उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा हो गई है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और मुख्यमंत्री हैं योगी आदित्यनाथ। योगी आदित्यनाथ अपनी हिंदूवादी छवि के लिए ज्यादा जाने जाते है।
शहरी क्षेत्रों में उनकी ये छवि पसन्द भी की जाती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदुत्व के अलावा भी कई बुनियादी समस्याएँ और आवश्यकताएँ होती हैं इस कारण यह मतदान की एकमात्र वजह नहीं गिनी जा सकती।
इन बुनियादी समस्याओं की जड़ पर प्रहार करने में योगी सरकार कितना सफल हुई है, ये जानने के लिए DOpolitics की टीम लगातार उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में जाकर मतदाताओं का मन टटोल रही है।
चुनावी यात्रा की इस कड़ी में हम बुंदेलखंड की यात्रा पर हैं। इस यात्रा में हमारा एक पड़ाव था, हमीरपुर जिला। हमीरपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य के चित्रकूट धाम मंडल के अंतर्गत आता है।
हमीरपुर जिला यमुना और बेतवा नदी के संगम पर बसा हुआ है और इसे बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है। बेतवा नदी के किनारे पाई जाने वाली रेत उत्तर प्रदेश के कई जिलों में निर्यात होती है। इसलिए यहाँ रेत माफिया भी सक्रिय हैं। ट्रकों की ओवरलोडिंग, पीने और खेतों के लिए पानी, सड़कें और बिजली पूरे बुंदेलखंड, खासकर इस जिले की सबसे बड़ी समस्याएँ रही हैं।
हमीरपुर जिले 4 तहसीलें हैं, हमीरपुर, मौदहा, राठ एवं सरिला। यहाँ एक लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटें हैं। हमीरपुर विधानसभा और राठ विधानसभा। हमीरपुर जिला भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पिछले विधानसभा चुनावों में हमीरपुर की जनता ने दोनों विधानसभा सीटें भाजपा की झोली में डाली थी।
2017 के चुनाव में हमीरपुर विधानसभा से भाजपा के अशोक चंदेल विजयी हुए थे। चंदेल ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मनोज कुमार प्रजापति को 48,655 वोटों से मात दी थी। इस बीच हमीरपुर में हुए एक चर्चित सामूहिक हत्याकांड में हाईकोर्ट ने विधायक अशोक चंदेल को उम्र कैद की सजा सुना दी, जिसके चलते उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई।
सीट खाली होने के बाद सितंबर, 2019 में यहाँ उप-चुनाव हुआ। भाजपा ने युवराज सिंह को टिकट दिया, तो सपा ने अपने पुराने प्रत्याशी मनोज प्रजापति पर ही भरोसा जताया लेकिन नतीजे नहीं बदले। हमीरपुर की जनता ने उप-चुनाव में भी भाजपा की नैया पार लगा दी, जबकि समाजवादी पार्टी के मनोज प्रजापति को दोबारा हार का मुँह देखना पड़ा।
2012 में भी यह सीट भाजपा के खाते में गई थी। तब भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति ने बसपा प्रत्याशी फतेह मुहम्मद खान को 7,824 वोटों से हराया था।
2017 के विधानसभा चुनाव में हमीरपुर जिले की राठ विधानसभा सीट भाजपा की मनीषा अनुरागी ने जीती थी। उन्होंने कॉन्ग्रेस के गयादीन अनुरागी को 1,04,643 वोटों के भारी अंतर से हराया था। 2012 में यह सीट कॉन्ग्रेस के पास गई थी। जब गयादीन अनुरागी ने सपा की अंबेश कुमारी को 36,137 वोटों से हरा कर सीट पर कॉन्ग्रेस का झंडा लहराया था।
अब दोनों विधानसभा सीटों के जातिगत आँकड़ों की बात करें, इससे पहले हम बता देते हैं कि 2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले की कुल आबादी 1,042,374 है। महोबा और चित्रकूट के बाद हमीरपुर उत्तर प्रदेश का तीसरा सबसे कम जनसंख्या वाला जिला है।
हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र में ब्राम्हण और क्षत्रिय वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है, और दोनों मिल जाएँ तो किसी भी प्रत्याशी को ताज पहना सकते हैं। लेकिन जब हम हमीरपुर पहुँचे तो हमें एक नया ही पेंच देखने को मिला। प्रदेश के अन्य भागों में जहाँ अधिकांशतः ब्राह्मण और क्षत्रिय मिलकर वोट करते हैं, वहीं इस विधानसभा क्षेत्र में मामला एकदम अलग है।
जहाँ क्षत्रिय वोट जाता है, ब्राह्मण वोट उसके विपरीत पार्टी को जाता है। और इसकी वजह है, अतीत में हुआ एक ब्राह्मण परिवार का सामूहिक हत्याकांड, जिसमें आरोपित थे अशोक सिंह चंदेल। उनको इस हत्याकांड के चलते हाईकोर्ट से सजा भी हुई है। बावजूद इसके हमीरपुर में अशोक चंदेल एक बहुत बड़ा फैक्टर है।
दरअसल इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटों के अलावा निर्णायक भूमिका निभाने वाला निषाद वोटर हैं। कहते हैं कि हमीरपुर के एक ब्राह्मण परिवार और निषादों के बीच बड़ी अदावत थी और निषादों के पक्ष में थे, अशोक सिंह चंदेल। 1989 में निषाद और क्षत्रिय वोटरों के दम पर अशोक चन्देल पहली बार निर्दलीय विधायक बने।
फिर 26 जनवरी, 1997 को जब देश गणतंत्र दिवस मना रहा था, हमीरपुर में गोलियाँ चल रही थीं और उस ब्राह्मण परिवार के 5 लोग मार दिए गए। इस सामूहिक हत्याकांड का इल्जाम आया, अशोल चंदेल पर। तब से लेकर अब तक निषाद अशोक चंदेल के साथ रहे हैं। जिधर अशोक चन्देल जाते, निषाद वोट उनके साथ उधर ही जाता।
2017 में अशोक चन्देल भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, तब निषाद वोट बैंक भाजपा के साथ ही था। जिस ब्राह्मण परिवार की हत्या का इल्जाम अशोक चन्देल पर है, अब वह परिवार भी भाजपा में है। इस बार अशोक चन्देल जेल में सजा काट रहे हैं और उनके परिवार में किसी को भी भाजपा से टिकट नहीं मिला है। अशोक चन्देल का परिवार अब कानपुर शहर में रहता है, लेकिन उनका प्रभाव अभी भी इस सीट पर है।
चुनावी यात्रा के दौरान उनके परिवार के भी कुछ लोगों से हमने बात की। वो लोग भाजपा से काफी नाराज दिखे। फिलहाल अशोक चन्देल अपनी पत्नी राजकुमारी चन्देल को इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं।
संगम पट्टी के लोगों ने स्पष्ट कहा कि अगर भाजपा वर्तमान विधायक को वोट देती है, तो अशोक चन्देल की तरफ जाएँगे। अब इस सीट के नतीजे काफी हद तक निषाद वोटरों के हाथ में हैं।
निषाद वोटर यहाँ निर्णायक भूमिका में है। जिले में यमुना-बेतवा के संगम किनारे बजरंगी टोला में बड़ी संख्या में निषाद वोटर रहते हैं। हमने निषाद-बहुल गाँवों कुछेछा, शंकरबाबा, सेड़रा आदि जाकर निषाद भी वोटरों का रुख जानने की कोशिश की।
जब हम हमीरपुर में चुनावी यात्रा पर लोगों से बात कर रहे थे, ठीक उसी वक्त निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद एक रैली में अमित शाह के साथ भाजपा से चुनावी गठबंधन की घोषणा कर रहे थे।
अतीत में हुए चर्चित हत्याकांड को लेकर ज्यादातर लोग बात करने से कतराते रहे। हालाँकि कुछ बुजुर्गों ने कहा कि वो पुरानी बात है, हम अशोक चन्देल के साथ इसलिए थे क्योंकि उन्होंने इस क्षेत्र का विकास किया है।
अब किसके साथ जाएँगे, इस सवाल पर वो कहते हैं कि अब हम जागरूक हैं। हमारी 10% आरक्षण की माँग अभी तक पूरी नहीं हुई है। वो कहते हैं कि अगर भाजपा आरक्षण के साथ ही निषाद समाज के किसी प्रत्याशी को टिकट देती है, तो ही भाजपा के साथ जाएँगे, अन्यथा सपा के साथ।
अशोक चन्देल की पत्नी के निर्दलीय चुनाव लड़ने पर किसी तरफ जाने की बात वो टाल देते हैं। बता दें कि वर्तमान में यहाँ के विधायक युवराज सिंह है और सूत्र कहते हैं कि गठबंधन के चलते भाजपा यह सीट निषाद पार्टी के लिए छोड़ सकती है।
अगर भाजपा यह सीट निषाद पार्टी के लिए छोड़ती है, तो यहाँ के नतीजे चौकाने वाले हो सकते हैं। ऐसी हालत में क्षत्रिय वोट अशोक चन्देल के परिवार में जा सकता है और निषाद वोट, निषाद पार्टी की ओर।
जातीय बिखवार की हालत में यहाँ के चुनाव नतीजे सबसे बड़ी आबादी वाला मुसलमान वोटर ही तय करेगा। इस विधानसभा में 50,000 से भी ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, जो इस वक्त निर्णायक भूमिका में हैं।
यहाँ 40,000 के करीब ब्राह्मण, लगभग इतने ही जाटव, 3700 के करीब ठाकुर और इतने ही यादव वोटर है। यहाँ 29,000 से ज्यादा निषाद वोटर, इतने ही प्रजापति वोटर, 15000 के करीब कुशवाहा और लगभग 11000 वैश्य वोटर हैं।
14 फीसदी आबादी के साथ मुस्लिम वोटर अब चुनाव नतीजे बदलने की हालत में आ गया है। यहाँ का प्रजापति वोटर भी सपा का माना जाता है। अगर ‘MY समीकरण’ चलता है तो 5000 मुस्लिम वोटरों, 37000 यादव वोटरों और 29000 प्रजापति वोटरों के दम पर सपा भाजपा से यह सीट छीन सकती है, लेकिन इसमें भी एक दिलचस्प पेंच हैं और पेंच अशोक चन्देल ही हैं।
दरअसल यहाँ का मुसलमान वोटर अशोक चन्देल को काफी पसंद करता है, और पिछली बार अशोक चन्देल से निजी सम्बन्धों के चलते भाजपा को भी ठीक ठाक मुस्लिम वोट मिला था। इस बार मुस्लिम वोट अशोक चन्देल और सपा में बंट सकता है, जिसका सपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। हिंदुत्व की लहर यहाँ भी है, जो जातिगत आंकड़े ध्वस्त कर सकती है।
सूरजपुर, पारा, पारा ओझी , सेड़रा, टिकरौली, कारीमाटी, सिमरौड़ी, देवगाँव, बड़ा गाँव जैसे कई मिश्रित आबादी और 60% दलित वोटरों वाले इन गांवों में हिंदुत्व की लहर है।
लोग हिंदुत्व के मुद्दे पर ही वोट करना चाहते है और भाजपा उनकी पहली पसंद है। दलित वोटरों की बात करें तो मायावती का दलित वोट बैंक भाजपा और सपा में बँट चुका है। कॉन्ग्रेस या मायावती के बारे में कोई बात भी नहीं करना चाहता।
नई पीढ़ी के बीच ‘ब्राह्मण Vs क्षत्रिय’ फैक्टर भी अब यहाँ से नदारद हैं। भाजपा के पक्ष में एक बड़ी वजह योगी सरकार के विकास कार्य भी हैं। योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही बुंदेलखंड पर खास ध्यान देना शुरू किया था।
पीने के लिए घर घर पानी की पाइपलाइन डाली जा रही है, खेतों में सिंचाई के लिए तालाब खुदवाए जा रहे हैं, तालाबों में मछली पालन के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिससे किसानों को दोहरा फायदा हो रहा है।
हमीरपुर में एक बड़ा स्टेडियम बनकर लगभग तैयार है। 3- 4 दिनों तक गायब रहने वाली बिजली अब दिन में 20 घण्टे आती है। इसके अलावा एक जिला एक उत्पाद योजना से हमीरपुर के चमड़ा उद्योग को काफी फायदा हुआ है।
जातीय आधार पर वोटिंग के लिए बदनाम हमीरपुर ने पिछले चुनावों में सभी मिथक तोड़ कर भाजपा के पक्ष में फैसला दिया था। इस बार भी आँकड़े और हालात भाजपा के पक्ष में हैं, लेकिन काफी कुछ भाजपा प्रत्याशी की घोषणा पर टिका हुआ है।