चीन पर अपने देश में उइगर मुस्लिमों के साथ क्रूर एवं अमानवीय हरकतों का आरोप लगता रहा है। इस बार चीन पर आरोप लगा है कि वो उइगर समुदाय के लोगों के किडनी, लीवर जैसे अंग निकाल कर उन्हें बेच देते हैं। चीन पर साल 2017 और 2019 में भी अल्पसंख्यक उइगर मुस्लिमों के भीतरी अंग निकाल कर उनकी बिक्री करने के आरोप लगे थे।
समय-समय पर ऐसे खुलासे होते आए हैं, जिनमें ये सामने आता है कि चीन में अल्पसंख्यक, ख़ासकर उइगर मुस्लिमों पर भयानक अत्याचार होते हैं, लेकिन चीन से आने वाली इन खबरों और ऐसे सभी खुलासों पर चीन के मित्र तुर्की, पाकिस्तान जैसे इस्लामी देश चुप्पी साधे रहते हैं।
गौरतलब है कि चीन ने बड़े पैमाने पर उइगर मुस्लिमों को शिविरों में कैदी बना रखा है। उन पर धार्मिक प्रतिबंध लगाने के अलावा अन्य कई तरह से प्रताड़ित करते हुए जेल और डिटेंशन केंद्रों में बंद कर रखा है।
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने एक बार फिर चीन पर ये आरोप लगाया है कि वो अपने देश में उइगर मुस्लिमों के दिल, किडनी, लीवर सहित अन्य शारीरिक अंग निकाल रहा है। 29 फरवरी को आई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस काम को करने के लिए चीन ने चीनी सर्जन और अन्य मेडिकल स्पेशलिस्ट्स की एक पूरी टीम तैनात की हुई है।
चीन के शिनजियांग प्रान्त से उइगर मुस्लिमों पर क्रूरता की खबरें अक्सर आती रहती हैं, लेकिन अंग निकाले की क्रूरतम घटना पर अब मानवाधिकार विशेषज्ञ चीन से जवाब देने की माँग रहे हैं। हालाँकि चीन ने अभी तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं दी है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सबसे पहले साल 2006 और फिर 2007 में चीन पर अल्पसंख्यकों के शारीरिक अंग निकालने का आरोप लगाया था। इसके बाद साल 2017 और 2019 में भी इस तरह के खुलासे कुछ रिपोर्ट्स में हुए थे। साल 2006 से ही मानवाधिकार विशेषज्ञों की निगरानी में इन आरोपों की स्वतंत्र जाँच कराने की माँग की जा रही है।
मानवाधिकारों को लेकर 29 फरवरी को आई इस नई रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि चीन की कैद में बंद उइगर मुस्लिम, तिब्बती और ईसाई इस क्रूरता का शिकार हो रहे हैं। जेलों और डिटेंशन कैम्प में बन्द इन कैदियों को जबरन खून और शारीरिक अंगों की जाँच के लिए मजबूर किया जा रहा है।
कई मामलों में प्लास्टिक सर्जरी या किसी अन्य रहस्यमय प्रयोग के लिए जीवित ही कैदियों की चमड़ी तक निकाली जा रही है, जिससे बुरी तरह तड़प-तड़प कर उनकी मौत हो रही है। चीन ने इन आरोपों पर चुप्पी साध रखी है।
इससे पहले अप्रैल, 2018 में स्विट्जरलैंड के जिनेवा में सँयुक्त राष्ट्र परिषद की बैठक में चाइना ट्रिब्यूनल ने इसे सदी का सबसे बड़ा नरसंहार कहते हुए आरोप लगाया था कि चीन में मानव अंग बिक्री एक आकर्षक व्यापार है और इसका सबसे ज्यादा शिकार उइगर और फालुन गोंग धार्मिक समूह हुए हैं।
चाइना ट्रिब्यूनल के वकील हामिद सबी ने कहा कि हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि चीन बड़ी बेदर्दी से कैदियों के किडनी, लीवर, दिल, फेफड़े कार्निया और त्वचा निकाल रहा है। हामिद सबी ने इसे सदी का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार बताया। उन्होंने कहा कि जीवन बचाने के लिए अंग प्रत्यारोपण एक वैज्ञानिक और सामाजिक विजय है, लेकिन ‘दाता’ की हत्या करना अपराध है।
इस आरोपों पर चीन का कहना था कि ‘साल 2015 से पहले तक कैदियों के अंग निकालने की बात सच है, लेकिन हमने 2015 से ये काम बन्द कर दिया है’। बता दें कि चाइना ट्रिब्यूट एक मानवाधिकार चैरिटी समूह है जो इस मुद्दे कि जाँच कर रहा है।
उइगर तुर्क मूल के लोग हैं, जो डेढ़ शताब्दी पहले तक मध्य एशिया में निवास करते थे। उइगरों ने आठवीं शताब्दी में इस्लाम ग्रहण कर लिया था। 1878 में मध्य एशिया का यह हिस्सा चीन के कब्जे में चला गया और फिर यहाँ रहने वाले उइगर मुस्लिम भी चीन के अधीन हो गए।
आज ज्यादातर उइगर मुस्लिम चीन के शिनजियांग प्रांत में रहते हैं। चीन इन्हें अपने लिए बड़ा खतरा मानता है। वो यहाँ बड़ी संख्या में हान सम्प्रदाय के लोगों को सुविधाएँ देकर बसा रहा है। इसके साथ ही उइगरों को भी अपनी दमनकारी नीतियों का शिकार बना रहा है।
कई धार्मिक अल्पसंख्यकों एवं उइगरों को डिटेंशन सेंटरों में बन्द कर दिया गया है। उनकी धार्मिक आजादी छीन ली गई है। उनके अंगों को निकालकर तस्करी की जा रही है। अपनी कूटनीतिक चालों से चीन इस दमन पर ज्यादार देशों को चुप कराने में सफल रहा है।
पश्चिम के देश जहाँ उइगर मुस्लिमों पर हो रहे इस अत्याचार पर चीन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, वही ‘उम्माह’ की बात करने वाले ज्यादातर इस्लामी देश चीन के साथ गलबहियाँ करते हुए इस मामले चुप्पी साधे हुए हैं।