके बाद, अक्सर ही प्रधानमंत्री मोदी को ‘झूठा’ कहने वाले रवीश बाबू खुद ही नया झूठ लेकर अपनी जमात के लोगों के बीच हाज़िर हो गए। रवीश जी ने राष्ट्र की इस उपलब्धि को प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत उपलब्धि मानते हुए गर्वित होने के बजाय फ्लॉप करार दे दिया।

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फ्लॉप करार देने के लिए उन्होंने पल्स पोलियो अभियान के आँकड़ों का सहारा लिया। उन्होंने कोविड वैक्सीन और पोलियो ड्रॉप की तुलना करते हुए कहा, “पल्स पोलियो अभियान के सामने पिट गया कोरोना टीका अभियान, लगे सिर्फ 80 लाख टीके।”

ये और बात है कि रवीश बाबू कोविड वैक्सीन के आँकड़ों को लेकर ही निश्चित नहीं थे, इसलिए 4 बार पोस्ट एडिट करते हुए वैक्सीन डोज़ की संख्या 80 लाख से 85 लाख और फिर अंतिम जानकारी मिलने तक 86 लाख लिखी। हो सकता है शाम तक दस जनपथ से और आँकड़े आने के बाद पोस्ट एडिट कर के ये संख्या बढ़ा दी जाए।

याद दिला दूँ कि ‘आज तक’ के पत्रकार रोहित सरदाना की मृत्यु पर भी इस तथाकथित पत्रकार ने 11 बार पोस्ट एडिट किया था, लेकिन बावज़ूद इसके राष्ट्र और राष्ट्रवादी पत्रकारों के लिए अपनी उस नफरत और कुंठा को छुपा नहीं पाया था, जो इसकी नसों और धमनियों में रक्त के साथ मिल कर बहती है।

कोविड टीकाकरण उपलब्धि पर रवीश बाबू बताते हैं कि फरवरी, 2012 में पल्स पोलियो के एक दिन में 17 करोड़ से अधिक टीके लगे थे और 10 साल बाद गोदी मीडिया 1 दिन में सिर्फ 86 लाख कोविड टीके ही लगा पाया।

उन्होंने बताया कि ‘एक दिन में 17 करोड़ पोलियो टीका लगाने का रिकॉर्ड इस देश के नाम है और आज की मामूली कामयाबी और कोविड टीकारण के फ्लॉप अभियान को ढिंढोरा पीट कर गोदी मीडिया द्वारा विश्व रिकॉर्ड बताया जा रहा है’।

रवीश की जय-जयकार करने वाले रवीश के कई समर्थक भी इस तुलना पर हैरान हो गए और पोलियो वैक्सीन और कोविड वैक्सीन की तुलना को ही बचकाना करार दे दिया। उन्हें बताया गया कि पोलियो ड्रॉप पिलाई जाती है और इसे कोई भी पिला सकता है, जबकि कोविड वैक्सीन इंजेक्ट करनी पढ़ती है जो सिर्फ प्रोफेशनल लोग ही कर सकते हैं।


एक यूज़र ने लिखा, “तथ्य आधारित आलोचना करें, अनर्गल प्रलाप नहीं। पल्स पोलियो अभियान 1985 में शुरू हुआ और 2014 मार्च को WHO ने भारत में इसे पूर्ण घोषित किया। 29 साल लगे जनाब ! 1985 से 1999 तक कुल 60% भारतीय बच्चों को ही पोलियो की दवा नसीब हो पाई थी। वह भी तब जब इतनी भीषण मृत्यु दर नहीं थी, पूरा विश्व नहीं कराह रहा था। आपकी कुछ न कर पाने की छटपटाहट समझ सकता हूँ पर पत्रकारिता ने जो कुछ दिया है, नेता बनने के चक्कर में आप कहीं वह भी गवाँ न दें, माँ गंगा से प्रार्थना करता हूँ।”


एक फेसबुक यूज़र ने लिखा, “अरे महापुरुष पल्स पोलियो के टीके फरवरी, 2012 में ही नहीं जनवरी, 2021 में भी एक दिन में 17 करोड़ से अधिक लगाए गए थे, लेकिन तुझे तो कॉन्ग्रेस की ही चा*नी है, इसलिए तुलना ही गलत कर रहा है ताकि मोदी सरकार को बदनाम कर सके.. खैर तुझे रेमन मैग्सेसे अवार्ड भी इसी कारण मिला था।”

वास्तव में, रवीश का ‘फैक्ट चेक’ करते हुए उनके कई समर्थक भावनाओं में बह गए और उन्हें अपने ‘मन की बात’ बताने में जरा भी नहीं झिझके।


एक यूजर ने रवीश के आँकड़ों पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि साल 2012 में पोलियो ड्रॉप लेने लायक (0-5 साल तक के) बच्चों की कुल संख्या ही 17 करोड़ नहीं थी, फिर एक दिन में 17 करोड़ टीके कैसे लग गए?


कई फेसबुक यूजर्स नें रवीश बाबू को समझाया कि पोलियो की खुराक डिब्बे में लेकर कहीं भी घूम सकते हैं, आराम से और सिर्फ 2 बूँद पिलानी होती हैं, जबकि यहाँ टीके का रख-रखाव बड़ा काम है… फिर इंजेक्शन देना है, वो भी रजिस्ट्रेशन करके सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए। और वैक्सीन लगाते वक्त आधा घंटा व्यक्ति को ऑब्जरवेशन में भी रखते हैं।

एक अन्य यूज़र ने कहा, “श्रीमान वो निष्छल बच्चे थे! जिन्होंने पोलियो का टीका लिया था। 5 साल से कम के बच्चों को कैसे भी पकड़ कर जबरन टीका लगाया जा सकता है, लेकिन ये 18+ वाले हैं और आप जैसे खबीस को NDTV पर देख कर टीका केंद्र नही जा रहे हैं तो क्या इन्हें जबरन पकड़ कर टीका लगवाओगे, इसलिए तो अंतर तो होना ही है।”

रवीश के इस फेसबुक पोस्ट पर कई प्रकार के क्रिएटिव कॉमेंट देखने को मिले

एक अन्य यूज़र ने लिखा, “पोलियो अभियान से तुलना कर रहे हो। कोविड वैक्सीन लगाने मे बहुत सारी कंडिशन हैं। मुझे वैक्सीन लगाना है, मेरे सोसायटी मे फ्री वैक्सीन लग रही थी, बिल्कुल कोई भीड़-भाड़ नहीं। फिर भी मैं वैक्सीन नहीं लगवा पाया। पता है चफड़गंजू क्यों? क्योंकि पिछले महीने मुझे कोरोना हो गया था और मुझे वैक्सीन के लिए अभी इन्तजार करना होगा। सब को दाल-भात तरकारी ही समझते हो। मतलब 2014 से जो रोना शुरू हुआ है, चुप ही नहीं हो रहा है।”

रवीश का यह फेसबुक पोस्ट खूब वायरल हुआ और लोगों की इस पर ढेरों मजेदार प्रतिक्रियाएँ भी आईं। कुछ प्रतिक्रियाएँ तो ऐसी थीं, जिन्हें हम लिख भी नहीं सकते। तमाम यूजर्स ने रवीश कुमार के आँकड़ों और पोलियो ड्रॉप से वैक्सीन की तुलना को गलत बताया मगर वो रवीश की क्या जो सफेद झूठ बोलने के बाद गलती मान ले।


अब ध्यान रहे, ये वही सत्यवादी और निष्पक्ष पत्रकार रवीश कुमार हैं, जिन्होंने पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों में खुलेआम कट्टरपंथी समुदाय का बचाव करते हुए पुलिस पर हमला करने वाले मोहम्मद शाहरुख का नाम जानबूझकर ‘अनुराग मिश्रा’ बताया था।

ये वही रवीश कुमार है, जो खुद तो छत पर बैठे कबूतरों की संख्या और उनके द्वारा लाई गई गैर भाजपा-शासित राज्यों की चिट्ठियाँ गिन कर बताते हैं और मोदी को मोर को दाना चुगाते हुए देख इनको खूनी उल्टियाँ होने लगती हैं।

ये सत्यवादी हरिश्चंद्र के वही अंतिम वंशज हैं, जिन्होंने रेल एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल 10 जनवरी तक किसानों से धान की खरीद के लिए एमएसपी से जुड़े आँकड़ों वाले ट्वीट को क्रॉप कर के गलत आँकड़े पेश करने के लिए ’10 जनवरी’ की तारीख को साजिशन छुपा दिया था। ये वही गंगा-जमुनी तहजीब के ध्वजवाहक हैं, जिन्होंने एक हिन्दू का दाह संस्कार जबरन मुस्लिम समुदाय के लोगों से करवा दिया था।

फिलहाल पोलियो टीकाकरण की तुलना में मोदी का कोविड टीकाकरण अभियान भले ही ‘फ्लॉप’ हो गया हो, मगर प्रति सेकंड एवं किलोमीटर के हिसाब से जो गालियाँ रवीश की इस पोस्ट पर आ रही हैं, उनकी रफ्तार मोदी सरकार के टीकाकरण अभियान से भी चार गुना अधिक हैं।





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