व्यंग्य: परमादरणीय उद्धव ठाकरे की महानता और भाजपा

26 अगस्त, 2021 By: अजीत भारती
नारायण राणे (बाएँ)/ उद्धव ठाकरे (दाएँ)

श्रद्धेय उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं। राज्य का नाम जब राष्ट्र का दोगुना भौकाल वाला होता है तो कभी-कभी लगता है कि भारत छोटा है और राज्य बड़ा। यूँ तो आदरणीय उद्धव ठाकरे जी संवेदनशील व्यक्ति हैं, कला के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान रहा है। यूँ तो ऐसे परिवारों में जन्म लेने के बाद किसी भी तरह की शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन फिर भी सम्माननीय उद्धव ठाकरे जी ने फोटोग्राफी की शिक्षा ली है और दो किताबों के साथ इनके कई छायाचित्र अलग-अलग कला दीर्घाओं को सुशोभित करते रहे हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि पूजनीय उद्धव ठाकरे जी कलाप्रेमी हैं और हृदय से संवेदनशील हैं। फोटो खींचने वाला क्रूर कैसे हो सकता है, हाँ वो अगर दानिश सिद्दीक़ी हो जो लाशों की फोटो बेच कर घर चलाता हो, तो वो बात अलग है। 

खैर, श्रीयुत उद्धव ठाकरे जी के ऊपर फिलहाल भाजपा के केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे ने कुछ व्यक्तिगत आक्षेप कर दिए, थप्पड़ मारने की बात कर दी… अरे ये तो गलत वाला वीडियो चल गया… खैर, मैं कह रहा हूँ तो आप मान लें कि नारायण राणे ने एक बात कह दी। इसके बाद जो-जो हुआ वह बताता है कि हम किस समय में जीवित हैं।

सबसे पहले तो भाजपा के कार्यालय को निशाना बनाया गया। फिर भाजपा कार्यकर्ताओं की पिटाई हुई। इन बातों का दोष तुरंत ही भजपइयों ने श्रीमान उद्धव बाला साहेब ठाकरे पर डाल दिया कि वही करवा रहे हैं।

ये तो वही बात हो गई कि लौंडे ने घर बैठे ‘पीली वाली मेरी है’ के नाम पर नस काट लिया और ‘पीली वाली’ कैफे में चाय पीती हुई खबर पाती है तो पूछती है कि कौन है ये अजीत भारती, कभी नाम नहीं सुना, नस क्यों काट ली उसने?

मोदी जी तो फिर भी तीन-चार घंटे सो लेते हैं, लेकिन माननीय उद्धव ठाकरे जी के बारे आज तक कहीं पढ़ा या सुना भी है कि वो कितनी देर सोते हैं? नहीं सुना होगा क्योंकि वो सोते ही नहीं हैं। मोदी जी राष्ट्र चला रहे हैं, श्री ठाकरे जी महाराष्ट्र चला रहे हैं।

ऐसे में आप ही बताइए कि क्या यह संभव है कि वो इन शिवसैनिकों को फोन कर के बोले हों कि जा लौंडे, कूट दे भजपइयों को, देखता हूँ कौन क्या उखाड़ लेगा। या यह कि अरे पीट दे, भाजपा वाले दो-चार ट्वीट करेंगे और उनके नेता भी ट्वीट करेंगे… और… बस… वो लोग ट्वीट ही तो करते हैं। 

नारायण भाई खाना खा रहे थे। पुलिस आई और कहा कि चलो थाने। साथ में एक व्यक्ति थे, वो अड़ गए कि अरे ऐसे कैसे, मंत्री हैं, वो भी केन्द्रीय, वो भी भाजपा के, वो भी मोदी जी के कैबिनेट के… पुलिस ने कहा कि भाजपा के हैं इसीलिए तो जलील कर के ले जा रहा हूँ, कॉन्ग्रेस के होते तो हाथ भी न लगाता।

यह सुन कर केन्द्रीय मंत्री जी का स्टाफ लज्जा के मारे पुलिस वाले ब्रो से हथकड़ी माँग कर स्वयं ही लगा कर उनके सुपुर्द कर दिया। इस पर बहुत आउटरेज हुआ… वहीं, ट्विटर पर। बवाल हो गया कि ये क्या हो रहा। अजीत भारती जैसे दो टके के यूट्यूबर ने भी मजे लिए कि देखो-देखो आइटी सेल वालों को, ट्रेंड करवा रहे हैं, और कुछ तो आता नहीं।

जेपी नड्डा जी को भी घेर लिया जब उन्होंने लिखा कि वो न डरेंगे, न दबेंगे, भाजपा को लोगों का अपार समर्थन मिल रहा है। ये बात और है कि कार्यकर्ता जब मारे जाते हैं, कब भी भाजपा वालों की यात्रा चलती रहती है और वो न तो ममता से डरते हैं, न दबते हैं। 

जो भी है, खाते वक्त उठाना संविधान की कई धाराओं को विरोध में है। एक व्यक्ति ने लिखा कि यही तो मास्टरस्ट्रोक है कि चाहता तो राने भाग सकता था, दिल्ली चला जाता लेकिन उसे पता था कि पुलिस के हाथों अरेस्ट होने से उसे अपार जनसमर्थन मिलेगा इसलिए वो इस तरह से जेल गया।

सही बात है क्योंकि बंगाल में भी कार्यकर्ता मारे गए, वो चाहते तो देश छोड़ कर भाग सकते थे क्योंकि भारत में तो उन्हें भाजपा बचा नहीं पा रही थी, लेकिन उन्होंने मरना स्वीकारा ताकि केन्द्रीय नेतृत्व उनके बलिदान की बात करते हुए कोई परिवर्तन यात्रा टाइप का आयोजन कर सके और कह सके कि वो न तो डरने वाले हैं, न दबने वाले हैं।

अब आप कहेंगे कि प्रातःस्मरणीय श्री अजीत भारती जी ब्रो, थम्बनेल पर परमश्रद्धेय श्री उद्धव जी का रोस्ट लिख कर आप भाजपा वालों को पेले जा रहे हैं, तो मैं यह कहना चाहूँगा कि कभी-कभी बुलेट का पेट्रोल खत्म हो जाए, तो पचास एमएल पेट्रोल देने के बाद, किरासन तेल भी डाल दो गाड़ी चल पड़ती है। अभी गाड़ी स्टार्ट हुई है, शिवसेना समर्थक अभी आनंदित हो रहे होंगे, कि परमपूज्य उद्धव जी के नाम के आगे अभी तक मैंने नौ सम्मानसूचक विशेषणों का प्रयोग कर दिया है, खेला तो अब चालू होगा। 

यूँ तो लोग एंटिसिपेटरी बेल लेते हैं, लेकिन इस रोस्ट से पहले मैंने एंटिसिपेटरी जेल ले लिया है ताकि मुंबई की जेल में जाने से पहले ही कहीं और बंद हो जाऊँ। जो भी हो, नारायण राणे हों, सुशांत सिंह राजपूत वाला मामला हो, कंगना के मणिकर्णिका फिल्म्स के कार्यालय की बात हो, अनिल देशमुख हों, अर्णब गोस्वामी हो… उद्धव ठाकरे ने यह दिखाया है कि सत्ता हाथ में हो तो बाएँ हाथ से भी चाबुक मारोगे, तो भी सटीक लगेगा।

सत्ता कानून के हिसाब से नहीं चलती, वो बताती है कि उसके शब्द ही हैं शासन की धाराएँ। आप यह सोचिए कि विश्व की सबसे नकारी पार्टी कॉन्ग्रेस की सर्वेसर्वा, भारत के सबसे बड़े और लोकप्रिय एंकर के द्वारा ललकारे जाने पर, सत्ता से बाहर हो कर भी पावर कैसे एग्जर्ट करती है। और भाजपा, सत्ता में हो कर भी, सबसे ताकतवर पार्टी के गीत गुनगुनाते हुए भी, दूसरों को पकड़ना तो छोड़िए अपने लोगों को डिफेंड तक नहीं कर पाती।

ये महोदय एक नेचुरल हैं। सत्ता के लिए हिन्दुत्व त्याग दिया, पिता के सारे वचनों को झूठा साबित होने दिया, लेकिन मजाल है कि शर्म की एक रेखा उनकी आँखों की पुतलियों पर दिखे। कोई सकुचाहट नहीं, सोनिया के निर्देशों को माना, मजहबी फसादियों को जगह दी, पोषण दे रहे हैं,  उनसे मिल गए जिन्हें इनके पिता ने वीर्यहीन बताया था। 

लेकिन सत्ता की प्रकृति ही यही है। हर नीति, नैतिकता, स्वाभिमान, मौलिकता अपने लक्ष्य की बलि चढ़ जाती है। हिन्दुत्व ने उद्धव ठाकरे को क्या दिया? घंटा? कॉन्ग्रेस से हाथ मिलाया, तो मुख्यमंत्री बने। अगर बिहार या दिल्ली की जनता कहीं से भी एक मानक है, तो नड्डा जी या फडनवीस जी हों, वो यह देख लेंगे कि कोई एक्सपोज नहीं होगा और जनता फिर से इन्हें चुन लेगी।

जनता कभी भी पुंसत्वहीन लोगों को पसंद नहीं करती। जो भाजपा कभी सीएए पर, तो कभी किसान आंदोलन पर, कभी पालघर पर, तो कभी बंगाल पर चुप रहती है, उसे अब उसके समर्थक भी यह कह कर उलाहना देने लगे हैं कि उनसे बेहतर तो ममता और ठाकरे हैं, जो अपने कार्यकर्ताओं की रक्षा तो करते हैं। 

उद्धव ठाकरे बुद्धिमान व्यक्ति हैं। वो चाहते तो पुलिस को सुबह-सुबह ही भेज देते ताकि बाथरुम से उठा लिया जाता केन्द्रीय मंत्री जी को, लेकिन वो जानते थे कि भाजपा का नेतृत्व फोटो गला कर इसे ऐसे भुना लेगा कि ये देखिए ठीक से करने भी नहीं दिया, हमारे केन्द्रीय मंत्री को, संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए जेट का पानी भी ऑन नहीं करने दिया, धोती का रंग देखिए… मुझे भाजपा से इस तरह की उम्मीद है। जहाँ विक्टिम कार्ड नहीं खेलना चाहिए, वो वहीं पर विक्टिम बनते हैं और रोने लगते हैं। 

जैसा कि प्रारंभ में ही मैंने कहा कि उद्धव ठाकरे एक संवेदनशील हृदय के व्यक्ति हैं। वो कला प्रेमी हैं अतः वो नित दिन नई क्रीड़ा में मग्न रहना चाहते हैं। आप ही बताइए कि जीवन कितना धीमा और रंगहीन होता अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री न होते।

जरा देखिए कि कैसे परमबीर सिंह का इस्तेमाल किया गया। टीआरपी केस में इनकी पुलिस ने नाम इंडिया टुडे का लिया, पकड़ा अर्णब को। अब आप पूछेंगे कि ये क्या बात हुई। देखिए कुछ बातें सीक्रेट होती हैं, बताई नहीं जाती। पुलिस कमिश्नर होंगे कमिश्नर अपने घर में, लेकिन जब हर रात उद्धव ठाकरे को मुंबई से ललकारने वाले अर्णब के खिलाफ केस नहीं बना तो अपनी निजी दुश्मन को उद्धव ने कैसे शांत किया?

बोल दिया कि मेरे शब्द ही हैं शासन और भेज दिया पुलिस को। न कोई सबूत, न कोई आरोप, बस बोला कि जा भाई, उठा के ले आ। आप ही सोचिए कि अगर आपके पास अपनी पुलिस हो तो क्या पर्सनल खुन्नस निकालने के लिए आप उसका प्रयोग नहीं करेंगे? ये तो नही बात हो गई कि घर में कुक है, गेस्ट आए हैं लेकिन चाय खुद बना रहे हैं। 

अब यहाँ कोई आएगा और बोल देगा कि अजीत जी, चाणक्य ने तो शाम में अपने मित्र के मिलने आने पर सरकारी दीपक बुझा दिया था क्योंकि मित्र को उनसे व्यक्तिगत कार्य था। एक मिनट, अमित शाह जी अभी भी दीपक जलाते हैं अपने घर में! गजब कर्मठ आदमी हैं यार! मैं तो उनके बारे में… अरे सर! असली वाले चाणक्य, चंद्रगुप्त के टाइम वाले, अमित जी के घर में एलइडी बल्ब लगा हुआ है सौभाग्य योजना वाला।

अच्छा! बहुत कन्फ्यूजन है भाई, कम से कम चाणक्य की बात करो, तो बोल दिया करो कि चाणक्य, असली वाले। खैर, उद्धव जी पर आप यह आरोप भी नहीं लगा सकते कि उन्होंने निजी कार्य के लिए राज्य के संसाधनों का उपयोग किया क्योंकि चाहे अर्णब की गिरफ्तारी हो, कंगना का कार्यालय तुड़वाना हो, राणे को घर से उठाना हो, सारे कार्य दिनदहाड़े, ऑफिस आवर्स में हुआ है। इसलिए, ये सब नहीं चलेगा कि पर्सनल खुन्नस निकाल रहे थे। उद्धव जी का पूरा जीवन नियमों को अनुपालन में बीता है। 

वैसे भी जिस व्यक्ति के नाम का अर्थ ही ‘यज्ञ की आग’ हो, उसे आप गलत कैसे कह सकते हैं। यज्ञ की आग से पवित्र और क्या हो सकता है? क्या आपको लगता है कि ऐसा नाम वाला व्यक्ति एक भी गलत कार्य कर पाएगा? जो लायक हैं, उन्हें ही पद देते हैं।

बड़े लोगों के साथ एक और अच्छी बात होती है कि उनके पत्नी, बच्चे, बहन, भाई, पोते आदि सब लायक ही होते हैं। चूँकि घर का वातावरण ही ऐसा उत्कृष्ट होता है कि एक तो जेनेटिकल स्तर पर और फिर माहौल के साथ, आस-पास के सारे लोगों पर असर पड़ता है। इसलिए राहुल गाँधी पैदाइशी पीएम मटीरियल हैं। उद्धव ठाकरे जी का जन्म ही शिवसेना का अध्यक्ष बनने के लिए हुआ था। उसी तरह, जब पिता मुख्यमंत्री हो तो पुत्र कम से कम मंत्री तो बनना ही चाहिए।

आदित्य ठाकरे जी को देखिए, कि पिता यज्ञ की आग, पुत्र स्वयं ही सूर्य! ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि इनके घर में बत्तियाँ नहीं हैं, हैप्पीडेंट च्यूइंग गम से तो सिर्फ स्ट्रीट लाइट जलती थी, लेकिन उद्धव-आदित्य जी की जोड़ी इन्वर्टर नहीं, थर्मल पावर प्लांट है। एकदम आग ही आग! ये बात और है कि कुछ लोग इस आग को रामगोपाल वर्मा की आग से भी बेकार बताते हैं। ऐसे लोग कल सुबह तक जेल में होंगे। 

आदित्य ठाकरे ने भी मंत्री रहते हुए कई बेहतरीन कार्य किए हैं। चाहे ठंढे प्रदेशों में रहने वाले पेंगुइन को मुंबई में लाने के विलक्षण और विज्ञान सम्मत कार्य हों, या फिर 43 शिवसेना पार्षदों के घरों के सौंदर्यीकरण हेतु कुल ₹3,693 करोड़ का आवंटन जैसे सामान्य विवेक को चुनौती देने वाले कार्य, आदित्य साहेब ने झंडे गाड़े हैं।

आप कहेंगे कि प्रातः स्मरणीय श्री अजीत भारती जी ब्रो, एक पार्षद के घर को बनाने के लिए भी नहीं, उसे सजाने के लिए लगभग 85 करोड़ 88 लाख रुपए जारी करना किस हिसाब से तर्कसम्मत है?

यहीं पर तो आप मात खा गए। देखिए, भ्रष्टाचार अगर होता है तो राउंड फिगर में होता है। जैसे कि आप तेल लेने जाते हैं तो सौ का भरवाते हैं। कोई जानकार आपको कहेगा कि यार पंप वाले चुरा लेते हैं, सॉफ्टवेयर होता है, कम तेल देंगे, तू न 103 रूपया या ऐसे ही रैंडम भरवाया कर, राउंड फिगर में घपला है।

जो भी घोटाले हुए हैं वो इतने हजार करोड़, इतने लाख करोड़ या फिर अनिल देशमुख वाला ले लो तो वसूली की राशि भी सौ करोड़ के राउंड फिगर में थी। लेकिन आदित्य ठाकरे अगर भ्रष्ट होते तो वो इस राशि को चार हजार करोड़ कर देते, या 4300 करोड़ कर देते कि हर पार्षद को घर सजाने के लिए सौ करोड़ जारी हुए। लेकिन नहीं, उन्होंने कैलकुलेट किया होगा, वो भी बिना सेल वाले कैलकुलेटर से, क्योंकि सौर ऊर्जा तो वो स्वयं ही जगत को देते हैं। तब पाया होगा कि 3,693 में जो बात है, वो चार हजार में या 4300 में नहीं है। किसी को शक ही नहीं होगा कि इसमें कुछ गलत है।

सब सोचेंगे कि कुछ तो केलकुलेट किया होगा कि तीन करोड़ के बल्ब लगेंगे, डेढ़-डेढ़ करोड़ के नारियल के पेड़, तीन-तीन लाख के घास के एक-एक पौधे… ऐसे कर-कर के 85-86 करोड़ का बिल तो बनेगा ही। अरे शिवसेना के नेता हैं भाई, भाजपा के मंत्री थोड़े ही हैं कि जब चाहे कोई भी घर से उठा के ले जाता है। रुतबा होना चाहिए। 

जब अध्यक्ष और अध्यक्ष पुत्र इतने महान हों तो कार्यकर्ता क्या कम चमत्कारी होंगे? बिहारियों, यूपी, कन्नड़ लोगों को गरिया-गरिया कर, पीट-पीट कर महान बनी पार्टी जिसके मुखिया के श्वासों से अग्नि का आवागमन हुआ करता था, उसके समर्थक क्या भाजपा के समर्थकों की तरह पेड़ से ले कर बिजली के पोल तक लटकने के लिए बने होंगे? अरे कार्यकर्ता नहीं, शिवसैनिक हैं।

नेवी के अधिकारी को पीटा था, कार्टूनिस्ट को पीटा था, जब मन करता है किसी पार्टी के ऑफिस पर धावा बोल देते हैं। कभी सुना है कोई केस हुआ है? अब आप कहेंगे कि केस तो होना चाहिए। यहीं पर आप गलत हैं।

केस करने का प्रचलन सिर्फ भाजपा में है कि देखो, हमारे लिए हर व्यक्ति कानून की दृष्टि में समान है और हम किसी का बचाव नहीं करेंगे। क्योंकि भाजपा के जो लोग हैं वो संविधान का आदर करते हैं, वो उसी तरह के लोग हैं जो नागपाश फेंके जाने पर उसके काट का शस्त्र नहीं चलाते बल्कि उसके सम्मान में बँध जाते हैं। भाजपा और संघ के लोग बड़े ही सात्विक लोग हैं, जान दे देंगे लेकिन कार्यकर्ताओं की रक्षा नहीं करेंगे। 

भाजपा वालों ने हमेशा राष्ट्र की हर संस्था का सम्मान किया है। गृहमंत्री का हेलिकॉप्टर नहीं उतरने दिया गया बंगाल में, भाजपा ने ट्टीट कर दिया कि देखो-देखो क्या हो रहा है। तुरंत ही टीएमसी एक्सपोज हो गया। दिल्ली में दंगों की योजना बनी, इनपुट्स थे, हजारों की भीड़ थी, लेकिन भाजपा ने दंगे होने दिए क्योंकि संवैधानिक अधिकारों का हनन कैसे करती? हर दिन ट्वीट किया, सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई और अंततः आपको पता ही है कि CAA वाले एक्सपोज हो गए।

ये मास्टरस्ट्रोक उस समय किसी को समझ में नहीं आया था कि शाहीन बाग को क्यों चलने दिया जा रहा है, लेकिन माननीय मोदी जी ने उसी समय यह परख लिया था कि बीस महीने बाद जब अफ़ग़ानिस्तान से सिक्ख और हिन्दू निकाले जाएँगे तो मनजिंदर सिरसा रोते हुए कहेगा कि मोदी जी, सीएए के तारीख बढ़ा कर 2021 कर दो।

उसी तरह आजकल किसान आंदोलन को ले कर जो लोग मजाक उड़ा रहे हैं भाजपा का, वो सात साल बाद देख पाएँगे कि इसी में से एक आदमी जब नेता बनेगा और उसके खेत का सामान कोई कम्पनी ऊँचे दाम में खरीदेगी, तब हरदीप सिंह पुरी जी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के बताएँगे कि यही लोग सड़क पर बैठे हुए थे, आज एक्सपोज हो गए हैं। 

सारा खेल एक्सपोज करने का है। उद्धव ठाकरे जी पर भी भाजपा कुछ नहीं कर रही है। वो सोच रहे हैं कि अब उद्धव भाई एक्सपोज हो जाएँगे, तब हो जाएँगे। परमवीर पर सोचा कि होंगे, फिर अम्बानी के घर के सामने की स्कॉर्पियो पर सोचा कि होंगे, टीआरपी कांड में सोचा, अनिल देशमुख पर सोचा, सचिन वाजे पर सोचा… लेकिन एक्सपोज हो ही नहीं रहे हैं। कारण मैं बताता हूँ, जो स्वयं ही आग और सूर्य हैं, वो एक्सपोज होंगे? वो पहले से ही ओवरएक्सपोज्ड हैं भाई। 

उधर राणे को उठाया गया, इधर भाजपा की आइटी सेल में विचारशून्यता आ गई कि क्या करें। तुरंत आपात बैठक बुलाई गई। तीन घंटे इस बात पर बैठक हुई कि हैशटैग तो ट्रेंड करवाना ही होगा, सिर्फ ट्वीट करने से काम नहीं होगा। क्या हैशटैग हो, इस पर बहुत गहमागहमी रही। कोई कुछ बोलता, कोई कुछ और। हिन्दी में रखें कि अंग्रेजी में, इस विषय पर भी थोड़ी देर गहन चर्चा हुई। अंततः तय हुआ कि अरेस्ट उद्धव ठाकरे ट्रेंड कराना सही रहेगा।

फिर चर्चा हुई कि यार रात में करा दें क्या? तो किसी ने कहा कि लोग तो सो रहे होंगे, और अखबार तो छप गया होगा, तो कोई देखेगा नहीं, इसलिए सुबह कराया जाए। सुबह भाई साहब ट्रेंड करा दिया। समझते हो बात को, ट्विटर पर, जो कि वामपंथी प्लेटफॉर्म है, अपने मतलब की बात ट्रेंड करवा लेना कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। ट्विटर पर ऐसे ही ट्रेंड नहीं होता कुछ भी।

जब तक आप एक प्लान नहीं बनाओगे, स्ट्रेटेजी नहीं होगी, तब तक कुछ नहीं होता। ज्योंहि यह ट्रेंड हुआ और उद्धव ठाकरे ने देखा कि उनके तो पसीने आ गए कि अब राज्य छोड़ना पड़ेगा कि देश! पासपोर्ट खोजने लगे वो, आइटीसेलियों में उल्लास का संचार हुआ, देवों ने पुष्पवृष्टि की, गंधर्वों ने गिटार बजाया और नारद जी ने स्वयं एक माला ले कर आइटी सेल के उस लौंडे को खोजने लगे जिसने यह विचार दिया था कि यही हैशटैग होगा। ऐरावत ने घनघोर गर्जना की, द्वारपालों ने गगनभेदी दुदुंभी बजाई, इंद्र आए और आइटीसेलियों को निजी तौर पर अप्सराओं ने लिप किस किया। 

दोपहर होते-होते उद्धव ठाकरे देश छोड़ कर घाना जा चुके थे। अभी जिन्हें आप मुंबई में देख रहे हैं वो तो होलोग्राम है, जो लगता है कि वही है लेकिन है नहीं। अगर उद्धव जी वापस आए तो हम अवश्य सूचित करेंगे।


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