घर-घर ऐसी किताबें पहुँचनी चाहिए, जिनमें स्थानीय इतिहास, संस्कृति, वीर शासकों, शिल्पियों और कवि-रचनाकारों के अधिकतम ऐतिहासिक संदर्भों सहित विस्तृत विवरण आम लोगों की भाषा में हों।
1946 की दिवाली पर मुल्तान के मूल निवासियों ने कभी सपनों में नहीं सोचा होगा कि एक साल नहीं अब अंतिम चंद महीने ही उनके पास हैं! अल्लाह का फैसला मोमिन के हक में हो चुका है! मुल्तान में अब उनका कोई हक नहीं!