135 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत में लंबे समय से जनसंख्या नियंत्रण कानून की माँग उठाई जा रही है। ऐसे में देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश द्वारा इसके विषय में विचार किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण बिल (Population Control Policy) पर तेज़ी से कार्य किया जा रहा है। इसी क्रम में राज्य के विधि आयोग द्वारा ‘उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन (कंट्रोल, स्टेबलाइज़ेशन एंड वेलफ़ेयर) बिल’ का ड्राफ्ट तैयार किया है।
योगी सरकार द्वारा शनिवार (10 जुलाई, 2021) को उत्तर प्रदेश के लिए अगले 10 वर्षों की जनसंख्या नीति को लेकर बनाए गए बिल का ड्राफ्ट प्रस्तुत किया गया। इसके विषय में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री के वर्ष 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए भाषण का संदर्भ लेते हुए बताया कि देश में जो एक ऐसा छोटा वर्ग है जो अपने परिवार को सीमित रखकर अपने परिवार और देश दोनों का भला करता है, वह सम्मान व आदर का अधिकारी है।
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मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि इसी भावना के अंतर्गत इस नई योजना का शुभारंभ किया गया है। मुख्यमंत्री ने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 16.7% भारत की आबादी रहती है। ऐसे में परिवारों को नियोजित करने का कार्य कर प्रदेश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना होगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बिल का मुख्य उद्देश्य प्रदेश की जनसंख्या को स्थिर करना, प्रजनन दर में कमी लाना, महिलाओं के प्रति हिंसा, बाल विवाह आदि के प्रति लोगों में जागरूकता लाना बताया था।
राज्य के विधि आयोग ने जो जनसंख्या नीति का यह मसौदा अपनी वेबसाइट पर अपलोड करते हुए लोगों से इस पर 19 जुलाई तक राय एवं सुझाव भी माँगे गए हैं।
जनसंख्या के आधार पर अगर आज के उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो स्थिति कुछ विशेष अच्छी नहीं प्रतीत होती। उत्तर प्रदेश का प्रजनन दर भारत के औसत प्रजनन दर से अधिक है। जहाँ 2001-2011 के बीच देश का औसत प्रजनन दर 2.2 रहा वहीं उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा 2.7 रहा।
इसके साथ ही, देश की जनसंख्या वृद्धि जहाँ 17.70% से बढ़ी तो वहीं उत्तर प्रदेश की 20.23% से। हालाँकि पिछली जनगणना के मुकाबले आँकड़ों में कमी आई है, परंतु फिर भी यह औसत से बहुत अधिक हैं।
2011 के आँकड़ों के अनुसार, प्रदेश में किशोर-किशोरियों और युवाओं की जनसंख्या सबसे अधिक है। इन दोनों के जनसंख्या मिलाकर राज्य की कुल लगभग 46% की जनसंख्या बैठती है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2000-2016 के बीच कई ऐसी बिंदुओं पर ध्यान देकर इन आँकड़ों को घटाने का लक्ष्य रखा गया था। जहाँ इसमें कुल प्रजनन धर को 2.1 तक घटाने का लक्ष्य रखा गया था, वहीं शिशु-माताओं के मृत्यु दर को भी घटाना था।
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शिशु एवं माताओं के मृत्यु दर को घटाने का लक्ष्य तो प्राप्त कर लिया गया परन्तु प्रजनन दर का लक्ष्य प्राप्त न हो सका। न ही परिवार नियोजन की अपूर्ण आवश्यकता तथा शिशु के टीकाकरण का लक्ष्य पाया जा सका।
ऐसे कई मानकों को उत्तर प्रदेश सरकार 2030 तक प्राप्त करने की आशा रखती है तथा इन्हीं के आधार पर 2021 से 2030 तक की जनसंख्या नीति का निर्माण किया गया है।
गत वर्ष समस्त विश्व के साथ-साथ भारत पर भी कहर बरपाने वाले चीनी वायरस ने एक बड़ी समस्या को लेकर जनता व प्रशासन दोनों को बड़ी सीख दी है। इस महामारी ने राज्य के लिए एक बड़ी समस्या पेश कर दी थी और स्वास्थ्य संबंधी आपात तैयारियों के लिए रणनीतियाँ बनाने तथा तैयारियों के माध्यम से ही कोरोना की रोकथाम पर बल दिया गया।
आम जनता को भी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुईं एवं यह राज्य के लिए एक सही समय है कि वह जनसंख्या की उभरती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप एक नीति विकसित करे तथा इस पर लगाम लगाने हेतु कार्य करे।
जनसंख्या नीति 2021-2030 के मध्यावधि लक्ष्य 2026 तक एवं दीर्घकालिक लक्ष्य 2030 तक प्राप्त किए जाने की आशा है। इसका मुख्य दृष्टिकोण यह रखा गया है कि सभी पुरुषों व महिलाओं के साथ साथ विशिष्ट आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिए भी व्यापक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हों एवं हर बच्चा स्वस्थ एवं शिक्षित हो।
इसमें सब के अधिकारों का सम्मान, निष्पक्षता, जनसंख्या समूह जैसे बच्चे-युवाओं-महिलाओं-विकलांगों की आवश्यकताओं की पहचान, महिलाओं एवं वंचित समूहों का सशक्तिकरण, सभी समुदायों की समान भागीदारी तथा पारदर्शिता जैसे सिद्धांत मूल रूप से रखे गए हैं।
इन सभी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न मानकों को ध्यान में रखते हुए एक ढाँचा तैयार किया गया है।
जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए विभिन्न समुदायों के मध्य जनसंख्या का संतुलन बनाने के लिए जागरूकता के व्यापक कार्यक्रम चलाए जाएँगे। जनसंख्या नियंत्रण हेतु उठाए जा रहे कदमों और विभिन्न रणनीतियों को प्रभावी बनाने के लिए इस संबंध में नया कानून भी बनाने का विचार किया जा सकता है।
इसमें राज्य के सभी जनपदों में परिवार नियोजन की सूचनाएँ पहुँचाने के साथ-साथ प्रभावी परामर्श देकर दंपतियों में परिवार नियोजन अंतराल विधियों का प्रचार प्रसार किया जाएगा। लाभार्थियों की पसंद के अनुसार परिवार नियोजन के उपलब्ध तरीकों इस संपूर्ण श्रृंखला प्रदान करते हुए लाभार्थी को लंबी अवधि तक प्रभावकारी प्रतिवर्ती गर्भनिरोधक (आईयूसीडी) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
ड्राफ्ट के अनुसार, सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसूति केंद्र तैयार किए जाएँगे। परिवार नियोजन का प्रचार किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे राज्य में गर्भधारण करने, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य करने के प्रयास सुनिश्चित किए जाएँगे।
आँकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश की 15 से 19 साल की 4% युवतियों माँ बन जाती हैं। राज्य में लगभग 30% युवकों की शादी 21 वर्ष की न्यूनतम उम्र से पहले हो जाती है। ऐसे में किशोर-किशोरियों में गर्भावस्था संबंधी मामलों को लेकर बहुत कम जागरूकता है। आँकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में केवल 27.5% युवक एवं 24.6% युवतियों को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारियाँ हैं।
इसी कारण राज्य मे युवाओं में कई प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। वर्तमान में 15 से 19 आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में 54% में एनीमिया की समस्या पाई गई है तथा इसी आयु वर्ग के पुरुषों में यह समस्या 31.5% को है।
नई जनसंख्या नीति के तहत प्रदेश की सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को किशोर-किशोरियों के लिए कई प्रकार के कदम उठा रही है। जैसे:
उत्तर प्रदेश सरकार इन सभी नीतियों को धरातल पर उतार कर वर्तमान आँकड़ों को सुधारते हुए 2026 तक अल्पकालिक एवं 2030 तक दीर्घकालिक लक्ष्य लेकर चल रही है।
इसमें कई मुख्य समस्याओं के आँकड़ों को सुधारने का लक्ष्य रखा गया है, जैसे वर्तमान प्रजनन दर को 2.7 से घटाकर 2026 तक 2.1 पर लाना तथा 2030 तक 1.9 पर लाए जाने का विचार है। 10.8% लोग गर्भनिरोधक तरीकों का उपयोग करते हैं, इस आँकड़े को 15.1% तक बढ़ाने तथा 2030 तक 16.4% तक बढ़ाने का विचार है।
इसके साथ ही मातृ-मृत्यु दर को प्रति 1 लाख जन्मों पर होने वालीं 197 मृत्युओं से घटाकर 150 तथा 2030 तक 98 तक लाया जाएगा।
शिशुओं की मृत्यु के आँकड़े को प्रति 1000 जन्मों के हिसाब से 43 मौतों से घटाकर 32 तथा 2030 तक 22 तक लाए जाने का विचार है।
उल्लेखनीय है कि योगी सरकार के तहत पेश किए गए इस जनसंख्या नीति के ड्राफ्ट में ‘दो बच्चों की नीति’ में अयोग्य पाए जाने वालों को स्थानीय निकाय के चुनाव में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं देने की सिफारिश की गई है।
इसके अलावा, यह भी प्रस्ताव रखे गए हैं कि इन मानकों में अयोग्य लोगों को सरकारी नौकरी में आवेदन करने और सरकारी सेवा में प्रमोशन पाने पर रोक लगाई जाए। ऐसे लोगों को सरकार की ओर से मिलने वाली किसी भी तरह की सब्सिडी का लाभ भी नहीं दिया जाएगा।