कब तक मुसलमान, ईसाई बने रहेंगे अल्पसंख्यक? केरल उच्च न्यायालय में याचिका

25 जुलाई, 2021
केरल उच्च न्यायालय में ईसाइयों और मुसलमानों के पिछड़े वर्ग में आने को लेकर सवाल

केरल उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार और अल्पसंख्यक आयोग को अल्पसंख्यकों की सूची पर पुनः विचार करने को लेकर एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में केरल राज्य में मुस्लिम और ईसाइयों के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सवाल उठाए गए हैं।

केरल में भारत देश के ही आँकड़ों के भाँति दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या मुस्लिम समुदाय की है, जिसके बाद इस पायदान पर ईसाई समुदाय आता है। इसके बाद भी राज्य में इन समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है तथा राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाओं का लाभ मिलता है।

इसी विषय में केरल उच्च न्यायालय के समक्ष बृहस्पतिवार (22 जुलाई, 2021) को एक याचिका दर्ज कराई गई। यह याचिका सिटीजन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेसी, इक्वलिटी, ट्रेंकुलिटी एंड सेक्युलरिज्म कैडेट्(CADETS) नामक संस्था द्वारा डाली गई है। यह संस्था हर प्रकार के सांप्रदायिक, जाति और लिंग के आधार पर किए गए भेदभाव के विरुद्ध सवाल उठाती रही है।


याचिका में यह मुद्दा उठाया गया कि राज्य में मुस्लिम और ईसाइयों को अब सामाजिक या शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ा नहीं माना जाना चाहिए। याचिका में कहा गया कि:

“ईसाई और मुस्लिम समुदायों को वित्तीय, व्यावसायिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में ज़रूरत से अधिक तुष्टिकरण (Pamper) संवैधानिक लोकतंत्र के पंथनिरपेक्ष ढाँचे के लिए एक गंभीर झटका होगा और इससे बहु-राष्ट्रवाद हो सकता है।”

मुस्लिम और ईसाई नहीं हैं पिछड़े

मामले को लेकर याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील सी राजेंद्रन ने कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं। इनमें उन्होंने कहा कि अगर आज के आँकड़ों को देखा जाए तो 2021 में ये दोनों समुदाय राज्य में करीब 50% से अधिक की आबादी रखते हैं।

उन्होंने कहा कि केरल में विशेष रूप से मुस्लिम और ईसाई, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नहीं है बल्कि बरसों से उन्होंने इन क्षेत्रों में हिंदुओं तक को पीछे छोड़ दिया है। इसी कारणवश उनकी अल्पसंख्यक और पिछड़े होने की स्थिति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

मामले पर वकील राजेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के मामले टीएमए पाई बनाम कर्नाटक राज्य तथा पलोली मोहम्मद कमेटी की रिपोर्ट के संदर्भ प्रस्तुत किए। 

राजेंद्र ने आगे कहा कि कार्यकारिणी ने अभी तक राज्य के दर्जे से देखते हुए अल्पसंख्यक निर्धारित करने का साहस नहीं जुटाया है क्योंकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है। इसीलिए इस मामले में अब केंद्र सरकार को सामने आकर किसी समुदाय की राज्य में स्थिति को पुनः निर्धारित करना चाहिए।



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