खाना पसंद नहीं आया तो तालिबानियों ने महिला को जला कर मारा: फिर शुरू हुए रेप और तस्करी

21 अगस्त, 2021
तालिबानियों ने खाना पसंद ना आने पर ली महिला की जान

अफगानिस्तान पर अधिकार जमाने के बाद अब यह आतंकी संगठन तालिबान धीरे-धीरे अपने इरादे दुनिया के सामने साफ कर रहा है। तालिबानियों ने एक अफगानी महिला को जलाकर केवल इसलिए मार डाला क्योंकि उसके द्वारा बनाया गया खाना इन आतंकियों को पसंद नहीं आया था। 

अफगानिस्तान की राजधानी समेत लगभग पूरे देश पर कब्ज़ा कर चुका इस्लामी आतंकी संगठन तालिबान देश में शरिया स्थापित करने की बात पहले ही कर चुका है। अब यह संगठन शरिया में लिखी गई बातों को धीरे-धीरे प्रमाणित करने पर भी उतर आया है।

रिपोर्ट की मानें तो एक पूर्व जज नजला अयूबी ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें महिलाओं के साथ की जा रही हिंसा की कई शिकायतें आ रही हैं। तालिबानी आम लोगों पर ज़बरदस्ती उन्हें खाना मुहैया कराने और उनके लिए खाना बनाने का दबाव बना रहे हैं। 

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि देश के उत्तरी क्षेत्र में तालिबानी आतंकियों ने एक महिला को जलाकर मार डाला क्योंकि उन्हें उस महिला द्वारा बनाया गया खाना पसंद नहीं आया था। अयूबी ने यह भी बताया कि आतंकियों द्वारा महिलाओं को ‘सेक्स स्लेव’ की तरह उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा: 

“तालिबान परिवारों पर दबाव बना रहा है कि वे अपनी बच्चियों की शादियाँ तालिबानी आतंकियों से कराएँ।‌ इसके साथ ही तालिबान ताबूतों में भरकर अफगानी महिलाओं की तस्करी तक कर रहे हैं।


जान बचाने के लिए देश छोड़ने को मजबूर 

तालिबान द्वारा यह कहा गया था कि उनके राज में महिलाओं को काम पर जाने दिया जाएगा, परंतु इस प्रकार के कुकृत्यों को देखते हुए तालिबान की सारी बातें भी बुनियादी प्रमाणित होती हैं।

अयूबी अफगानिस्तान में रहकर महिलाओं के अधिकारों के विषय में मुखर होकर बोलती आईं हैं, परंतु अब उन्हें तालिबानी हुकूमत के बाद अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। वे बताती हैं कि उनके कई अफगानी साथी अभी भी भय के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में छिपे हैं। अफगानिस्तान की महिलाएँ तालिबानी शासन के बाद से अपने अधिकारों और आज़ादी को खोने का डर लिए जी रही हैं।

बता दें कि 1996 से 2001 के दौरान जब देश में तालिबान का शासन था तब महिलाओं को काम करने एवं स्कूल तक जाने तक की अनुमति नहीं थी। यहाँ तक की महिलाएँ किसी पुरुष के बिना और अपना चेहरा ढके बिना घर से बाहर तक नहीं निकल सकती थीं।

जहाँ एक और अफगानी महिलाएँ ज़बरन शरिया कानूनों के तहत ऐसे अमानवीय ढंग से जीने को मजबूर हैं, वहीं भारत एवं विश्व भर के कई कथित लिबरल बुर्के और हिजाब को स्वेच्छा बताते हुए इस आतंकी संगठन के घिनौने कृत्य का औचित्य साबित करने में लगे हैं।



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