तालिबानी विचारधारा के बढ़ते खतरे के बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस्लामी शिक्षा के केंद्र देवबंद में एटीएस कमांडो सेंटर (ATS Commando Center) खोलने का फैसला किया है।देवबंद में इसके लिए 2,000 वर्ग मीटर जमीन भी आवंटित की जा चुकी है।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद देवबंदी विचारधारा के सबसे बड़े गढ़ देवबंद में योगी आदित्यनाथ सरकार एटीएस कमांडो सेंटर बनाने जा रही है। यह जानकारी मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी ने एक ट्वीट करके दी।
ट्वीट में उन्होंने बताया है कि इस सेंटर पर प्रदेश के चुने हुए डेढ़ दर्जन एटीएस अफसरों की तैनाती की जाएगी। शलभमणि त्रिपाठी में ट्वीट करके बताया:
“तालिबान की बर्बरता के बीच यूपी की खबर भी सुनिए। योगी जी ने तत्काल प्रभाव से ‘देवबंद’ में एटीएस कमांडो सेंटर खोलने का निर्णय लिया है। युद्धस्तर पर काम भी शुरू हो गया है, प्रदेश भर से चुने हुए करीब डेढ़ दर्जन तेज तर्रार एटीएस अफसरों की यहाँ तैनाती होगी।”
जानकारी के अनुसार, देवबंद में इसके लिए 20 हजार वर्ग मीटर जमीन भी आवंटित की जा चुकी है। इस जमीन पर पहले उद्यमियों को प्रशिक्षण मिलता था, अब वहाँ उत्तर प्रदेश एटीएस के कमांडो ट्रेंड होंगे।
हालाँकि, देवबंद से पहले लखनऊ और नोएडा में भी कमांडो सेंटर खोलने की तैयारियाँ चल रही हैं। नोएडा में एटीएस सेंटर इंटरनेशल एयरपोर्ट और लखनऊ में अमौसी एयरपोर्ट के पास बनेगा।
देवबंद के इस कमांडो सेंटर में उत्तर प्रदेश पुलिस के चुनिंदा कमांडो को ट्रेनिंग दी जाएगी। ट्रेनिंग के लिए प्रदेश के करीब डेढ दर्जन तेज तर्रार अफसरों को भी यहाँ पर तैनात किया जाएगा।
सरकार इसको लेकर लम्बे समय से होमवर्क कर रही थी और सहारनपुर जिला प्रशासन से इस पर गोपनीय प्रस्ताव माँगा गया था। जिला प्रशासन ने देवबंद के उद्योग प्रशिक्षण केंद्र में एटीएस कमांडो सेंटर बनाने का प्रस्ताव भेजा था जिसे शासन ने मंजूरी दे दी है।
यूपी के सहारनपुर जिले में स्थित देवबंद इस्लामी शिक्षा का एक बड़ा केंद्र माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में सुरक्षा एजेंसियों ने ऐसे आतंकवादी पकड़े हैं, जिनका संबंध देवबंद से रहा है। साल 2019 में एटीएस ने जैश ए मोहम्मद के दो आतंकवादियों को देवबंद से अरेस्ट किया था। यहाँ से बांग्लादेशी और आईएसआई एजेंट भी पकड़े जा चुके हैं।
लगभग डेढ़ सौ साल पहले, 1857 में जब भारत से इस्लामी शासन का पूर्ण अंत हो गया तो इस्लाम की ‘पुनर्स्थापना’ के नाम पर 1866 में मोहम्मद कासिम और राशिद अहमद गानगोही ने देवबंद के दारुल उलूम में मदरसे की शुरुआत की थी। इसके बाद भारत के अन्य शहरों में भी इस्लाम की स्थापना को मूल में रखकर देवबंदी विचारधारा वाले ‘देवबंदी मदरसों’ की शुरुआत हुई।
तालिबान भी देवबंदी विचारधारा से प्रेरित है। ‘अफ़ग़ानिस्तान तालिबान’ और ‘पाकिस्तान तालिबान’ दरअसल देवबंद सेमिनरी से निकली हुई विचारधारा के ही रूप हैं। वर्तमान समय में अफ़ग़ानिस्तान में जितने भी मदरसे हैं उनमें ज्यादातर मदरसे देवबंदी विचारधारा को मानने वाले हैं।
तालिबान पश्तो भाषा के शब्द ‘तलबा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- मदरसे का छात्र। अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान तालिबान के आतंकी देवबंदी मदरसे से निकले हुए छात्र ही हैं।
अफ़ग़ान तालिबान के प्रमुख नेता और पाकिस्तानी तालिबान नेताओं ने देवबंदी मदरसों से ही पढ़ाई की है। तालिबान के अलावा देवबंदी सेमिनरी से प्रभावित अन्य आतंकी समूह टीटीपी, एसएसपी, एलईजे आदि है।