मद्रास उच्च न्यायालय ने दलित से ईसाई बने एक ऐसे व्यक्ति को अंतरजातीय प्रमाण पत्र देने से इन्कार कर दिया है, जिसने इसाई धर्म अपनाने के बाद एक दलित युवती से विवाह किया। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि मजहब या धर्म बदलने से किसी व्यक्ति की जाति नहीं बदल सकती।
तमिलनाडु में दलित (अनुसूचित जाति) व्यक्ति ने ईसाई धर्म अपनाने के बाद सरकारी नौकरी में आरक्षण हासिल करने के लिए अंतरजातीय प्रमाण पत्र की माँग की थी। अंतरजातीय विवाह की सूरत में सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जाति के मुकाबले आरक्षण का अधिक लाभ मिलता है। इसी का फायदा उठाने के लिए याचिकाकर्ता पॉल ने अदालत का रुख किया था।
मद्रास उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि धर्मांतरण करने से किसी व्यक्ति की जाति नहीं बदलती, इसलिए अंतरजातीय प्रमाण-पत्र (Inter-Caste Certificate) जारी नहीं किया जा सकता।
दरअसल तमिलनाडु के सलेम जिले के निवासी एस पॉल राज जन्म से आदि द्रविड़ समुदाय (अनुसूचित जाति) से आते हैं। पॉल ने बाद में धर्म परिवर्तन कर लिया और वह ईसाई बन गए।
कानूनन धर्मांतरित ईसाई को पिछड़ा वर्ग श्रेणी में माना जाता है, इसलिए धर्मपरिवर्तन के बाद पॉल ने राज्य समाज कल्याण विभाग से पिछड़ा वर्ग का सर्टिफिकेट हासिल कर लिया।
साल 2009 में पॉल ने अरुन्थातियार समुदाय (अनुसूचित जाति) की एक लड़की से विवाह कर लिया लेकिन उसका धर्म परिवर्तन नहीं कराया। इस विवाह के आधार पर पॉल ने सलेम जिला प्रशासन के पास अंतरजातीय विवाह प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए आवेदन दिया, जिसे विभाग ने खारिज कर दिया।
पॉल ने जिला प्रशासन द्वारा आवेदन खारिज करने के फैसले के खिलाफ ‘इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट’ की माँग को लेकर सलेम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का रुख किया मगर वर्ष 2015 में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से भी उसकी याचिका खारिज हो गई। जिसके बाद उसने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
अपनी याचिका में पॉल ने दावा किया था कि उसकी शादी पिछड़ी जाति और अनूसूचित जाति का मिलन है और चूँकि उसने अंतरजातीय, यानी इंटर-कास्ट मैरिज की है, लिहाजा उसे सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
सुनवाई में हाईकोर्ट ने पाया कि जन्म से पॉल और उनकी पत्नी, दोनों हो जन्म से अनुसूचित जाति के हैं, ऐसे में उन्हें अंतरजातीय विवाह का प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने पॉल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि धर्म परिवर्तन करने से जाति नहीं बदलती।
कोर्ट ने कहा कि एक धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म में जाने पर पॉल को भले ही पिछड़ा वर्ग का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया हो, लेकिन इससे उनकी जाति नहीं बदली है। हाईकोर्ट के जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम ने अपने फैसले में कहा कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और धर्म परिवर्तन से जाति नहीं बदलती।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि चूँकि पति और पत्नी, दोनों जन्म से एससी वर्ग से सम्बंध रखते हैं इसलिए केवल इस आधार पर अंतरजातीय विवाह प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता कि किसी एससी वर्ग के व्यक्ति ने धर्म परिवर्तन करने के बाद एससी वर्ग से आने वाली महिला के साथ शादी की है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर धर्म-परिवर्तन करने वाला शख्स इंटर-कास्ट सर्टिफिकेट पर दावा करने लगा तो यह आरक्षण के दुरुपयोग का रास्ता साफ करेगा। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि धर्म बदलने से किसी दलित को पिछड़ी जाति का सदस्य मान लिया जाता है और किसी अन्य दलित से शादी करने पर वह ‘इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट’ का हकदार नहीं हो सकता।
बता दें कि अंतरजातीय विवाह प्रमाण-पत्र होने पर व्यक्ति को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता मिलती है तथा सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का भी लाभ मिलता है।