हिंदू-घृणा भड़काने वाले विश्वविद्यालयों को फंड देते रहे हैं टाटा, इंफोसिस समूह

25 अगस्त, 2021
विश्व के बड़े विश्वविद्यालयों में हिन्दू-घृणा भड़काने के लिए आयोजन

विश्व के कई बड़े विश्वविद्यालयों द्वारा मिलकर एक हिंदू घृणा को भड़काने वाले कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसमें वैश्विक स्तर पर मूल रूप से ‘हिंदुत्व को समाप्त’ करने अजेंडा रखा गया है। इस कार्यक्रम में कथित तौर पर कई ‘आईवी लीग कॉलेज’ एवं कई विश्व के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय शामिल बताए जा रहे हैं। 

वैश्विक स्तर पर फैले वामपंथी नेटवर्क और विश्व के लगभग सभी बड़े विश्वविद्यालयों पर वामपंथी विचारधारा का ही कब्ज़ा है। कॉर्नेल, हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड जैसे बड़े-बड़े नाम अपनी भारत एवं हिन्दू विरोधी विचारधारा का समय-समय पर प्रदर्शन करते देखे जाते हैं।

इससे अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जब यह जाँच की जाती है कि इन ज़हर फैलाने वाले विश्वविद्यालयों को पैसा और संसाधन कहाँ से मुहैया हो रहे हैं तब स्थिति और भी भयावह प्रतीत होती है।

ट्विटर एवं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर 10 से 12 सितंबर होने वाले इस सम्मेलन को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आई हैं। कई स्वतंत्र शोधकर्ता इस विषय में ऐसे तथ्य निकाल कर लाए हैं जिन पर ध्यान देना अति आवश्यक है। 

इस सम्मेलन के पोस्टर में ही कई नामचीन विश्वविद्यालय जैसे- स्टॉकहोम, स्टैनफोर्ड, प्रिंसटन, हार्वर्ड, ओहायो स्टेट, बोस्टन कॉलेज और कोलंबिया जैसे बहुचर्चित नाम देखे जा सकते हैं। यह दावा किया जा रहा है कि इस सम्मेलन में ऐसे 40 से अधिक विश्वविद्यालय शामिल होकर अपना सहयोग देंगे। इसमें वैश्विक हिंदुत्व, जाति और हिंदुत्व, लिंग के आधार पर हिंदुत्व, राजनैतिक हिंदुत्व और विज्ञान के विषय में गोष्ठी की जाएँगी। 

इस सम्मेलन की हिन्दू-घृणा का इस बात से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके पोस्टर में ही हिंदुत्व प्रोपगेंडा एवं हिंदुत्व के साथ श्वेत लोगों के वर्चस्व को जोड़कर हिन्दुओं को Racist यानी जातिवादी दिखाने का भी प्रयास किया गया है।

टाटा-इंफोसिस जैसे समूहों का समर्थन

इन विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा भारत और हिंदू विरोधी गतिविधियाँ चलाने से अधिक ध्यान देने योग्य है कि इनमें से अधिकतर विश्वविद्यालयों को भारत के ही इंफोसिस और टाटा जैसे समूहों द्वारा आर्थिक मदद प्रदान की जाती रही है। ट्विटर पर एक शोधकर्ता द्वारा इस विषय में गहन अध्ययन के उपरांत काफी सूचना साझा की गई। 

मुख्य रूप से हार्वर्ड विश्वविद्यालय, शिकागो विश्वविद्यालय और कॉर्नेल विश्वविद्यालय को इन भारतीय समूहों द्वारा आर्थिक मदद प्रदान की जाती है। 

इंफोसिस प्रमुख नारायण मूर्ति एवं टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा तो कॉर्नेल विश्वविद्यालय के ट्रस्टी समूह में भी हैं। बता दें कि इस विश्वविद्यालय में भारत विरोधी एवं हिंदू घृणा के लेफ्ट प्रोफेसर कौशिक बसु भी हैं। 


टाटा समूह द्वारा कॉर्नेल क्रॉनिकल विश्वविद्यालय को वर्ष 2008 में $50 मिलियन एवं हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को वर्ष 2010 में भी इतनी ही धनराशि मदद के रूप में प्रदान की गई थी। 

यह भी सामने आया था कि टाटा द्वारा प्रदान की गई यह राशि टैक्स में मिलने वाली छूट की नियमावली का भी उल्लंघन करती है, परंतु वर्ष 2020 में इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) के अधिकारियों ने इसे नज़रअंदाज करते हुए टाटा समूह का ही पक्ष लिया था।

इस सब के बाद अब यह कोई अचंभे की बात नहीं रह गई है कि इन समूहों द्वारा कई हिंदू एवं देश विरोधी वेबसाइट और मीडिया संस्थाओं जैसे ‘द वायर’, ‘ऑल्ट न्यूज़’ और ‘द कारवां’ को भी आर्थिक मदद दी जाती रही है।

भारी मात्रा में भारत और हिंदू घृणा

हावर्ड विश्वविद्यालय के शोध पत्रों पर नज़र डाली जाए तो इस विश्वविद्यालय का असली चरित्र सामने आता है। ऐसे ही एक शोध पत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस की नकारात्मक छवि दर्शाते हुए यह लिखा गया है कि संघ परिवार नामक संस्था ऐसे कई कांडों में लिप्त रही है, जिनमें भारत के अल्पसंख्याक ईसाइयों और मुस्लिमों के विरुद्ध हिंसा की वारदातें हुई हैं। जबकि तथ्य पर गौर किया जाए तो भारतीय न्यायालयों एवं प्रशासन द्वारा आज तक किसी ऐसी घटना के पीछे संघ का हाथ नहीं साबित हुआ है।


इन शोध पत्रों में यह भी लिखा गया है कि हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा रखने वाले और हिंदुत्व के समर्थक भारत में अछूतों, ईसाइयों और मुस्लिमों का नाश करके इस हिंदू बाहुल्य देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ की तरह स्थापित करना चाहते हैं।

इसके साथ ही नारायण मूर्ति के पुत्र रोहन मूर्ति ने वर्ष 2010 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ‘मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया’ के नाम से एक संस्था को आर्थिक मदद देकर स्थापित किया था। रोहन मूर्ति ने इस प्रोजेक्ट का प्रमुख शैल्डन पोलक नामक व्यक्ति को बनाया था।


बता दें यह वही शैल्डन पोलक है जिसने रामायण को एक धार्मिक ग्रंथ न मानते हुए उसे एक राजनीतिक दस्तावेज का नाम दिया था। इसने कहा था कि रामायण भारत के बाहर से आए मुस्लिम अक्रांताओं को हाशिए पर रखने के लिए लिखी गई थी। 


अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ-साथ देश के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) जैसे विश्वविद्यालयों में भी भारत विरोधी गतिविधियाँ खुले आम चलती हैं।

कुछ ही दिनों पहले आए भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के एक समाचार में यह साफ हो गया था कि किस प्रकार इन विश्वविद्यालयों के छात्र भारत विरोधी हिंसक गतिविधियों में लिप्त पाए जाते रहे हैं।

कई विश्वविद्यालयों ने पल्ला झाड़ा

इन कथित विश्वविद्यालयों द्वारा इस प्रकार के सम्मेलन समय-समय पर कराए जाते रहे हैं, परंतु इनकी विश्वसनीयता पर शक सदा से ही बना रहता है। इस सम्मेलन की घोषणा के कुछ दिनों बाद जब वैश्विक स्तर पर कई बड़े हिंदू विचारकों और आम जनता द्वारा इसका विरोध हुआ तो स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने इस बात की पुष्टि की कि वे इस हिंदू घृणा से लिप्त सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे।


इसके एक दिन बाद आईवी लीग के ही एक अन्य विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी आफ इलिनॉइस ने भी स्वयं को इस सम्मेलन से अलग करते हुए एक व्याख्या प्रस्तुत की।

कई विश्वविद्यालयों ने इस सम्मेलन के आयोजकों पर यह आरोप भी लगाए हैं कि उन्होंने बिना अनुमति के अवैध रूप से उनकी संस्था के चिन्हों यानी लोगो का उपयोग इस सम्मेलन के प्रचार-प्रसार के लिए किया है।


इस प्रकार के सम्मेलनों के आयोजक सदा से ही शक के दायरे में रहते हैं एवं विभिन्न कालखंडों पर अपनी इन्हीं गतिविधियों और कृतियों के लिए जाने जाते रहे हैं।

विश्व स्तर पर जब हिंदुओं के बौद्धिक ज्ञान रखने वाले लोगों एवं आम जनता द्वारा भी इनके विरुद्ध आवाज़ उठाई जाती है तो ये लोग धीरे से दुम-दबाकर भाग खड़े होते हैं।



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