तैमूर की मम्मी ने स्विमिंग करते समय ये क्या पहन लिया? राम मंदिर के नीचे दफनाया जाएगा टाइम कैप्सूल। गाजियाबाद में जय श्रीराम न बोलने पर हिंदू युवकों ने की ताबीज़ बनाने वाले बूढ़े मुस्लिम की पिटाई। क्या अंडरटेकर और केन हैं भाई-भाई?
नहीं-नहीं यह आखिरी वाला थोड़ा ज्यादा हो गया, लेकिन इससे पहले की सारी हेडलाइन या तो बन चुकी हैं। या हमारे देश की क्रांतिकारी मीडिया को थोड़ा समय दिया जाए तो बना भी डालेंगे। पिछले कुछ दिनों में अपने भी ऐसे ही कुछ कथित ‘रोंगटे खड़े कर देने वाली’ हेडलाइन सुनी होंगी।
“क्या बिक गया है एनडीटीवी?” मेरा सवाल है – “इस बार किसके हाथों?”
“क्या अडानी ने एनडीटीवी खरीद लिया है?” अडानी को क्या पागल कामरा ने काटा है?
“रवीश कुमार ने दे दिया इस्तीफा?” लेकिन ले कौन रहा है इनसे? क्योंकि ये सालों से जो दे रहे हैं उसे लेने में तो किसी को दिलचस्पी है नहीं, मतलब ज्ञान।
क्या एनडीटीवी छोड़ देंगे रवीश? एनडीटीवी में रह के कौन से उत्तीके बजा रहे हैं। गत 7 वर्षों से एक जंग लगे ग्रामोफोन की तरह निरंतर रटी-रटाई स्क्रिप्ट गाने की तरह गाए जा रहे हैं। अगर रवीश की प्राइम टाइम की स्क्रिप्ट में से गोदी मीडिया, आईटी सेल, डर का माहौल जैसे कुछ शब्द हटा दिए जाएँ तो 40 मिनट का एपिसोड केवल उतने ही समय का रह जाएगा जितना बहुचर्चित गीत ‘हेलो कौन’ से ‘हेलो कौन’ और ‘हम बोल रहे हैं’ जैसे बोल हटा देने के बाद वह गीत।
तो खबर यह थी कि सोमवार को एनडीटीवी के शेयर 10% तक अपर सर्किट छू गए, जिसके बाहर मीडिया जगत में हवा उड़ने लगी कि अडानी समूह एनडीटीवी को खरीदने वाला है। यह समाचार सुनते ही मैंने अडानी समूह पर एक रोस्ट लिखने का विचार बनाया और स्क्रिप्ट लिखने शुरू ही की थी कि तभी ख्याल आया की यह असल जिंदगी है न कि कोई अब्बास मस्तान की फिल्म जिसमें अडानी एक लँगड़े घोड़े पर पैसा लगाएँगे जिसके बाद इस लाल घोड़े में अचानक जिन्नाती ताकते आ जाएँगी और यह गोल मार्केट स्थित सीपीआई हेड क्वार्टर पर चाय की चुस्की लेता हुआ सीधा बिग डैडी के पास बीजिंग दौड़ जाएगा।
इस कुत्सित तुलना के लिए मैं समस्त घोड़ा समुदाय से क्षमा माँगना चाहूँगा। कृपया घोड़ा समुदाय मुझ पर मानहानि का मुकदमा न करे।
पिछले 1 वर्ष से अडानी-अंबानी को पानी पी-पीकर गरियाने वाले वामपंथी यह खबर सुनकर अपने सारे पुराने ट्वीट और पोस्ट हटाने सोशल मीडिया पर आए ही थे कि यह खबर फेक न्यूज़ साबित हो गई।
ऐसा होते ही जहाँ एक ओर दक्षिणपंथियों ने सोशल मीडिया पर ज्वलनशील ट्वीट्स के साथ 2 महीना पहले ही दिवाली मना डाली तो वहीं वामपंथी लाल आँसुओं के साथ ब्लैक विडो विलाप पर उतर आए और ऐसे में पूर्णतः असंबंधित समाचार ने इनके अंग विशेष में लगी आग पर बरनॉल का काम किया।
दरअसल गुजरात के कच्छ क्षेत्र में मुंद्रा पोर्ट पर भारी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी गई और क्योंकि यह पोर्ट अडानी समूह द्वारा मैनेज किया जाता है तो अपने शेरलॉक समान तेज का उपयोग करते हुए वामपंथियों ने अफगानिस्तान से आई हेरोइन की खेप को अडानी से जोड़ दिया और हर बार की तरह ट्विटर ट्रेंड चला दिया। क्यों चुप है मोदी सरकार? क्या अदानी पर कार्रवाई होगी?
जैसे कि अडानी समूह पोर्ट मैनेज नहीं करता बल्कि स्वयं गौतम अडानी दिन के उजाले में वॉल्टर वाइट बन कर अपने घर के बैकयार्ड में ड्रग्स तैयार करते हैं और रात के अंधेरे में पाब्लो एस्कोबार बनकर देश के युवा को एक-एक पुड़िया बाँटकर उसकी जवानी बर्बाद कर रहे हैं।
कोई बड़ी बात नहीं है कि आने वाले एक-दो दिनों में रवीश इस बात पर प्राइम टाइम कर दें और अंत में यह भी कह जाएँ कि क्या इस बात की जॉंच नहीं होनी चाहिए? आजकल लोग दो-दो नाम रखते हैं.. देख लीजिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के भी दो नाम है तो क्या अडानी आधी रात को पाब्लो एस्कोबार नहीं बन सकते? जॉंच तो होनी ही चाहिए, जॉंच कराने में क्या है?
रवीश जी पहली चीज यह कि योगी के दो-दो नाम नहीं बल्कि एक नाम और एक उपाधि है। भारतीय राजनीति में दो-दो नाम रखने वाले कौन है यह मैं, आप और हर कोई जानता है। जी नहीं, मैं नाम लूँगा नहीं क्योंकि एक पत्रकार ने जब प्राइम टाइम पर मात्र यह नाम लिया था तो उसके साथ क्या किया गया यह देश भर ने देखा है और मैं तो अभी अर्नब जितना बड़ा पत्रकार बना भी नहीं हूँ।
देखते ही देखते सोशल मीडिया का माहौल ऐसा हो गया मानो मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई हेरोइन सारे वामपंथी एक साथ नाक से सुड़क गए हों और बदहवासी में कीबोर्ड पर सर मारते हुए ट्वीट कर रहे हों।
विजयवाड़ा पुलिस ने आधिकारिक तौर पर केवल इतनी जानकारी दी कि भारी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी गई है, जिसकी कीमत हज़ारों करोड़ में है। मीडिया हाउस एक कदम आगे जाकर इसकी मात्रा लगभग 3000 किलो तक निकाल लाए, परंतु ट्विटर क्रांतिकारी इतने से कहाँ रुकने वाले थे।
इन्होंने तो इस नशीले पदार्थ का मूल्यांकन तक करना प्रारंभ कर दिया। वो क्या है न कि वामपंथी नशे और नशीले पदार्थों के मामलों में थोड़ा भावुक हो जाते हैं। अपनापन सा लगता है ना।
इतना होने की देर थी कि इस तीन हजार किलो हेरोइन की ट्विटर पर उसी प्रकार बोली लगने लगी जिस प्रकार तालिबानी राज्य में अफगानी महिलाओं की लगती है। कोई महारथी इसकी कीमत 9000 करोड़ बता रहा था तो कोई 19 हजार करोड़, कई सूरमा तो इस मूल्यांकन को 21 हज़ार करोड़ तक खींच कर ले गए।
शोध का विषय यह भी होना चाहिए कि जिस ड्रग्स का मूल्यांकन पुलिस और विशेषज्ञ भी अब तक नहीं कर पाए हैं उसकी बोली इन वामपंथी चिरकुटों ने अपने अपनी औकात अनुसार लगा डाली। मानना पड़ेगा, आखिर अनुभव का भी अपना अलग ही महत्व होता है ।
कुछ क्रान्तिवीर्य कह रहे थे कि 3000 किलो हेरोइन पकड़ा गया है। मीडिया कहाँ है? ‘मीडिया’ और ‘3000’ का अंक एक वाक्य में सुनकर मुझे कुछ याद आ गया और इन सल्फेटों के लिए मेरे पास बस इतना ही जवाब है कि मीडिया वहीं है जहाँ रवीश अपने मालिक का 3000 करोड़ का घोटाला सामने आने के समय थे।
आसान भाषा में अडानी द्वारा मैनेज किए जा रहे पोर्ट पर हेरोइन का पकड़ा जाना और इस पर अडानी समूह पर निशाना साधना वैसा ही है जैसे केवल अपने बच्चे के फेल हो जाने पर टीचर, प्रश्न पत्र और पूरे स्कूल को दोष देना।
भारत और इंग्लैंड के मैच में भारत के हार जाने पर हॉटस्टार या सोनी लिव को गरियाना और फ्रूट निंजा में हार जाने पर यह कहना कि इस बार बारिश सही समय पर नहीं हुई इसलिए केले कच्चे रह गए और कट नहीं रहे।
परंतु वामपंथी एक ऐसी नस्ल है जो लॉजिक, सेंस, तथ्य, सबूतों जैसे फालतू चीजों के कारण अपनी क्रांति में खलल नहीं आने देते। अडानी के खिलाफ ट्विटर पर मोर्चा खोलकर और 1 दिन का हैशटैग चला कर इनकी रूह का फड़फड़ाता परिंदा दो-चार दिन के लिए शांत हो जाएगा और जब सारी जाँच के बाद अंत में कुछ साबित नहीं होगा तो हर बार की तरह मीडिया बिक चुकी है, सरकार बिक चुकी है, न्यायालय बिक चुका है जैसा ब्लैक विडो विलाप पुनः करते नजर आएँगे।
इन सब दिलचस्प खबरों के बीच सबसे मजेदार फेक न्यूज़ रवीश के एनडीटीवी छोड़ने वाली लगी। हालाँकि, रवीश एनडीटीवी छोड़ेंगे या एनडीटीवी रवीश को यह तो वही जानें, पर अगर रवीश चाहे तो उन्हें डू-पॉलिटिक्स की ओर से खुला निमंत्रण है।
हमारी सब-एडिटर की पोस्ट खाली है और डू-पॉलिटिक्स टीम में उनका सदैव स्वागत है। मोदी ने अभी बेरोजगारी इतनी भी नहीं बढ़ाई है कि हमारे रवीश जी को नौकरी न मिल सके।
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