अश्विनी उपाध्याय की गिरफ्तारी और नारेबाजी करने वालों को कथित राइट विंग द्वारा ‘कानून अपना कार्य करेगा’ के नाम पर छोड़ देना ही हमारी वास्तविकता है। जिस वक्त ‘इस्लामोफोबिया इन इंडिया’ ट्रेंड हो रहा था, उसी समय में डासना में दो ‘बुल्ले’ चाकू तेज कर रहे थे और रात होते-होते यति नरसिंहानंद से मिलने आए एक पुजारी नरेशानंद जी की पेट में भोंक कर, उनकी अँतड़ियाँ काट दी थी।
पुलिस गार्ड करती है मंदिर को, चौबीस घंटे। आप सोचिए कि दो बुल्ले आए, चाकू मारा, भाग गए और पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल रहा। वो जगे नहीं, जबकि उन्हें सोना भी नहीं था। एक तरफ ‘राम राम चिल्लाएँगे’ जैसा नारा है, दूसरी तरफ रक्त से लथपथ एक साधु है। नैरेटिव नारे के ऊपर चल रहा है, पोस्टर नारा लगाने वालों को पकड़ने के लिए बनाए जा रहे हैं।
हमने बड़ी सहजता से नारा लगाने वालों को दुत्कार कर छोड़ दिया है। तनिक सोचो कि वो नारा किसके लिए लगा रहे थे? ‘शौर्य’ फिल्म का संवाद है कि तुम्हें नालियाँ साफ चाहिए लेकिन हाथ गंदा नहीं करना चाहते। वो तुम्हारे लिए नाली साफ कर रहे हैं। ‘सभ्य समाज में ऐसे नारों की जगह नहीं’ का क्यूटियापा मत बतियाना क्योंकि समाज सभ्य है नहीं।
तुम आजीवन, पीड़ित भी रहोगे और उल्टे क्षमा भी माँगोगे कि तुमने हमले के समय गर्दन क्यों हिला दी। अश्विनी उपाध्याय क्या कर रहे थे, उससे कोई मतलब नहीं है। वो नवयुवक कौन-सा नारा लगा रहे थे उससे भी कोई मतलब नहीं है। वो हिन्दुओं और इस राष्ट्र के लिए एकत्र हुए थे, ये महत्वपूर्ण है। तुम्हारे सामने जो शत्रु है, उसकी पूरी जमात दंगों में तुम्हें मारने के बाद, तुम्हारे साधुओं को ट्रेन के डिब्बे में जलाने के बाद, 2002 के नाम पर निःशब्द कर देती है।
तुम यह भी नहीं पूछ पाते कि 59 कारसेवकों को जलाया किसने था? तुम यह नहीं पूछ पाते कि दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों के समय किसकी छतों पर पत्थर और पेट्रोल बम थे। वो अभी भी शाहरुख पठान को अच्छा भाई और चाचा बताए फिर रहे हैं, वो दंगाइयों को, जिनके हाथ पर रक्त है, विद्यार्थी कहते फिर रहे हैं और तुम इस पर चिंतित हो कि नारा नहीं लगाना चाहिए था।
अरे! नारा तो हर गली, नुक्कड़ और शहर के चौक-चौराहों पर लगना चाहिए। अपनी महत्ता दिखाओ इन मदांध सत्ताधीशों को, इन्हें बताओ कि तुम्हारे एक-एक वोट की कीमत कितनी है। इनसे कानून बनवाओ कि हिन्दुओं की तरफ कोई आँख उठा कर न देखे, हमारे मंदिरों के इर्द-गिर्द कोई विधर्मी पाँव न रखे। इन्हें विवश नहीं करोगे तो ये वैसे ही चुप रहेंगे, जैसे ये पालघर पर थे, जैसे ये बंगाल पर थे, जैसे ये डासना पर चुप हैं।
इन्हें याद दिलाओ स्थानीय चुनावों में कि तुम्हारे वोट का क्या मतलब है। इन्हें पावर से दूर जाने का भय होना चाहिए। इन्हें पंचायत चुनावों में, नगर निगम में अपनी शक्ति दिखाओ और उन स्थानीय नेताओं से कहो कि वोट तो उन्हें ही देते, लेकिन साधुओं की हत्या पर मौन साधने वालों को अपना नेता मानने वालों के लिए तुम्हारा वोट नहीं है। जब तक इन्हें नीचे के कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट नहीं मिलेगी, तुम्हारे अपने मित्र घरों से उठाए जाते रहेंगे।
इसलिए जगो, वोट की ताकत को पहचानों, प्रेशर ग्रुप की तरह काम करो। स्थानीय नेताओं को लगातार बोलते रहो कि तुम्हारी राष्ट्रीय स्तर की चुप्पी लोकल चुनावों में तुम्हारी जड़े उथली कर रही हैं। हिन्दुओं को लिए विकल्पहीनता का जो अनुभव कराया जा रहा है, हिन्दुओं के जिले के स्तर से शुरु करते हुए, आगे तक बताना होगा कि तुम हमें तब्लीगी जमात पर मौलाना साद की गिरफ्तारी की जगह, ‘उसकी बिल्डिंग तो गैरकानूनी है’ कह कर, आज तक उसका एक बाल न उखाड़ पाए हो।
ये ढोंग, ये मौन, ये चुप्पी… ये हिन्दू साधुओं को अछूत की तरह ट्रीट कर रहे हैं। इनकी पुलिस वहाँ सोती पाई जाती है। इनके नेता पालघर हो या रिंकू शर्मा, एक शब्द नहीं बोलते। याद रखना कि जीवित तो तुम पहले भी थे, लेकिन तुम्हें ठग तो नहीं रहा था कोई। आज तुम्हें अस्पृश्य मान कर, तुम पर बोला तक नहीं जा रहा है।
वो बोलें या न बोलें, लेकिन तुम कभी भी अपोलोजेटिक मत बनो। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात को पकड़े रहो। वो नारे की बात करें तो बोलो कि ‘हाँ लगाएँगे’, और उनसे पूछो कि उनके भाई और बाप जब हिन्दुओं को काटते हैं, छुरा मारते हैं, बम फोड़ते हैं, तब वो कहाँ होते हैं। दोगलों को उन्हीं की भाषा में जवाब दो। ये सब फर्जी की दलीलें हैं कि ‘अभी जितना बोल रहे हो, उन्हीं के कारण संभव हो पाया है’, अरे वहाँ नल लगा रखा है क्या कि वो उतना ही खोलेंगे जितना उन्हें सूट करता है? बाकी लोग कुछ भी करें, चलेगा, हम यहाँ नारा लगाएँ तो जेल में डालोगे?
‘सर तन से जुदा’ वाले लाख की भीड़ में से कितने पकड़ लिए? ये चलते-फिरते टाइम बमों को तुम भी छूने से डरते हो। तुम्हें उनके विरोध का भय है, इसलिए अब उचित तो यही होगा कि हिन्दू भी अपनी सड़क की शक्ति का प्रदर्शन करे। वो भी हर दिन सैकड़ों की भीड़ ले कर भजन-कीर्तन करते हुए उन्हें सुनाए, जिन्हें नहीं सुनना। सरकार को फर्क नहीं पड़ता कि पालघर में साधु की लिंचिंग हुई, उसको शबाना आजमी के पैर की मोंच में ज्यादा रुचि है।
वो सरकार है, वो कुछ भी कर सकती है। उनके नुमाइंदे तुम्हें बताएँगे कि तुम्हें क्या बोलना चाहिए। तुम उन्हें सीधे गरियाओ और कहो कि ज्ञान अपने स्थान विशेष में डाल लें।
इस विषय पर विस्तृत वीडियो आप हमारे यूट्यूब चैनल DO Clips पर देख सकते हैं