तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्ज़ा कर लिया गया है। जहाँ एक ओर समस्त विश्व एवं सभी बड़े देश इस बात की आलोचना कर रहे हैं एवं चिंतित हैं, वहीं विश्व के कई समूहों की भाँति भारत में भी एक बड़ा समूह है, जो इस प्रकार की उग्र विचारधारा एवं बंदूक के शासन का समर्थन करता है।
हाल ही में चर्चा में आई सोशल मीडिया ऐप ‘क्लबहाउस’ पर एक ऐसा ही धड़ा सामने आया, जो खुलेआम तालिबानी यानी कि कट्टर इस्लामी शासन का समर्थन करता दिखा।
अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से निकलते ही एक बार पुनः इस्लामी आतंकी संगठन तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है। अमेरिका द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि तालिबान को राजधानी काबुल कब्ज़ाने में लगभग 3 महीने से अधिक लगेंगे, परन्तु तालिबानी आतंकियों ने 24 घंटों के भीतर ही 15 अगस्त, 2021 को पुनः अफ़ग़ानिस्तान को काबिज़ करते हुए राजधानी काबुल पर अपना शासन जमा लिया है।
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घानी समेत सभी कई बड़े नेता अपने देश को छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। सारा विश्व इस समय इस इस्लामी संगठन और इसकी सोच की आलोचना करता दिख रहा है। वहीं भारत में कई ऐसे वामपंथी और इस्लामी समूह एवं व्यक्ति हैं, जो सोशल मीडिया समेत असल जीवन में भी इस प्रकार की कट्टरपंथी विचारधारा का समर्थन करते हैं।
15 अगस्त को ही कई इस्लामी और वामपंथी पत्रकारों का धड़ा एक ओर जहाँ इस उग्र विचारधारा का समर्थन करता दिखा वहीं ये लोग अपनी और तालिबान की आलोचना करने वाले भारतीयों को ट्रोल और संघी कहकर अपनी ईर्ष्या व्यक्त कर रहे हैं।
‘द वायर’ नामक समूह की कथित पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने स्वयं तो इस इस्लामी कट्टर विचारधारा की आलोचना की नहीं, परंतु वे ट्विटर पर इसकी आलोचना करने वाले भारतीयों को संघी एवं ‘अवसरवादी’ कहकर चिढ़ाती दिखीं।
इसके जवाब में कुछ लोगों ने आरफ़ा को ही इस बात के सबूत दे दिए कि किस प्रकार भारतीय मुस्लिमों का एक धड़ा अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हो जाने का जश्न मना रहा है। ऐसा ही एक ‘क्लबहाउस’ का ऑडियो सोशल मीडिया पर घूम रहा है।
इस ऑडियो में अपने मुस्लिम साथियों को एक ‘ख़ुशख़बरी’ सुनाते हुए कुछ भारतीय मुस्लिम ‘इनफ्लुएंसर’ कहते दिखे:
“अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घानी ने रिज़ाइन कर दिया है। अल्लाह का शुक्र है और तालिबान धीरे-धीरे इस्लाम के शासन को कायम करने की ओर बढ़ रहा है। हमें भी उनसे सबक लेना चाहिए और सीखना चाहिए, कि आज़ादी हासिल करने के लिए किस प्रकार की जद्दोजहद और कोशिश करनी चाहिए।”
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े की ‘ख़ुशख़बरी’ सुनकर इस ‘क्लबहाउस’ रूम में मौजूद बाकी लोग भी ‘अल्हमदुलिल्लाह’ कहते सुने जा सकते हैं।
बता दें कि यह उन्हीं लोगों का समूह है जो भारत की आज़ादी को आज भी झूठा बताते हैं एवं इस्लामी शासन को असल आज़ादी का नाम देते हैं। जहाँ एक ओर अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय लोगों को तालिबान के भय से अपना देश छोड़कर भागना पड़ रहा है, वहीं भारत और ऐसे ही कई लोकतांत्रिक देशों में रहने वाले लोग तालिबान के कुकृत्यों की आलोचना करने की जगह इसका दोष कभी अमेरिका तो कभी विश्व के अन्य पंथों के सिर मढ़ते हुए देखे जा सकते हैं।