... समाजवादी जपेगा कृष्ण-कृष्ण आपिया राम-राम चिल्लाएगा: UP में 'सच्चा हिन्दू शेर' बनने की होड़

13 जनवरी, 2022 By: पुलकित त्यागी
उत्तर प्रदेश में बहुमत से ज्यादा कठिन सवाल 'सबसे बड़ा हिन्दू' का हो गया है

‘रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा चुनाव भी आएगा, समाजवादी कहेगा कृष्ण-कृष्ण आपिया राम-राम चिल्लाएगा”

पाँच राज्यों में एक बार फिर वही समय आ चुका है जब नेताजी का काफिला क्षेत्र में घुसते ही नेता जी के माथे की शिकन और लोगों के आँखों की चमक समान रूप से बढ़ने लगती है। इन पाँच राज्यों में से एक राष्ट्रीय राजनीति का गढ़ कहा जाने वाला उत्तर प्रदेश भी है।

उत्तर प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य हैं जहाँ और कोई काम समय पर हो न हो पर चुनाव एकदम सही समय पर पूरे गाजे-बाजे के साथ होते हैं। इन राज्यों के लोग अक्सर इस प्रकार के दावे करते भी देखे जाते हैं कि दिल्ली पर उसी का परचम लहराता है, जिसे यूपी-बिहार के नेता समर्थन देते हैं। 

ऐसे लोगों को इस बात पर भी आत्ममंथन करना चाहिए कि जो नेता दिल्ली तक अपनी सुनवाई का दावा पेश करते हैं क्या वे कभी अपनी जनता की सुनते हैं?

खैर, इससे इतर एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प बात यह है कि इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में हर पार्टी भगवाधारी है। नहीं-नहीं योगी आदित्यनाथ ने ज़बरन राज्य का भगवाकरण नहीं कर दिया है, बल्कि विरोधी पार्टियों के नेता स्वयं ही भगवा चोला ओढ़े खुद को महाराज का प्रतिद्वंदी साबित करने में लगे हैं।

समाजवादी से लेकर कॉन्ग्रेसियों, और बसपा से लेकर गुलाटी मार आम आदमी पार्टी तक, हर कोई स्वयं को दूसरे से बड़ा हिंदू हृदय सम्राट दिखाने में लगा हुआ है।

लखनऊ में दादा परशुराम के 68 फुट ऊँचे फरसे का अनावरण करने वाले अखिलेश यादव हों या उत्तर प्रदेश में ‘ब्राह्मणों पर अन्याय’ की बात करते बहुजन समाज पार्टी के सांसद सतीश चंद्र मिश्रा। सब के सब हिंदू वोट बैंक को भुनाने को, अदाकारी का ऐसा छौंका लगा रहे हैं कि महान शेफ संजीव कपूर भी शर्मा जाएँ।

हालाँकि अखिलेश भैया द्वारा लगवाया गया 68 फुट का परशुराम का फरसा 68 दिन भी नहीं टिका और अनावरण के 8 दिनों बाद ही गिर गया। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि उनकी ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की यह तकनीक आने वाले चुनावों में फायदा देती है यह उनकी पार्टी भी 10 मार्च को चुनावों के लिए लगाए गए फरसे के समान ही औंधे मुँह गिर जाती है।

वैसे अगर ये मन जाए कि फरसा गिर जाने के कारण अक्की भैया से भगवान विष्णु के एक अवतार नाराज़ हो भी गए हैं, फिर भी उनके अनुसार उन्हें चुनाव जिताने का ज़िम्मा अब विष्णु के ही दूसरे अवतार ने ले लिया है।

अक्की भैया ने कुछ दिनों पहले एक प्रेस वार्ता में कहा था कि उनके सपनों में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर उनसे कहा है उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने जा रही है।

माना तो जाता है कि अखिलेश भैया पूर्णतः टीटोटलर हैं परंतु कई बार इत्र की सुगंध भी नाक के साथ-साथ मस्तिष्क को ऐसा आनंदित कर देती है कि मनुष्य कुछ भी देखने, सुनने और सोचने लगता है।

खैर सपनों का क्या है, सपनों में तो मोदी जी को भी कई बार नोबेल पीस प्राइज़ और मुझे भी मेरी सारी पूर्व प्रेमिकाओं ने एक साथ आकर ‘बेस्ट बॉयफ्रेंड एवर’ के पुरस्कारों से नवाज़ा है, परंतु दिक्कत ये है कि जब भी ऐसे सपनों से आँख खुलती है तो सामने मेरे 12 बजे नींद से उठने के कारण आँखों में निराशा और हाथ में सौ का नोट लिए मेरी माँ खड़ी होती हैं, इस आदेश के साथ कि ‘जाओ राजा-बाबू दही-धनिया लाना है।’

सपने से याद आया, आंदोलन से उपजी, परिवारवाद का विरोध और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाली एक पार्टी और उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने का स्वप्न देखते हुए इन दिनों राम-राम चिल्ला रही है। नहीं-नहीं यहाँ भाजपा की नहीं बल्कि ‘आम आदमी पार्टी’ की बात हो रही है।  

जी हाँ वही पार्टी जिसके वरिष्ठ नेता कुछ वर्षों पहले तक अयोध्या में राम जन्म स्थान की भूमि पर स्कूल और यूनिवर्सिटी बनाने की वकालत करते थे, आज उसी पार्टी के नेता गले में भगवा गमछे डाले अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर के दर्शन करते दिख रहे हैं।


‘हवा में उड़ गए जय श्री राम’ जैसे बयान देने वाले कुछ सांसद इन दिनों ‘श्री राम-जानकी बैठे हैं मेरे सीने में’ लगातार लूप पर सुन रहे हैं और मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में खोए हैं कि उन्हें भी लखनऊ की गद्दी नसीब होगी। हालाँकि राम के नाम पर वोट माँगने वाले यही लोग कई बार उसी राम मंदिर के निर्माण को लेकर भ्रष्टाचार जैसे आरोप लगा चुके हैं।

ये सभी लोग-पार्टियाँ सरकार बनाने और मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं पर ये भोले-भाले Cute नेता ये नहीं जानते कि विधानसभा चुनाव चाहे भारत के किसी भी राज्य में हों, मुख्यमंत्री केवल एक ही पार्टी का बनता है और वो है शिवसेना। 

हाल ही में शिवसेना सांसद संजय राउत ने उत्तर प्रदेश की राजनीति का हाल देखते हुए सोचा “Why should North Indian Netas have all the fun”.

इसी कारण उन्होंने कहा कि शिवसेना भी प्रदेश में 50 से 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वे तो उत्तर प्रदेश में लंबे समय से चुनाव लड़ना चाहते थे, परंतु वो भाजपा को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे। आह आह…Them feels!

रावत के इस कथन से यह तो साफ होता है कि भाजपा और शिवसेना एक अच्छे राजनीतिक गठबंधन का उदाहरण हों या न हों एक अच्छे #couplegoals या #relationshipgoals का उदाहरण अवश्य हैं। 

वैसे अगर रावत जी प्रचार करने उत्तर प्रदेश आ ही रहे हैं तो यहाँ की जनता को उनकी जवाबदेही तो बनती ही है कि महाराष्ट्र में जिन यूपी-बिहार के लोगों को केवल भैए और बिहारी होने के लिए निशाना बनाया जाता है, उनसे अब शिवसेना किस आधार पर वोट माँग रही है? 

देश के सभी राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी अगर शिवसेना का मुख्यमंत्री बैठता है तो क्या राउत साहब इस बात की गारंटी देंगे कि मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में मजदूरी जैसे काम करने गए प्रदेश के लोग केवल अपनी पहचान को लेकर पिटाई और शोषण का शिकार नहीं होंगे। और अन्य नागरिकों की भाँति ही सुरक्षित महसूस कर सकेंगे?

ये सब तो थी स्वतंत्रता के बाद बने राजनीतिक दलों की बात। अब सवाल उठता है कि देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में किस तैयारी से उतर रहा है और इसका जवाब है कि क्या शेरों के भी किसी ने मुँह धोए हैं?

अरे तैयारी की आवश्यकता कमज़ोर दलों को होती है। जिस कॉन्ग्रेस के पास यशस्वी नेतृत्व और 18 वर्ष की लड़कियों को स्कूटी और स्मार्टफोन मुफ्त में देने जैसी तेजस्वी योजनाएँ हों, उन्हें किसी और तैयारी या राजनीतिक दाँवपेच की क्या आवश्यकता?

अपने राज में जिस पार्टी ने देश की तत्कालीन युवा पीढ़ी को बिना बात के गड्ढे खोदने का पैसा देकर कर्मठ बना दिया हो, वह पार्टी आने वाली युवा पीढ़ी को अब मुफ्त में स्कूटी देकर हैवी ड्राइवर बनाने और स्मार्टफोन देकर इंस्टाग्राम रील्स पर ‘Let me skip to the good part’ बोलते ही एक उज्जवल भविष्य देने की तैयारी में है।

बाकी पार्टी में ‘जनेऊधारी ब्राह्मण’ तो पहले से हैं ही, उत्तर प्रदेश के समस्त ब्राह्मण समुदाय का वोट तो एकमुश्त उधर ही पड़ेगा।

सभी विरोधी दलों के बात करते हुए अंत में आते हैं सत्ताधारी पार्टी पर। जहाँ योगी जी Lone Wolf बने आस पार मची छी-छा-लेदर पर ध्यान न देते हुए फास्ट एंड फ्यूरियस के डोमिनिक टोरेटो की भाँति केवल पूर्ण बहुमत पर फोकस रखकर एक ही दिशा में गाड़ी दौड़ाए पड़े हैं, वहीं पार्टी का बाकी का शीर्ष नेतृत्व अलग-अलग क्षेत्रों में डोलता दिखता है। You see what I did there han..

दूसरा इतनी तीव्र गति से तो मुख्यमंत्री योगी ने कुर्सी पर बैठते ही प्रदेश से गैंगस्टरों का सफाया नहीं कराया था, जितनी तेज़ी से चुनाव आयोग के चुनाव की तिथियाँ घोषित करते ही भाजपा के विधायक विभिन्न पार्टियों में भागते नज़र आ रहे हैं। 


सूत्रों से यह भी खबर आ रही है कि जेल से मुख्तार अंसारी ने महाराज को पत्र लिखा है कि लोग कम पड़ रहे हों तो मैं मुख्तार अंसारी से महिपाल तिवारी बनके कमल छाप की छत्रछाया में चुनाव लड़ने को तैयार हूँ, बस योगी जी, बेल करा दो। 

वैसे राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो है तो भाजपा के लिए ये एक गंभीर समस्या है पर इस पर ज़्यादा इसलिए नहीं बोलूँगा क्योंकि आजकल कोई भी चीज़ मास्टर स्ट्रोक साबित हो जाती है, इसलिए अगर 10 मार्च को भाजपा दुबारा पूर्ण बहुमत से आ गई, तो कार्यकर्ता निब्बाज़ ये क्लिप खोद कर निकालेंगे और टैग कर-कर के मेरे अंग विशेष में चरस बो देंगे कि अब बोल-अब बोल ना…अपशब्द।

उत्तर प्रदेश-बिहार की राजनीति सदा से जटिल रही है पर फिलहाल राज्य में जो चल रहा है वो विडंबना और हास्य दोनों से भरपूर है। 

एथीस्ट राम भक्त बन गए हैं, राम भक्त परशुराम भक्तों को खुश करने में लगे हैं। परशुराम भक्तों को खुश करने के प्रयास में विफल हो चुके, कृष्ण भक्त बने हुए हैं।

कुछ भी कहो लहर तो भगवा है। अच्छा, कृष्ण भक्तों से याद आया राम मंदिर निर्माण हो रहा है, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भी तैयार हो गया ये मथुरा से इस बार कौन खड़ा हो रहा है…



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