उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार (30 नवंबर, 2021) सुबह घोषणा की कि राज्य में भाजपा सरकार ने चार धाम देवस्थानम बोर्ड प्रबंधन अधिनियम को निरस्त करने का फैसला लिया है। आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले, सीएम धामी की 51 मंदिरों को राज्य सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने की घोषणा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
इस फैसले से पूर्व उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019 की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति ने रविवार को ऋषिकेश में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी, जिसके बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है।
बता दें कि चारधाम हकहकूकधारी महापंचायत के बैनर तले तीर्थ पुरोहित देवस्थानम बोर्ड को भंग किए जाने के लिए लम्बे समय से प्रदर्शन कर रहे थे। उत्तराखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से ठीक पहले धामी सरकार का यह फैसला एक राजनीतिक कदम भी मन जा रहा है।
बोर्ड को रद्द करने की घोषणा से पहले सीएम धामी ने कहा कि हमने देवस्थानम बोर्ड को लेकर विभिन्न संगठनों, तीर्थ-पुरोहित, पंडा समाज के लोग, सामाजिक संगठनों और जन प्रतिनिधियों से बात कर और सुझाव के बाद विचार करते हुए हमारी सरकार ने निर्णय लिया है कि हम इस अधिनियम को वापस ले रहे हैं। सीएम धामी ने कहा कि एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई थी और उस कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
बोर्ड के गठन में सबसे ज्यादा विवाद चारधाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम की धारा 22 के सम्बन्ध में था। इसके अनुसार चारधाम देवास्थानम से संबंधित सभी संपत्तियाँ जो कि सरकार, जिला पंचायत, जिला परिषद, नगर निगम के नियंत्रण में हैं या फिर किसी कंपनी, सोसाइटी, संगठन के अधिकार में हैं, उनके बोर्ड के नाम हस्तांतरित होने का प्रावधान था। मंदिर के पुजारी पुरोहित इस बोर्ड की इन धाराओं को अपने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप मान रहे थे।
दिवाली से पूर्व 1 नवंबर, 2021 को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत केदारनाथ पहुँचे तो वहाँ के तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय लोगों ने उनका जमकर विरोध किया। त्रिवेंद्र सिंह रावत को मंदिर के अंदर तक नहीं जाने दिया गया। विरोध और नारेबाजी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री बाबा केदार के दर्शन किए बिना जीएमवीएन के गेस्ट हाउस में लौट गए।
लम्बे समय से हल रहे विरोध के बावजूद उत्तराखंड राज्य में देवस्थानम बोर्ड भंग न होने के कारण बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री धामों के लगभग सभी तीर्थ पुरोहितों में भारी आक्रोश और विरोध के स्वर रहे।
भाजपा द्वारा त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से हटा देने का भी यह एक कारण बताया जा रहा था और इसी का एक उदाहरण सोमवार को केदारनाथ में देखने को मिला।
पुरोहितों ने आरोप लगाया कि केदारनाथ धाम में आपदा के बाद से उदक कुंड समेत कई अन्य धार्मिक मंदिरों का पुनर्निर्माण करने के बजाय सरकार का ध्यान सिर्फ देवस्थानम बोर्ड के विस्तार में लगा है।
पुरोहितों ने कहा कि सरकार कह रही है कि बोर्ड में तीर्थपुरोहितों व हक-हकूकधारियों के अधिकार पूर्णरूप से सुरिक्षत हैं। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो उन्हें उस अधिनियम की प्रतियाँ सौंपी जाएँ, जिसमें ऐसा उल्लिखित हो।
उन्होंने कहा कि उनकी एकसूत्री माँग बोर्ड भंग करने की है और जब तक इस बोर्ड को सरकार निरस्त नहीं करती है, तब तक केदारनाथ धाम में उनका मौन विरोध लगातार जारी रहेगा।